देश की प्रथम आदिवासी महिला के राष्ट्रपति होने पर श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को अनगिनत बधाइयां और अभिनंदन और यह होना ही था क्योंकि अगर वी वी गिरि की उम्मीदवारी को छोड़ दिया जाए तो लगभग नीलम संजीव रेड्डी के अतिरिक्त कोई भी राष्ट्रपति निर्विरोध नहीं जीता है और सत्ता द्वारा समर्थित राष्ट्रपति का उम्मीदवार कभी हारा नहीं है। तो श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी को एनडीए का समर्थन था तथा आदिवासी महिला के नाम पर विपक्ष के मतों में बिखराव हुआ और श्रीमती मुर्मू को प्रथम आदिवासी महिला महामहिम होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । इसके लिए उन्हें कोटि कोटि बधाई। परंतु जो बात इस चुनाव में अनकही रह गई वह है यशवंत सिन्हा जी का विपक्षियों की ओर से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित होना। डॉ राजेंद्र प्रसाद के बाद कोई भी बिहार से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चर्चित नहीं रहा। एक बार शायद मिथिलेश कुमार नाम के एक व्यक्ति ने बिहार से पर्चा भरा था जब हम स्नातक विज्ञान की कक्षा के छात्र थे। उसके बाद बिहार का कोई भी नेता राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की तरफ नहीं बढ़ा क्योंकि बिहार का बेरोजगार युवा आईएएस बनना चाहता है और हर नेता प्रधानमंत्री बनना चाहता है। बिहार की राजनीति में शायद राष्ट्रपति और राज्यपाल बनने को राजनीति का लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड माना जाता है और लगभग राजनीतिक मृत्यु भी। महामहिम रामनाथ कोविंद जी का बिहार के राज्यपाल पद से सीधा रायसीना हिल्स तक का सफर जरूर बिहार की गलियारों से होकर रहा।
यशवंत जी का भारत के राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारी इस बात का प्रतीक है कि अब विपक्षियों के पास भी एक सार्वजनिक और सर्वसम्मत उम्मीदवारी के लिए कोई चमकीला चेहरा नहीं है इसीलिए भाजपा के रिजेक्टेड पीस या कहें भाजपाई कपड़ों के कटपीस यशवंत सिन्हा जी को विपक्ष ने राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया। इससे पहले ध्यान दें तो प्रधानमंत्री पद के लिए भी विपक्ष से कोई उम्मीदवार नहीं मिल पाता था और पूरी विपक्षी एकता किसी भगोड़े कांग्रेसी के पीछे लाइन लगाकर खड़ी होती थी चाहे वह मोरारजी देसाई हो चरण सिंह हो चंद्रशेखर या इंद्र कुमार गुजराल। सब के सब नेहरूवियन डीएनए के पारस को छू कर ही विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद के सोना उम्मीदवार साबित हुए। जिस पीवी नरसिम्हा राव ने नेहरूवियन डीएनए को धता बताकर प्रधानमंत्री की कुर्सी प्राप्त की उनके पार्थिव शरीर के लिए भी कांग्रेस मुख्यालय का दरवाजा नहीं खुला था। परंतु यशवंत सिन्हा के राष्ट्रपति पद के लिए साझा उम्मीदवारी की घोषणा ने यह सिद्ध कर दिया कि कांग्रेस की चाटुकारिता से अब राजनीतिक चरित्र में भारतीयता का बृहद परास असंभव है । अब भारतीय जनता पार्टी और आर एस एस के जमीनी कार्यकर्ताओं से ही भारतीय राजनीति को अखिल भारतीय चेहरा मिलेगा।
एक सुलझे हुए राजनेता और अर्थशास्त्री साथ ही नौकरशाह यशवंत सिन्हा जी के राजनैतिक सर्वोच्च पद के लिए विपक्ष की ओर से साझा समर्थन यह साबित करता है कि अब अखिल भारतीय राजनीति का हर तीसरा चेहरा कांग्रेस से ना होकर भाजपा से है।
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