वर्त्तमान समय में छदम युद्ध लड़े जाते हैं, इसी का भाग है वैचारिक लड़ाई। इसमें राष्ट्र विरोधिओं द्वारा समाज में वैचरिक विष से भ्रम का जाल बुना जाता है। इसके लिए मनस को प्रभावित करने वाले सिनेमा, नवीन संचार, समाचार, साहित्य आदि को उपकरण बनाया जाता है। चलिए प्रयास करते हैं समझने का।
आपने अभिनेत्री तापसी पन्नू की “प्रवासी” नामक चलचित्र युक्त कविता अवश्य ही देखी होगी। सामान्य मनुष्य की भांति, हमारे श्रमिक भाई बहनों की ऐसी परिस्थिति देख, आपका हृदय भी विचलित हुआ होगा। आपने तापसी के इस प्रयास की सराहना भी की होगी। सबसे महत्वपूर्ण चरण, आपने भी प्रशासन को जी भरकर कोसा होगा और इसे प्रसारित करने में भी सहयोग किया होगा।
किन्तु किन्तु किन्तु
क्या आपने उसमे छिपे प्रपंच को समझने का प्रयास किया। क्या आपने उसके आंकलन का प्रयास किया। संभवतः आपमे से अधिकांश का उत्तर नहीं हो सकता है। आइये तनिक धैर्य के साथ समझने का प्रयास करते है।
हम तो बस प्रवासी हैं, क्या इस देश के वासी है
सर्वप्रथम प्रवासी का अर्थ समझिये, जो अपना स्थान बदल कर रहते है, यहाँ सन्दर्भ में प्रवासी श्रमिकों (मुख्यतः देहाड़ी श्रमिक) से है जो अपने राज्य से दूसरे राज्य आते है जीविका के लिए। यहाँ तापसी उनके देश का निवासी होने पर ही प्रश्न कर रही हैं। ये कहाँ का मूर्खतापूर्ण तर्क है, तापसी को छोड़कर, उनके भारतीय होने में किसको भी लेश मात्र संदेह नहीं है। महामारी में किसी भी परिस्थितिवश अगर भारतीयों को स्थान परिवर्तन करना पड़े तो क्या आप उनके भारतीय होने पर ही प्रश्न करेंगे। पहले जातीय, भाषाई, प्रांतीय होता था, अब जीविका को आधार बनाकर पर समाज में फूट डाल भेद उत्पन्न करना है। हमारे श्रमिक वर्ग के भाई बहनो को देश से कटा हुआ प्रदर्शित करना है।
हिन्दू नरसंहार के बाद ३० वर्षों से विस्थापित कश्मीरी हिन्दुओं के साथ जघन्य अपराध एवं घोर अन्याय हुआ है। तब यह प्रश्न तापसी को क्यों परेशान नहीं करता की, क्या कश्मीरी हिन्दू इस देश के वासी नहीं है।
अगर हम नहीं हैं इंसान, तो मार दो हमे, दे दो फरमान
सर्वप्रथम आप इन {अगर हम नहीं हैं इंसान, तो मार दो हमे, दे दो फरमान} शब्दों का चयन देखिये सरकार को फ़ासिस्टवादी बताना। यह दृश्य विशेष देखिये जिसमे एक माँ अपने बच्चे को ट्राली बैग पर खींचते हुए पैदल चल रही है, अत्यंत मार्मिक एवं ह्रदय विदारक है। किन्तु प्रश्न यह है की मात्र इस दृश्य विशेष को ही क्यों चुना गया पूरा सन्दर्भ क्यों नहीं बताया गया। जब आप इस दृश्य की पूरी चलचित्र को देखेंगे तो आपको ज्ञात होगा की, वह माँ और बच्चा एक छोटे (४-५) श्रमिक समूह या परिवार का हिस्सा थे, तथा स्थानीय लोगो ने उन्हें रोक कर समझाया भी की “पास के बस स्टेशन से प्रशासन ने यात्रा की व्यवस्था की है उसका उपयोग करें” किन्तु वे उपेक्षा करके चले जाते हैं। ऐसी विषम परिस्थिति में मानसिक थकान होना स्वाभाविक है। ऊपर से जब देश द्रोही झुठा प्रपंच फैला रहे हों, सामान्य श्रमिक वर्ग में बेचैनी होना स्वाभाविक है। तापसी क्यों वास्तविक्ता एवं तथ्यों से ध्यान भटका कर, भावनात्मक रूप से झूठ को प्रसारित करना चाहती हैं। किन्तु तापसी, सरकार विरोधी पत्रकारों द्वारा, कोरोना की इतनी विषम परिस्थिति में भी, श्रमिकों से “photo pose” मांगने एवं “fake photo narrative create” करने पर चुप्पी साध लेती है।
खाने को तो कुछ ना मिल पाया, भूख लगी तोह डंडा खाया
इस दृश्य विशेष को देख कर एक प्रचलित भाव हृदय में आ ही जायेगा की POLICE तो ऐसी ही होती है – भ्रष्ट एवं अमानवीय। किन्तु सन्दर्भ जाने बिना आक्षेप लगाना क्या सही है। POLICE एक राष्ट्रीय स्तर की संस्था है, यह एक व्यक्ति मात्र नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण यह महामारी एक असामान्य परिस्थिति है। प्रशासन ने जनता के बचाव को ध्यान में रखते हुए सम्पूर्ण बंद का आदेश दिया है, तो POLICE का दायित्व है उस आदेश का पालन करना, जिसे उन्होंने भलीभांति निभाया भी है।
हम सभी ने देखा है , कैसे POLICE ने इस महामारी की विषम परिस्थिति में मानवीय मूल्यों के साथ अपने कर्तव्यों का पालन किया है। जब हम सभी अपने-अपने घरों में सुरक्षित बैठे थे, तब यही POLICE अपने परिवार से दूर होकर कार्य कर रही थी। अपने ही घर के द्वार पर अपने बच्चे परिवार से दूर रहना सरल नहीं होता, महामारी के समय सड़क किनारे बैठ कर भोजन करना सरल नहीं होता, कोरोना की शंका को जानते हुए भी भीड़ का प्रबंधन करना सरल नहीं होता।
किन्तु कुछ नागरिक महामारी में देश बंदी के नियम तोड़ने में व्यस्त थे, ऐसे नागरिकों पर आप ही बताईये POLICE को क्या कार्यवाही नहीं करनी चाहिए। एक विशेष समुदाय के नागरिकों ने महामारी में चिकित्सकों एवं प्रसाशन पर थूका, पत्थर से प्रहार किया, ऐसे नागरिकों पर आप ही बताईये तापसी, POLICE को क्या कार्यवाही नहीं करनी चाहिए।
राजस्थान की ग़ैर बीजेपी शासित राज्य की POLICE ने भी श्रमिकों पर निर्ममता से लाठी बरसाई थी , तापसी ने उसके दृश्य क्यों सम्मिलित नहीं किये। महामारी जैसी विषम स्थिति में तापसी क्यों तथ्यों को तोड़मोड़ कर केंद्रीय प्रशासन एवं POLICE संस्था को नकारात्मक रूप से प्रस्तुत कर रही हैं। ग़ैर बीजेपी शासित राज्यों द्वारा इस संकट की स्थिति में भी सहयोग ना करने पर तापसी मौन क्यों है।
फासले तय किये हज़ारो मील के, कुछ साइकिल पर कुछ पैर नगें
आइये सर्वप्रथम इस दृश्य में चित्रित १२००० किलोमीटर साइकिल चलने वाली ज्योति की कथा एवं घटना क्रम समझते हैं। ज्योति और उसके पिता उनके मकान मालिक का किराया न दे पाने के कारण, गांव वापस जाने को विवश हुए ज्योति के परिवार की सहमति नहीं थी, किन्तु ज्योति की हठ के आगे उन्हें झुकना पड़ा। महामारी से देश बंदी में, ज्योति के पिता को १००० रुपया केंद्र सरकार एवं १००० रुपया बिहार सरकार से भी मिला। जब ज्योति ने साइकिल भी सीखी थी, वो भी नितीश सरकार की किसी योजना के अंतर्गत मिली थी। उनकी यात्रा में अनेकों बार स्थानीय लोगो ने एवं ट्रक चालकों से ज्योति और उसके पिता को सहायता प्राप्त हुई थी। अतंतः ज्योति के इस विषम परिस्थिति में उभरी योग्यता के बल पर उसे Cycle Fedration of India की ओर से नेशनल cycling acedamy में प्रशिक्षु चुने जाने का एक अवसर प्राप्त हुआ, स्वयं इवांका ट्रम्प ने ज्योति को सराहना करते हुए, भारत के लोगो के धीरज और प्रेम को सुन्दर बताया। तापसी द्वारा इस पूरे घटना कर्म में सरकार पर दोषारोपण करना कहाँ तक उचित है।
अनेकों उदहारण में एक यह सुनिये, एक श्रमिक भाई ने पूरे परिवार के साथ मध्य प्रदेश से राजस्थान तक निःशुल्क यात्रा की और मोदी सरकार को धन्यवाद दे रहा है। तापसी घटनाक्रम को नकारात्मक ही क्यों दर्शाना चाहती हैं, सरकार के प्रयासों से लाभान्वित श्रमिक भाई बहनों के पक्ष को इन्होंने क्यों नहीं दिखाया।
विचारणीय यह है की , “क्यों , किन कारणों से श्रमिकों को गृहनगर लौटने के लिए विवश होना पड़ा”। किसने विवश किया श्रमिकों को पलायन करने के लिए, किसने फ़र्ज़ी अनाउंसमेंट करवाए ? दिल्ली में किसने रात्रि में माइक पर कहा आनंद विहार बसअड्डे पर अपने घरों तक जाने के लिए बसें खड़ी हैं। देश बंदी का राष्ट्रीय आदेश होने का बाद भी, बसअड्डे तक पहुँचाने के लिए क्यों DTC की बसें लागई गयीं। जनता को राज्य सीमा पर कोरोना के खतरे से मरने के लिए क्यों भेजा गया। मुंबई के बांद्रा पर किस षडयंत्र के अंतर्गत भीड़ को एकत्र किया गया । क्यों ग़ैर बीजेपी शासित राज्यों ने प्रारम्भ में ही कोरोना से लड़ने में केंद्र सरकार के प्रयासों पर सहयोग नहीं किया।
किस षडयंत्र के अंतर्गत श्रमिकों के दिल्ली में बिजली-पानी के कनेक्शन काट दिए गए। लॉकडाउन के दौरान उन्हें भोजन, दूध नहीं मिला जिस कारण भूखे लोग सड़कों पर उतरे। किसने भोजन और चिकित्सा की व्यवस्था नहीं की, वीडियो बनाकर बस याचना करते रहे श्रमिक।
केंद्र सरकार विरोधी, पश्चिम बंगाल की राज्य सरकार ने कैसे संसद के लोकतांत्रिक चुने हुए सदस्य “बीजेपी के जॉन बरला” को नज़रबंदी बनाया हुआ था, मात्र इसीलिए की वो श्रमिकों की सहायता न कर सके। जिसके विरोध में वो धरने पर भी बैठे थे।
तापसी श्रमिक पालयन के मूल कारण पर मौन क्यों हैं । महामारी नियंत्रण में केंद्र सरकार के प्रयासों को विफल क्यों करना चाहती हैं, देश में अराजकता क्यों बढ़ाना चाहती हैं। वास्तविक्ता को क्यों छुपाया जा रहा है, तथ्यों को तोड़ मोड़ कर या आधा-अधुरा क्यों प्रस्तुत किया जा रहा है। जो भीड़ मीडिया में दिखाई जा रही थी, क्या किसी ने षड़यंत्र के अंतर्गत उन्हें भड़काया था , पलायन को विवश किया था। प्रथम दृष्टाय प्रश्न अनेक है , जिनके उत्तर देश द्रोही प्रपंच प्रसारित करने वाले गुटों को देने होंगे।
मरे कई भूख से और कई धूप से, पर हिम्मत न टूटी बड़ों के झूठ से
फरवरी में कोरोना के केंद्र चीन ने कोरोना से लड़ने के अपने अतिवाद में चोंगकिंग नगर में “disinfectant tunnels” लगवाए थे। ये tunnels “Infra Red” तकनीकि से युक्त मानव पर वायरसनाशक का छिड़काव करने के लिए थे। जिसे सभी सामान्य सामूहिक स्थानों पर लगाया गया था।
दूसरे देशों ने भी इसका अनुगमन किया। भारत में भी सकारात्मक दृष्टि से प्रयोग किया गया, किन्तु बाद में मंत्रालय ने परामर्श के बाद इसे हटावा दिया। आपको समझना होगा की कोरोना महामारी अपने आप में कितनी विकट परिस्थिति है पूरा विश्व इस प्रकार की स्थिति का प्रथम बार सामना कर रहा है। किसी को भी ठीक से नहीं पता की कैसे इससे निपटा जाये , समय की आवश्यकता के अनुरूप शनै-शनै हम सभी अपने आप को ढाल रहे हैं। ऐसे में अगर प्रसाशन ने जनता की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए, कुछ निर्णय ले लिए तो इसमें क्या आपत्ति है क्या आप वायरस नाशक “hand sanitizer” अपने हाथों पर प्रयोग नहीं करते। सबसे महत्वपूर्ण इस प्रकार छिड़काव से किसी को जीवन संकट का सामना नहीं करना पड़ा है। तो इसे क्यों ऐसे प्रदर्शित किया जा रहा है जैसे कितना बड़ा अपराध हो। अगर ये अपराध है तो इस तर्क से कोरोना वैक्सीन का मानव पर प्रयोग भी अपराध ही माना जायेगा।
क्यों तापसी ने मात्र, उत्तर प्रदेश में हुए छिड़काव वाली घटना को ही चित्रण के लिए ही चुना, किन्तु ग़ैर बीजेपी शासित केरल प्रशासन द्वारा किये गए मानव पर हुए छिड़काव वाली घटना को नहीं।
ग़ैर बीजेपी शासित मुंबई में जीवाणुनाशक के स्थान पर पानी का प्रयोग किया गया, ये मुम्बईकर के जीवन से खिलवाड़ क्यों नहीं लगता तापसी को, यह विचार का विषय क्यों नहीं है, इस प्रकार की घटनाओ पर तापसी का ज्ञान कहाँ है। क्या तापसी बीजेपी एवं ग़ैर बीजेपी राज्यों में भेद करती हैं।
जीवाणुनाशक पर मूर्खता पूर्ण भ्रमित चित्रण दर्शाता है की, तापसी की वैज्ञानिक समझ का स्तर कितना निम्न है। साथ ही साथ यह तापसी की मंशा पर भी संदेह उत्पन्न करता है।
बस से भेज कर, रेल से भेज कर, जान खो बैठे रास्ते भूल कर
२५ लाख श्रमिक तो मात्र उत्तर प्रदेश वापस आये हैं । तो आप स्वयं विचार करे कितनी बड़ी श्रमिक जनसंख्या ने कोरोना महामारी के समय अपने अपने गृहनगर वापसी की है। प्रशासन के लिए कितनी विकट चुनौती रही है।
विचारणीय यह है की, किसने केंद्र सरकार के श्रमिकों की सुरक्षित यात्रा से सम्बंधित सार्थक प्रयासों को विफल करने का प्रयास किया। महामारी के काल में भी, क्यों विपक्ष की राज्य सरकारें केंद्र का सहयोग नहीं कर रही थी। क्यों विपक्ष की राज्य सरकारें श्रमिकों से यात्रा शुल्क ले रही थी। वह भी तब जब केंद्र सरकार ने ८५ % व्यय स्वयं वहन किया, मात्र १५% राज्य सरकारों पर छोड़ा था।
दिल्ली की सीमा बंदी होने के बाद भी, क्यों कांग्रेस के दिल्ली प्रमुख नियमों का उल्लंगन करके, श्रमिकों को दिल्ली की सीमा पर छोड़ कर आ रहे थे। क्यों पश्चिम बंगाल सरकार ने अजमेर शरीफ से तो श्रमिकों को वापस लिया, किन्तु शेष स्थानों से नहीं। स्वयं कैलाश विजय वर्गीस जी ने इस विषय को सोशल मीडिया पर उठाया। पश्चिम बंगाल सरकार ने आंध्रप्रदेश में फँसे हुए श्रमिकों को गृहनगर ले जाने की, अनुमति क्यों नहीं दी थी। क्यों श्रमिकों को पश्चिम बंगाल की सीमा पर रोक कर रखा गया। श्रमिकों के गृहनगर लौटने में विलंब करने से पश्चिम बंगाल की राज्य सरकार का क्या हित सिद्ध हो रहा था। क्या यह ग़ैर बीजेपी राज्यों की देश में अराजकता प्रसारित करने की मंशा नहीं दर्शाति थी।
पंजाब और दिल्ली के श्रमिकों राज्य सरकार ने कोई सहायता क्यों नहीं की। यहॉँ तक की इन्हे मार पीटा भी गया भोजन देना तो दूर की बात है। उत्तर प्रदेश सीमा से इन्हे भोजन पानी मिला। किन्तु प्रसारित क्या किया जा रहा है केंद्र सरकार ने कुछ काम नहीं किया। अधिकतर समाचार शीर्षक मोदी के विरोध में हैं, किन्तु वास्तविक समस्या को छुपा देते हैं। ध्यान से देखने पर आपको समझ आएगा की कैसे श्रमिक भाई बहन ग़ैर बीजेपी शासित राज्यों में उनके साथ हुए दुर्व्यवहार की जानकारी दे रहे हैं , किन्तु समाचार की शीर्षक मोदी विरोधी लिखी जा रही है। यही छदम वैचारिक प्रपंच का प्रयोग है। आपको इस वैचारिक प्रपंच को समझना ही होगा एवं इसकी काट भी देनी होगी।
मुंबई में इतना परेशान किया गया की, अब ये श्रमिक भाई वापस नहीं आना चाहते। तापसी गैर बीजेपी राज्य सरकारों के द्वेष एवं भेदभाव पूर्ण व्यवहार पर मौन क्यों हैं।
यहाँ प्रतिमाओं की बड़ी है हस्ती, पर इंसानो की जान है सस्ती
NOV २०१८ से FEB २०२० तक, गुजरात सरकार की कुल आय मात्र TICKET और Parking fee से ही ११६ करोड़ रुपये थी । आप निम्नलिखित LINKS से Statue of Unity की आर्थिक उपयोगिता की समझ सकते हैं।
https://www.opindia.com/2019/11/statue-of-unity-revenue-cost-proves-its-critics-wrong/
किन्तु महत्वपूर्ण प्रश्न यह है की, तापसी क्यों श्रमिकों के विषय को रखते हुए, श्री सरदार पटेल जी की प्रतिमा को अनुपयोगी सिद्ध करना चाहती हैं। क्या तापसी को श्री सरदार पटेल जी के देशप्रेम पर संदेह है। क्या तापसी को उनके द्वारा किये गए देश के एकीकरण के पुरषार्थ पर गर्व नहीं है। क्या सरदार पटेल की प्रतिमा को मात्र इसीलिए प्रपंच में खींचा जा रहा है, क्योकि सरदार पटेल जी जैसे महान देशभक्त को सम्मान देने का श्रेय बीजेपी को मिल जायेगा।
श्रमिकों के निधन की अत्यंत ह्रदय विदारक दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ हुई। इस विषय में तार्किकता के सन्दर्भ पर यह ध्यान रखना भी अति आवश्यक है की, महामारी काल में ५ प्रमुख दुर्घटनाएँ हुई, जिसमे महाराष्ट्र एवं राजस्थान वाली दुर्घटनाओं में क्षेत्रीय प्रशासन की असावधानी को अनदेखा नहीं किया जा सकता। शेष तीन दुर्घटनाओं में वाहन चालक की असावधानी मूल कारण रही।
तापसी क्यों श्रमिकों के दुर्भाग्यपूर्ण निधन को सरदार पटेल से जोड़ कर वैचारिक विष का भ्रम बना रही हैं। तापसी इतनी निम्न सोच क्यों, आप केंद्र सरकार को पसंद नहीं है तो ठीक है, किन्तु इस स्तर तक गिरना कहाँ तक उचित है, की श्रमिकों के दुर्भाग्य पूर्ण निधन पर भी प्रपंच प्रसारित करेंगी आप।
बड़े सपने अच्छे दिन बतलाये पर भूख किसी की न मिटा पाए
कुछ आंकड़े देखिये (२१ मार्च २०२० से १३ अप्रैल २०२० तक)
पैसे : Direct Bank Transfer के ३२ करोड़ लाभार्थी,
राशन : PMGKAY योजना के ५.२९ करोड़ लाभार्थी,
गैस सिलिंडर : PMUY योजना के १.३९ करोड़ लाभार्थी
देश में खाद्य आपूर्ति : १.७४ लाख टन खाद्यान्न भेजा किया, जिसमे से राज्यों ने २२.०८ लाख मीट्रिक टन खाद्यान्न मुफ्त वितरण के लिए लिया। १ करोड़ बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने प्रत्येक कार्यकर्त्ता द्वारा ५ निर्धन परिवारों के भोजन की व्यवस्था करने का अभियान भी चलाया । तापसी ये आकड़े आपके झूठ की पोल खोल रहे हैं , आपके शब्दों के खेल ” भूख किसी की मिटा न पाए ” का प्रपंच स्पष्ट दिखाता है।
दो श्रमिक भाई स्वयं बता रहे हैं की इंदौर बायपास से गरीब मजदूर जो महाराष्ट्र से आये है उनको पानी खाना पहनने को जूते, चप्पल सब दिया जा रहा है। ग़ैर BJP शासित महाराष्ट्र में पानी तक भरने नहीं दिया गया, मारकर भगा दिया ।
झुठे वचन देने वाले राजनेता कौन है आप स्वयं देखे एवं समझें, जनता स्वयं ही बता रही है। ग़ैर BJP शासित दिल्ली सरकार का दावा कि रोज़ 4 लाख लोगों को खाना खिला रहे हैं, जबकि जनता उनके विकासपुरी MLA महेंद्र यादव के घर, भूखी प्यासी धरना दिए बैठी है ।
जो श्रमिक अपनी कर्मभूमि को पूजते हैं, जो सम्मान से अपनी आजीविका चलाने के लिए अपने गृहनगर को छोड़ कर आते हैं, कठिन जीवन का सामना करते हैं। क्या ऐसे स्वाभिमानी श्रमिक भोजन पर छीना छपटी का व्यवहार करेंगे, वो भी तब जब उन्हें पता है की उपलब्ध भोजन पानी उनमे ही वितरित होगा। ऐसी क्या परिस्थितयाँ अथवा झुठी सूचनाएँ थी, जिससे ऐसा व्यवहार देखने को मिला, क्या छीना छपटी का व्यवहार प्रायोजित नहीं हो सकता। जनता के हित के लिए केंद्रीय सरकार ने अनेक ठोस निर्णय लिए हैं अगर ग़ैर बीजेपी शासित राज्यों दिल्ली , महाराष्ट्र (जहाँ से श्रमिक पलायन को विवश हुए ) ने योजनाओं के किर्यान्वन में सहयोग नहीं किया, तो इसका दोष केंद्र पर मढ़ना कहाँ तक उचित है। मोदी जी के “अच्छे दिन” के आव्हान उद्घोष को, एक जुमले के भांति अपने वैचारिक प्रपंच के लिए प्रयोग करना, आपकी निम्न मंशा दर्शाता है, तापसी ।
चाहिए न भीख न दान, बस न छीनो आत्मसम्मान
यह हृदय विदारक दृश्य , जिसमे एक नन्हा बालक माँ के मृत शरीर के पास बैठा है अत्यंत दुखद है। किन्तु देश विरोधिओं ने इसे ऐसे प्रचारित किया की भूख से निधन हुआ जबकि वह स्त्री दीर्घकालिक रोग से ग्रसित थी , एवं उसकी मानसिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी। उसके सगे संबंधी के द्वारा ये जानकारी देने के बाद भी, तापसी आप क्यों एक स्त्री की मृत्यु को अपने प्रपंच के लिए प्रयोग करना चाहती है।
स्वयं रेल मंत्री ने वक्तव्य दिया था, कोरोना के समय रेलयात्रा में हुई एक एक भी मृत्यु का कारण भूख नहीं है। इसका प्रमाण “POST MORTEM REPORTS” है।
एक स्त्री ने पारिवारिक कलह के कारण अपने ही बच्चों की हत्या कर दी , किन्तु देश विरोधी तत्वों ने, समाचार में झूठ दिखाया की देश बंदी में भूख के कारण ऐसा किया। तापसी इस प्रकार के झूठे प्रपंची समाचारों पर मौन क्यों है।
आत्मसम्मान के लिए योगी सरकार श्रमिकों की अजीविका गृहनगर में ही सुरक्षित हो , इसके लिये उद्योग जगत के सहयोग से प्रयास कर रही है। महामारी काल में प्रभावित श्रमिकों के लिए, मोदी सरकार ५०,००० करोड़ रुपया लागत से गरीब कल्याण रोजगार अभियान चला रही है । इस पर तापसी क्यों मौन हैं ।
तापसी ऐसा झूठ प्रसारित क्यों करना चाहती हैं। तापसी तथ्यों को एक विशेष वैचारिक रूप में ही क्यों प्रस्तुत कर रही हैं। केंद्र सरकार के सकारात्मक कार्यों पर क्यों मौन हैं। जब भी तापसी जैसे लोग समाज में वैचारिक झूठ प्रसारित करेंगे, तो तथ्यों के साथ समाज का हर वर्ग उनके दोगले स्वभाव पर प्रश्न करेगा। समाज को ऐसे प्रपंच प्रसारित करने वाले नामी लोगो का बहिष्कार करना चाहिए , जो जन समुदाय के भावनाओं एवं सामूहिक चेतना के साथ खेल रहे हैं। हम सभी को अभिनेता (actor) एवं नायक (hero ) के अन्तर को अच्छे से समझना होगा। अभिनेता अभिनय करता है , यह एक छदम स्वरुप धारण करता है, उसका व्यवहार वास्तविकता से परे होता है। नायक जो निजी जीवन एवं सार्वजानिक जीवन में एक उत्तम उदारहरण प्रस्तुत करते हुए समाज के लिए कार्य करता है। चुनाव आपका है, आपको छदम वेश धारी अभिनेता अपनी प्रेरणा स्त्रोत के रूप में चाहिए या वास्तविक समाज के नायक जो धरातल पर कार्यरत है।
।। चैतन्य हिन्दू ।।
।। हर हर महादेव ।।
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