श्रावण मास अर्थात त्योहार का महीना है। श्रावण का पहला पर्व है ‘नागपंचमी’! हर साल श्रावण शुक्ल पक्ष पंचमी अर्थात नाग पंचमी को नाग पूजन किया जाता है ताकि हमारा परिवार हमेशा के लिए नाग के भय से मुक्त हो जाए और नाग देवता की कृपा भी प्राप्त हो। इस वर्ष 13 अगस्त को नागपंचमी है। इस दिन कुछ जगहों पर मिट्टी के नाग को लाकर पूजा की जाती है तो कुछ जगहों पर वारुला की पूजा की जाती है। इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं। वे नए वस्त्र और आभूषण पहनकर नाग देवता की पूजा करती हैं और उन्हें दूध चढाती  हैं। इस दिन कुछ काटना, चीरना वर्जित माना जाता है। सनातन संस्था द्वारा संकलित इस लेख में हम नागपंचमी के इतिहास और महत्व को देखेंगे। इस वर्ष भी कुछ जगहों पर कोरोना की पृष्ठभूमि में हमेशा की तरह नागपंचमी मनाने की सीमा हो सकती है। इस लेख में चर्चा की गई है कि ‘आपाद धर्म के अंतर्गत  घर पर यह त्योहार कैसे मनाया जाए, जहां आपातकाल (कोरोना संकट) के समय घर के बाहर वरुला की पूजा करना संभव नहीं है।

नागपंचमी का इतिहास

सर्पयज्ञ करने वाले जनमेजय राजा को आस्तिक नामक ऋषि ने प्रसन्न किया। जब जनमेजय ने कहा, ‘वर मांगो’, तो उन्होंने सर्पयज्ञ रोकने के लिए कहा। जनमेजय ने सर्प यज्ञ को रोका, उस दिन पंचमी थी।

शेषनाग ने पृथ्वी को अपने माथे पर धारण किया है। वह रसातल में रहता है। उसके पास  हजार नुकीले फन हैं। प्रत्येक फन पर एक हीरा है। इसकी उत्पत्ति भगवान विष्णु के तमोगुण से हुई है। प्रत्येक कल्प के अंत में भगवान विष्णु महासागर में शेषासन पर शयन करते हैं। त्रेतायुग में भगवान विष्णु ने राम के रूप में अवतार लिया था। तब शेष ने लक्ष्मण का अवतार लिया। द्वापर और कलयुग के संधिकाल में कृष्ण ने अवतार लिया। उस समय शेष बलराम थे।

यमुना में भगवान कृष्ण ने कालिया नाग को हराया था। उस दिन श्रावण शुद्ध पंचमी थी।

पांच युग पहले सत्येश्वरी नाम की एक कनिष्ठ देवी थी। सत्येश्वर उनके भाई थे। नागपंचमी के एक दिन पहले सत्येश्वर की मृत्यु हो गई। सत्येश्वरी ने अपने भाई को नाग रूप में देखा। तब उसने नागरूप को अपना भाई माना। उस समय नाग देवता ने वचन दिया था कि जो बहन मुझे भाई मानकर पूजा करेगी, उसकी मैं रक्षा करूंगा। इसलिए हर महिला उस दिन नाग की पूजा कर नागपंचमी मनाती है।

नागपूजन का महत्व
नाग में जो श्रेष्ठ अनंत वो मैं हूं, ऐसे गीता (10.29) में भगवान कृष्ण ने बताया है।

अनंत वासुकिं शेषं पद्मनाभम च कंबलम।
शंखपालं धृतराष्ट्र तक्षक, कलियं तथा।

अर्थात

अनंत, वासुकी, शेष, पद्मनाभ, कंबल, शंखपाल, धृतराष्ट्र, तक्षक और कालिया ऐसे नागों की नौ प्रजातियों की पूजा की जाती है। इसलिए न तो सांपों का भय रहता है और न ही विषबाधा का।’

 नागपंचमी के दिन व्रत का महत्व – नागपंचमी के एक दिन पहले सत्येश्वर की मृत्यु हो गई। इसलिए भाई के शोक में सत्येश्वरी ने अन्न ग्रहण नहीं किया । इसलिए उस दिन महिलाएं भाई के नाम पर व्रत रखती हैं। ‘भाई  दीर्घायु  और उसके पास कई हथियार/शस्त्र हों और वह हर दुःख और संकट से बच जाए’, उपवास के पीछे का एक कारण यह भी है। नागपंचमी के एक दिन पहले, यदि हर बहन अपने भाई के लिए देवताओं से प्रार्थना करती है, तो इससे उसके भाई को लाभ होता है और उसकी रक्षा होती है।

निषेध – नागपंचमी के दिन कुछ भी न काटें, न चीरें, न तलें, चुल्हे पर तवा न रखें आदि। इस दिन खुदाई न करें।

आपात स्थिति में नाग देवता की पूजा कैसे करें?

नाग देवता का चित्र : दीवार या थाली पर हल्दी चंदन (या नौ नागों के चित्र) से नाग का चित्र बनाएं और उस स्थान पर नाग देवता की पूजा करें।

अनंतदिनागदेवताभ्यो नमः।’ इस नाम मंत्र का उच्चारण करते हुए गंध, फूल आदि सभी उपचारों को समर्पित करना चाहिए।

षोडशोपचार पूजन : जो लोग नाग देवता की षोडशोपचार पूजा कर सकते हैं, उन्हें षोडशोपचार पूजा करनी चाहिए।

पंचोपचार पूजन: जो लोग नागदेवता की षोडशोपचार पूजा नहीं कर सकते हैं, उन्हें परिवार की परंपरा के अनुसार दूध, चीनी, लहिया, साथ ही खीर आदि का भोग लगाकर ‘पंचोपचार पूजा’ करनी चाहिए। (पंचोपचार पूजा: गंध, हल्दी-कुंकू, फूल (दूर्वा, तुलसी, बेल यदि उपलब्ध हो) धूप, दीप और नैवेद्य।

पूजा के बाद नाग देवता से प्रार्थना करे !
  ‘हे नागदेवता, मैंने यह नाग पूजन श्रावण शुक्ल पक्ष पंचमी को किया है।  इस पूजन से नागदेवता प्रसन्न हो कर मुझे निरंतर सुख मिले । हे नाग देवताओं, इस पूजन में जाने या अनजाने में मुझ से कुछ कम ज्यादा हुआ हो तो क्षमा करें। आपकी कृपा से मेरी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों। मैं प्रार्थना करती हूं कि मेरे परिवार में कभी भी नाग के विष का डर न रहे।’

चेतन राजहंस,राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था

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