जहाँ एक ओर सम्पूर्ण विश्व अपने इतिहास को जानने के लिए करोड़ो रूपए खर्च कर रहा है वहीं दूसरी ओर भारतवर्ष में बेहद ही गंभीर और ऐेतिहासिक विवाद को सुलझाने के लिए कोर्ट एक राष्ट्रीय स्मारक में बंद २२ दरवाजों को खोलने की अनुमति भी नहीं दे रहा है।
देश का न्यायिक व्यवस्था ना जाने क्यों इतने गंभीर विषयो को कभी भी गंभीरता से नहीं समझता? जबकि यही न्यायिक व्यवस्था याकुब मेनन जैसे आतंकवादियों के लिए सुबह के ३ बजे सर्वोच्च कोर्ट खोलने के लिए तैयार रहता है और शायद यही वजह है कि विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के बावजूद अधिकतर भारतीयों का विश्वास देश की न्यायिक व्यवस्था से खत्म हो रहा है इसीलिए एक आम नागरिक कोर्ट के मामलों से दूर भागता है और कहीं ना कहीं देश में बढ़ते भ्रष्टाचार का एक कारण यह भी है।
देश का सर्वोच्च कोर्ट खुद के घर से बेघर हुए और खुद के ही देश में प्रवासी जैसा बर्ताव सहने वाले कश्मीरी हिंदुओ की याचिका पर एक बार सुनवाई करने से इंकार कर सकता है लेकिन भारतवर्ष में अवैध रूप से रह रहे रोहंगियाओ द्वारा किये गए अवैध अतिक्रमणों का विध्वंस रोकने के लिए सर्वोच्च कोर्ट कुछ ही मिनटों में अपना फैसला सुना देती है।
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