Posted on January 10, 2021 by khullamkhulla

हिंदी दिवस की शुभकामनाओं के साथ मेरी कुछ वर्षों पूर्व लिखी कविता

य़े चलन था हमारा
खुल के मिलना, जीना, खाना, पीना, अौर जश्न मनाना
जहाँ जी कर गया सिर झुकाना,
चंगे मन से कडकड़ाती ठंढ़ हो
तो कठौती में ही गंगा नहाना

मेरे घर के दरवाजे खुले थे,
हम सब से दिल खोल के मिले थे
सब को अपनाया,
हर किस्म के भगवान
बनाये बिगाड़े, जो मन को भाया
उसे मंदिरों में बिठाया,
उसकी पूजा की, फूल नैवेद्य चढ़ाया,

बुरे मूड में ऊपर वाले की
हस्ती पर ही दो चार सवाल मार डाले
ये भी कहा कि देखो मैं ही हूँ अल्लाह,
और ब्रम्हा, विष्णु, महेश
जैसा देश और परिवेश वैसा उनका भेस

धर्म का अर्थ मेरे लिये काशी अौर काबा न था
किसी किताब और पैगंबर ने मुझे बाँधा न था,
जितने हम, उतने विधि विधान,
उतने ही मत, उतने ही भगवान।
हम खोजते थे सनातन सत्य,
थिरकते हुये संगीत की धुन पे
नाचते गाते कीर्तन में रत

कुछ ध्यान धारणा में समाधान पाते थे
कुछ शास्त्री शास्त्रार्थ का रस उठाते थे
वहीं अघोरी स्मशान में धूनी रमाते थे

सब ठीक ठाक ही था
हम अनूठे प्रयोगों में लगे थे
अहिंसा को अपना रहे थे
तन पर गेरुआ लपेटे
बुद्ध की शरण में जा रहे थे

फिर आदि शंकर आये,
ईश्वर सत्य, जगत मिथ्या
सांप और रस्सी का भेद समझाया
मूढ़मतियों को भज गोविंदम् का गीत सिखाया

जब हम लोक-परलोक के ऊहापोह
सगुण निर्गुण ब्रम्ह की बहस में
शस्त्र को दूर रख, संध्या भजन और
शास्त्रार्थ में गोते लगा रहे थे

टिड्डी दलों के विनाशकारी झूंड की तरह
चढ़ आये वो रेगिस्तानी लुटेरे,
एक हाँथ में तलवार
दूसरे में खुदाई किताब लिये
खुंखार रक्त पिपासु दरिंदे

हम से कहा सच एक है, उनका सच
अल्लाह ने उसे खुद हमारे पैगंबर को बताया है
और वो जिल्दबंद है इस किताब में
ये अखिरी सच है, हमारे अखिरी पैगंबर का बयान
हमारे अल्लाह का सीधा फरमान

मानोगे तो ठीक है,
नहीं मानोगे तो मरोगे,
या फिर हमारी चाकरी करोगे
दोजख में सड़ोगे

मंदिर टूट गये,
मस्जिदें बनने लगीं,
खुदाई कसाईयों और जल्लादों के
रक्त रंजित राज में
निरीह ईंसान और गायें कटने लगीं
जिहादी जूनून सिर चढ़ता गया
हमारा उद्दात्त खोजी कल्चर
मरता गया, सड़ता गया

यहीं सारा मामला गड़बड़ा गया
इस बंटाधार में, सोसियो पालिटिकल मंझधार में
जब हमारे कानों में सहिष्णुता की ढोल पीटी जाती है
और अवाक हतप्रभ हम उसे सुनते हैं
तो मन तो यही करता है कि ऊठायें चप्पल
और जमायें दो चार उस नगाड़ची के सिर पर।

राजेश कुमार सिंह

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