अर्नब को लेकर भाजपा के समर्थक भाजपा पर हमलावर हैं कि भाजपा कुछ क्यूँ नहीं कर रही । वैसे इनमें से तो काफ़ी सिर्फ़ भाजपा पर सवाल उठाने के लिए समर्थक बन जाते हैं जबकि कुछ वाक़ई में समर्थक हैं भी । कुछ दिन से मेरे मन में भी यही ऊहापोह चल रहा था । मामला अब कुछ समझ में आता दिख रहा है ।
३०३ सीटें जीतकर सरकार में आने और महाराष्ट्र-हरियाणा चुनावों के बीच में भाजपा सरकार ने ऐतिहासिक फ़ैसला लिया ३७० हटाने का । इन दोनों प्रदेशों में भाजपा सरकारें थीं और दोनो जगह भाजपा ने परम्परागत तरीक़े से ज़ात-क्षेत्र के आधार पर बनने वाले मुख्यमंत्रियों के समीकरण को तोड़ दिया था । महाराष्ट्र में मुंबई के बाहर का मुख्यमंत्री था तो हरियाणा में ग़ैर जाट । ये मॉडर्न विचार वाले कदम थे । इतना सब होने पर उम्मीद तो भाजपा को रही होगी कि राह आसान रहेगी । पर नतीजा ? हरियाणा में किसी तरह बचे और महाराष्ट्र में सत्ता गयी हाथ से ।
मध्य प्रदेश और राजस्थान चुनावों में कमोबेश यही हालत रही । इस पर लोगों का जवाब होता है केंद्र और राज्य के चुनाव अलग होते हैं । पर हमारा लोकतंत्र तो राज्य से चुने प्रतिनिधि भेजता है राज्य सभा में और वो लोकसभा के नतीजे पलटने का माद्दा रखते हैं तो फिर राज्य के चुनाव में आप सिर्फ़ लोकल मुद्दे क्यूँ सोचते हैं ?
दिल्ली के चुनाव आते आते तो राम मंदिर का मुद्दा भी निपटा दिया गया । वहाँ की हालत क्या रही भाजपा की ? बड़े बड़े दिग्गज हार गए । पता है इन नतीजों को मोदी की नाक के नीचे की हार कहा गया ।
आलू-प्याज़-धनिया के दामों पर कांग्रेसी सरकार गिरते सुना है ? “फलाने तुमसे बैर नहीं पर ढिकाने तेरी ख़ैर नहीं” इस टेम्पलेट पर किस पार्टी को सबसे ज़्यादा हराया जाता है । राजस्थान में एक जाति के अपराधी का एंकाउंटर होता है तो वो जाति भाजपा के ख़िलाफ़ हो जाती है , उत्तर प्रदेश में दूसरे अपराधी का होता है तो वो जाति ख़िलाफ़ हो जाती है , और ये भाजपा के साथ सबसे ज़्यादा होता है ।
उपचुनाव कहीं का हो , भाजपा के लिए जीतना बड़ा मुश्किल होता है क्यूँकि सबसे ज़्यादा मुश्किल इसी पार्टी के समर्थकों को घर से निकालकर वोट डलवाने में होती है ।
२००४ तो ख़ैर कभी भूलता ही नहीं । अटल जी की आत्मा भी सोचती होगी की क्या ग़लत हुआ । प्याज़ के दाम बढ़ने पर दिल्ली की सत्ता से बाहर हुई भाजपा कभी वापस नहीं आ पायी ।
महाराष्ट्र में भाजपा ने सरकार बनाने की एक कोशिश की थी । ग़लत थी पर विरोधियों से ज़्यादा यही भाजपा समर्थक भाजपा को कांग्रेस ना बनने की सलाह देने लगे थे । आज सत्ता से बाहर हैं और सिर्फ़ खेल देख रहे हैं ।
ये सब ध्यान में रखकर सोचिए तो समझ में आएगा की भाजपा अपने समर्थकों पर कितना विश्वास कर पाती होगी ।
सुशांत से लेकर अर्नब मामले में , जाँच एजेन्सी जैसे ही २ दिन का डिले करती है तुरंत भाजपा शिवसेना में कुछ चल रहा है कि खबरें तैर जाती हैं , ऐसा क्यूँ है ? जबकि टार्गेट तो कांग्रेस-NCP-शिवसेना की सरकार होनी चाहिए । पर होता नहीं है ऐसा । किसी ने भक्त बोला तो हम लग जाते हैं सफ़ाई देने की हम भक्त नहीं हैं । भक्त मान भी लिया तो अन्ध्भक्त नहीं हैं । अरे भाई खुल के बोलो हाँ , भक्त हैं । भक्त भी भगवान के ही हो सकते हैं । इंसानों के तो चमचे होते हैं । बोलिए ये खुल के । और जब भाजपा को ये विश्वास हम दिला पाएँ की आप खुलकर फ़ैसले लीजिए , हम साथ हैं , उस दिन भाजपा भी खुलकर अपने समर्थकों के साथ होगी ।
वापस अर्नब की बात करें तो कोई बच्चा भी बता देगा कि अर्नब के साथ ये सब क्यूँ हो रहा है और कौन करवा रहा है । कोई भी सामने से कुछ नहीं कहता । केस भी ऐसा खोला है कि सवाल भी ज़्यादा पूछने का स्कोप नहीं है । इसलिए भाजपा को भी पीछे से ही काम करना होगा । ये लड़ाई सिर्फ़ और सिर्फ़ लीगल तरीक़े से ही लड़ी जा सकेगी ।कुछ ज़रा सा भी गड़बड़ होने की दशा में सवालों के कठघरे में भाजपा ही होगी !!!
फलाने तुझसे बैर नहीं पर ढिकाने तेरी ख़ैर नहीं !!!
DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.
अच्छा है किसी को तो समझ है कि क्या हो रहा है। जब समर्थकों का ही भरोसा नहीं तो भाजपा किसका समर्थन करे? पर लोग फिर भी कोसते रहेंगे।