4 सरकारी बैंक प्राइवेट होंगे:बैंक ऑफ महाराष्ट्र, बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक और सेंट्रल बैंक प्राइवेट होंगे, 6 महीने में प्रोसेस शुरू होगा

सरकार ने 4 सरकारी बैंकों को निजी बैंक बनाने के लिए चुन लिया है। इसमें से 3 बैंक छोटे हैं। एक बड़ा बैंक है। तीन छोटे बैंकों में बैंक ऑफ महाराष्ट्र, इंडियन ओवरसीज बैंक और सेंट्रल बैंक हैं। जबकि बड़ा बैंक है- बैंक ऑफ इंडिया। इनके प्राइवेटाइजेशन की प्रक्रिया शुरू होने में 5-6 महीने लगेंगे।

सरकार ने बजट में 2 बैंकों में हिस्सा बेचने की बात कही थी

सरकार ने बजट में 2 बैंकों में हिस्सा बेचने की बात कही थी, लेकिन मोदी सरकार देश में कुछ बड़े सरकारी बैंकों को ही चलाने के पक्ष में है। देश में बड़े सरकारी बैंकों में भारतीय स्टेट बैंक (SBI), पंजाब नेशनल बैंक (PNB), बैंक ऑफ बड़ौदा और कैनरा बैंक हैं। कुल 23 सरकारी बैंकों में से कई बैंकों को बड़े बैंकों में मिला दिया गया है। इसमें देना बैंक, कॉर्पोरेशन बैंक, अलाहाबाद बैंक और सिंडीकेट बैंक भी शामिल हैं।
हालांकि, सरकारी बैंकों को निजी बैंक बनाने से राजनीतिक दल बचते रहे हैं, क्योंकि इसमें लाखों कर्मचारियों की नौकरियों पर भी खतरा रहता है। हालांकि सरकार यह पहले ही कह चुकी है कि बैंकों को कम करने या निजी करने की स्थिति में कर्मचारियों की नौकरी नहीं जाएगी।

देश में छठवें नंबर पर है बैंक ऑफ इंडिया

देश में बैंक ऑफ इंडिया छठे नंबर का बैंक है, जबकि सातवें पर सेंट्रल बैंक है। इनके बाद इंडियन ओवरसीज और बैंक ऑफ महाराष्ट्र का नंबर आता है। बैंक ऑफ इंडिया का मार्केट कैपिटलाइजेशन 19 हजार 268 करोड़ रुपए है, जबकि इंडियन ओवरसीज बैंक का मार्केट कैप 18 हजार करोड़, बैंक ऑफ महाराष्ट्र का 10 हजार 443 करोड़ और सेंट्रल बैंक का 8 हजार 190 करोड़ रुपए है।

इंडियन ओवरसीज बैंक की स्थापना 10 फरवरी 1937 को हुई थी। इसकी कुल 3800 शाखाएं हैं। बैंक ऑफ इंडिया 7 सितंबर 1906 को बना था। यह एक प्राइवेट बैंक था। 1969 में 13 अन्य बैंकों को इसके साथ मिलाकर इसे सरकारी बैंक बनाया गया। 50 कर्मचारियों के साथ यह बैंक शुरू हुआ था। इसकी कुल 5,089 शाखाएं हैं। बैंक ऑफ महाराष्ट्र 1840 में शुरू हुआ था। उस समय इसका नाम बैंक ऑफ बॉम्बे था। यह महाराष्ट्र का पहला कमर्शियल बैंक था। इसकी 1874 शाखाएं और 1.5 करोड़ ग्राहक हैं। सेंट्रल बैंक 1911 में बना था। इसकी कुल 4,969 शाखाएं हैं।

यूनियन के विरोध का डर

सरकार को डर है कि बैंकों को बेचने की स्थिति में बैंक यूनियन विरोध पर उतर सकती हैं, इसलिए वह बारी-बारी से इन्हें बेचने की कोशिश करेगी। बैंक ऑफ इंडिया के पास 50 हजार कर्मचारी हैं जबकि सेंट्रल बैंक में 33 हजार कर्मचारी हैं। इंडियन ओवरसीज बैंक में 26 हजार और बैंक ऑफ महाराष्ट्र में 13 हजार कर्मचारी हैं। इस तरह कुल मिलाकर एक लाख से ज्यादा कर्मचारी इन चारों बैंकों में हैं। बैंक ऑफ महाराष्ट्र में कम कर्मचारी हैं, इसलिए इसे प्राइवेट बनाने में आसानी रहेगी।

बड़े बैंकों में सरकार कंट्रोल अपने पास ही रखेगी

सरकार बड़े बैंकों में अपनी ज्यादातर हिस्सेदारी रखेगी, ताकि उसका नियंत्रण बना रहे। सरकार कोरोनाकाल के बाद काफी बड़े पैमाने पर बैंकों में सुधार करने की योजना बना रही है। सरकार इन बैंकों को NPA से भी निकालना चाहती है। अगले वित्त वर्ष में सरकारी बैंकों में 20 हजार करोड़ रुपए डाले जाएंगे, ताकि ये बैंकिंग रेगुलेटर के नियमों को पूरा कर सकें। कुछ ऐसे सरकारी बैंक हैं जो अभी भी PCA के दायरे में हैं।

रिजर्व बैंक किसी बैंक को PCA में तब लाता है जब बैंक की स्थिति खराब हो और नियमों को पूरा न करता हो। फिर जब बैंक नियमों को पूरा कर लेता है तो PCA से बाहर हो जाता है। PCA के दौरान बैंक नई शाखाएं नहीं खोल सकता और नया लोन नहीं दे पाता है।

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