मशहूर फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत जिन्हे हाल ही में पदमश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है, उन्होंने अचानक यह बयान देकर कि “देश को असली आज़ादी 1947 में नहीं, बल्कि 2014 में मिली है”, देश में एक बड़ा सियासी घमासान मचा दिया है. काफी संख्या में लोग कंगना के समर्थन में उतर आये हैं और कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्हे कंगना के इस बयान से खासी तकलीफ हो रही है.
आइये अब समझते हैं कि कंगना के इस बयान के मायने क्या हैं और उनके इस बयान में कितनी सच्चाई है. कंगना के बयान को विश्लेषण की उद्देश्य से दो हिस्सों में बांटा जा सकता है. पहले तो हम इस बात की पड़ताल कर लेते हैं कि हमारे देश को 1947 में आज़ादी मिली भी या नहीं. हालांकि देश के ज्यादातर लोग 15 अगस्त 1947 को देश का स्वतंत्रता दिवस मनाते भी हैं और इस खुशफहमी में भी हैं कि हमारे देश को इस दिन आज़ादी मिल गयी थी लेकिन हकीकत इसके एकदम विपरीत है.
दरअसल अंग्रेज लोग भारत में बढ़ते उनके खिलाफ विरोध और विद्रोह के चलते खुद ही भारत को छोड़ने का मन बना चुके थे लेकिन वह जल्दबाज़ी में भारत को छोड़ना नहीं चाहते थे. उन्हें किसी ऐसे संगठन की तलाश थी जो नाम से तो भारतीय हो लेकिन उन्ही की बतायी गयी नीतियों के ऊपर काम करता हुआ आगे भी इस देश को उसी तरह चलाये जिस तरह से खुद अंग्रेज इस देश को अब तक चलाते आये थे. इन सारी बातों को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश पार्लियामेंट ने 18 जुलाई 1947 को एक कानून पास किया किया जिसका नाम था इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट,1947. इस कानून में यह प्रावधान किया गया था कि 15 अगस्त 1947 से “ब्रिटिश इंडिया” को दो हिस्सों में बाँट दिया जाएगा. एक हिस्सा “इंडिया” के नाम से जाना जायेगा और दूसरा हिस्सा “पाकिस्तान” के नाम से जाना जायेगा. लेकिन इन दोनों हिस्सों पर ब्रिटिश सरकार का कंट्रोल बदस्तूर जारी रहेगा क्योंकि इस कानून के हिसाब से 15 अगस्त 1947 के दिन से इंडिया और पाकितान दोनों ही ब्रिटिश हुकूमत के “अधिराज्य” यानी डोमिनियन घोषित कर दिए गए थे. आप लोगों को यह सब पढ़कर अजीब जरूर लग रहा होगा, लेकिन कांग्रेस पार्टी ने हम लोगों को गलत इतिहास लिखवाकर पढ़ाया है इसलिए हम लोग हकीकत से पूरी तरह अनजान हैं. इस बात की पुष्टि इस बात से भी होती है कि 28 अप्रैल 1948 को जवाहर लाल नेहरू ने खुद ब्रिटिश महारानी को एक पत्र लिखकर उनसे अपने मंत्रिमंडल नियुक्त करने एवं भारत का गवर्नर जनरल नियुक्त करने की परमिशन भी माँगी थी और इस पत्र में जवाहर लाल नेहरू ने अपने नाम के नीचे लिखा था -“प्राइम मिनिस्टर ऑफ़ द डोमिनियन ऑफ़ इंडिया”.
अब समझिये कि जब नेहरू खुद 1948 को ब्रिटिश महारानी को लिखे गए पत्र में अपने आप को इंडिया का प्राइम मिनिस्टर नहीं, बल्कि “प्राइम मिनिस्टर ऑफ़ डोमिनियन ऑफ़ इंडिया” बता रहे हैं तो देश को आज़ादी 1947 में मिलने की बात एकदम हास्यास्पद ही कही जाएगी.
आप सबकी जानकारी के लिए बताते चलें कि भारत को सम्पूर्ण आज़ादी 26 जनवरी 1950 को मिली थी और पाकिस्तान को पूर्ण आज़ादी और बाद में यानि 1956 में मिली थी. हमारा देश 15 अगस्त 1947 को आज़ाद नहीं हुआ था. जिस तरह से कांग्रेस के चाटुकार इतिहासकारों ने इतिहास के नाम पर मनगढंत कहानियां देश के सामने परोसी हैं, यह झूठ भी उन तमाम झूठों में से एक है. कांग्रेस कंगना के ऊपर इसीलिए बहुत तेजी से हमलावर है क्योंकि कांग्रेस और उसके इतिहासकारों का परोसा गया झूठ देश की सवा सौ करोड़ जनता के सामने यकायक आ गया है.
अब कंगना रनौत के बयान के दूसरे हिस्से की तरफ आते हैं जिसमे उन्होंने कहा है कि देश को असली आज़ादी 2014 में मिली है. जैसा कि मैंने पहले भी लिखा है कि 1942 के बाद से ही अंग्रेज हुकूमत हमारे क्रांतिकारियों के संघर्ष और अंग्रेजो के खिलाफ चल रहे विरोध और विद्रोह के चलते बैकफुट पर आ गयी थी और देश से निकलने का कोई सम्मान जनक तरीका तलाश रही थी, क्योंकि अब उनका भारत में रहना आर्थिक रूप से भी अलाभप्रद हो चला था. लेकिन वह जल्दबाज़ी में यह सब नहीं करना चाहती थी. उन्होंने इसके लिए बाकायदा 1947 में ब्रिटिश पार्लियामेंट में एक कानून पास किया और उस पर 15 अगस्त 1947 से अपनी साज़िश को अंजाम देना शुरू कर दिया. ज्यादातर क्रन्तिकारी जिनकी वजह से अंग्रेज भारत छोड़ने पर मजबूर हुए थी, या तो उन्हें ब्रिटिश हुकूमत ने फांसी पर लटका दिया था या उन्हें और किसी तरीके से अपने रास्ते से हटा दिया गया था. अंग्रेजों को तो भारत में कोई ऐसा भारतीय संगठन या व्यक्ति चाहिए था जो उनकी बनाई नीतियों के हिसाब से ही उन्ही की तरह इस देश पर अपनी हुकूमत कायम रख सके. नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी में अंग्रेजों को यह सारी खूबियां नज़र आईं और उन्होंने एक तरह से धीरे धीरे “सत्ता का हस्तांतरण” नेहरू और कांग्रेस को कर दिया और 15 अगस्त 1947 को नेहरू को “प्राइम मिनिस्टर ऑफ़ डोमिनियन ऑफ़ इंडिया” बना दिया.
अपने भाड़े पर रखे हुए इतिहासकारों से मनगढंत इतिहास लिखवाकर कांग्रेस देश को आज तक गुमराह करती रही कि देश 15 अगस्त 1947 को आज़ाद हो गया और यह आज़ादी कांग्रेस पार्टी ने देश को दिलवाई है. जबकि देश को आज़ादी दिलाने में कांग्रेस पार्टी का दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है. जिन लोगों की वजह से देश को आज़ादी मिली है, उन वीर और महान क्रांतिकारियों को अंग्रेजो ने और कांग्रेस ने अपने रास्ते से बहुत पहले ही हटा दिया था.
देश में 2014 तक जितनी भी सरकारें बनी थीं, उन सब सरकारों को कांग्रेस या उसके सहयोगियों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष समर्थन था. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार भी कई पार्टियों की मिली जुली सरकार थी जिसमे फारूक अब्दुल्ला जैसे कांग्रेस के कई सहयोगी सरकार में शामिल थे. देश में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2014 में पहली सरकार ऐसी बनी थी जिस पर कांग्रेस पार्टी या उसके किसी सहयोगी दल का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई कंट्रोल नहीं था और इसलिए अगर यह कहा जाए कि 2014 में पहली बार ऐसी सरकार आयी थी जिसने अंग्रेज हुकूमत द्वारा स्थापित सत्ता को केंद्र से हटा फेंका था, तो उसमे कुछ भी गलत नहीं है और उस पर किसी भी समझदार व्यक्ति को कोई ऐतराज़ भी नहीं होना चाहिए.
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