आने वाले वक्त में आतंकी यासीन मलिक पर कई सारे नरेटिव गढ़े जाएंगे इसलिए आपको सरल और संक्षिप्त भाषा में यह जरूर पता होना चाहिए कि आखिर मलिक को सज़ा सुनाते वक़्त कोर्ट ने क्या कहा !!
कोर्ट ने कहा —-
मुजरिम (यासीन मलिक) 1994 से पहले तक हिंसक आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त था। उसका दावा है कि उसने 1994 में बंदूक़ छोड़ दी थी और उसके बाद वो एक राजनीतिक प्लेअर बन गया था जो इस बात से भी साबित होता है कि भारत सरकार ने उससे बातचीत की थी और उसे उसकी राय ज़ाहिर करने का मंच भी दिया जाता था।
इसे देखे तो ऐसा लगता है कि मुजरिम सुधार गया था। हालाँकि मेरी राय में मुजरिम में कोई सुधार नहीं हुआ था। ये सही है कि उसने 1994 में बंदूक़ छोड़ी, लेकिन उसने कभी भी उससे पहले की गई हिंसा पर पछतावा नहीं किया। जब उसने हिंसा का रास्ता छोड़ा, उसके बाद भारत सरकार ने उसे फ़ेस वैल्यू पर लिया और उसे सुधारने का मौक़ा दिया। विश्वास करते हुए बातचीत भी शुरू की हालाँकि मुजरिम ने हिंसा को नहीं छोड़ा।
सरकार के विश्वास को धोखा देते हुए उसने राजनीतिक संघर्ष की आड़ में सोची समझी हिंसा का दूसरा रास्ता अपनाया। मुजरिम ने दावा किया है की वो अहिंसा का गांधीवादी रास्ते पर चलने लगा और शांतिपूर्ण संघर्ष कर रहा था, लेकिन साक्ष्यों जिनके आधार पर उसके ख़िलाफ़ आरोप तय हुए हैं वो कुछ अलग ही बोल रहे हैं। पूरा आंदोलन हिंसात्मक योजना थी और बड़े पैमाने पर हिंसा हुई, ये भी तथ्य है।
जज ने कहा कि वो ये भी कहना चाहते हैं कि मुजरिम महात्मा के नाम लेकर उनके पथ पर चलने का दावा नहीं कर सकता क्योंकि उनके रास्ते पर हिंसा का कोई स्थान नहीं था ।

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