अखिल भारतीय संत परिषद् के अध्यक्ष, हिन्दू स्वाभिमान के संस्थापक यति नरसिंहानंद शायद अब हिन्दू स्वाभिमान का अर्थ भूल चुके हैं, धर्म सेना का गठन करने वाले इस अधर्मी ने मर्यादा की सभी सीमायें तोड़ते हुए अपने एक वीडियो में कहा कि “कांग्रेस के राज में महिला नेता केवल एक नेता विशेष की रखैल होती थीं, उसके बाद अखिलेश राज में भी महिलाओं की स्थिति ऐसी ही रही, मायावती राज में तो महिला की बात करने की किसी की हिम्मत नहीं हुई पर भाजपा शासन में एक महिला, नेता बनने के लिए कई नेताओं से सम्बन्ध बनाती है”

आप कल्पना कीजिये ये उस व्यक्ति के बोल हैं जो देवी माता के मंदिर का महंत है, भारतीय जनता पार्टी वो पार्टी है जिसने देश को सुषमा स्वराज जैसी मातृशक्ति से परिचित करवाया क्या ये उस दिवंगत माँ स्वरुप नेता का अपमान नहीं है? इन्ही नरसिंहानंद की जान जब हलक में अटकी थी, अपने जीवन की रक्षा के लिए गिड़गिड़ा रहे थे, उस समय भाजपा में कार्यरत कई माताओं ने अपने बच्चों को इनकी रक्षा करने के लिए भेजा था, उनकी उस दया का आज ये प्रतिउत्तर मिला, अपने आस पास की भीड़ को देखकर बौखला जाने वाला कोई संत तो नहीं हो सकता, स्त्री का अपमान करने वाला स्वयं को धर्मरक्षक कहे तो इस से अधिक हास्यास्पद और कुछ हो ही नहीं सकता।

मैं पूछना चाहूंगा नरसिंहानंद से की अब इस वक्तव्य के बाद वो क्या मुंह लेकर माँ दुर्गा के समक्ष जाएगा, किस मुंह से उन श्रीराम का नाम लेगा जिन्होंने नारी सम्मान के लिए तीनो लोकों पर राज करने वाले रावण और बाली को धूल में मिला दिया, किस मुंह से महादेव की उपासना करेगा जो स्वयं अर्धनारेश्वर कहलाते हैं, किस मुहं से श्रीकृष्ण की उपासना करेगा जिन्होंने 16000 स्त्रियों को अपना नाम देकर उनके सम्मान की रक्षा की थी? वास्तव में ये संत नहीं कोई बहरूपिया राक्षस है क्यूंकि इसके कर्म संतों वाले नहीं हैं, इसकी मानसिकता दूषित और चरित्र मैला हो चला है, अब इसका पतन निश्चित है अतः इस जैसे धूर्तों से दूर रहें।

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