बाबूजी कल्याण सिंह जी, एकमात्र ऐसे नेता जो बाबरी मस्जिद विध्वंश मामले में काट चुके हैं सजा
बाबूजी कल्याण सिंह हैं राम मंदिर निर्माण के असल सूत्रधार
बाबूजी कल्याण सिंह हैं राम मंदिर निर्माण के असल सूत्रधार
दैनिक चर्चा | ३० जुलाई २०२०
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ५ अगस्त को भगवन श्री राम के मंदिर का भूमि पूजन करने जा रहे हैं। राम मंदिर के आंदोल न में बहुत से लोगों ने, हिंदूवादी संगठनों ने, समान्य जन-मानस ने योगदान दिया है, किसी ने जान देकर, किसी ने गोलियां खाकर, पर राम मंदिर के लिए एक बडा बलिदान भाजपा नेता बाबूजी श्री कल्याण सिंह जी ने भी दिया है और इतिहास उसको भुला नहीं सकता।
साल 1990 में जब तात्कालीन मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोलियां चलवाई थी, तब भारतीय जनता पार्टी ने एक जन आंदोलन शुरू किया था और 1991 में भाजपा ने अपने दम पर उत्तर प्रदेश में सरकार बनायी थी और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने आदरणीय कल्याण सिंह (बाबू जी)।
उसके बाद फिर से श्री राम मंदिर आंदोलन ने और 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों ने विवादित ढांचा (बाबरी मस्जिद) को ढहा दिया। इसके तुरंत बाद कल्याण सिंह ने यूपी के सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। पर सबसे बड़ी बात जो कल्याण सिंह जी ने कही, उस बात ने कहीं न कहीं सबका दिल जीत लिया “मैं कारसेवको पर गोली नहीं चलाऊंगा“
उसके बाद उन्होंने पत्रकारों के माध्यम से बात कही:
‘बाबरी मस्जिद विध्वंस भगवान की मर्जी थी. मुझे इसका कोई अफसोस नहीं है. कोई दुख नहीं है. कोई पछतावा नहीं है. ये सरकार राममंदिर के नाम पर बनी थी और उसका मकसद पूरा हुआ. ऐसे में सरकार राममंदिर के नाम पर कुर्बान. राम मंदिर के लिए एक क्या सैकड़ों सत्ता को ठोकर मार सकता हूं. केंद्र कभी भी मुझे गिरफ्तार करवा सकती है, क्योंकि मैं ही हूं, जिसने अपनी पार्टी के बड़े उद्देश्य को पूरा किया है.’
‘कोर्ट में केस करना है तो करो. जांच आयोग बिठाना है तो बिठाओ. किसी को सजा देनी है तो मुझे दो. केंद्रीय गृहमंत्री शंकरराव चह्वाण का मेरे पास फोन आया. मैंने उनसे कहा कि ये बात रिकॉर्ड कर लो चह्वाण साहब कि मैं गोली नहीं चलाऊंगा, गोली नहीं चलाऊंगा.’
बाबूजी कल्याण सिंह जी ने राम मंदिर के लिए सत्ता ही नहीं गंवाई, बल्कि इस मामले में सजा पाने वाले वे एकमात्र नेता है।
एक बात तो सत्य है “कुर्सी के लिए धर्म को छोड़ने से अच्छा है अपने धर्म के लिए कुर्सी को छोड़ना“
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