संस्कृत वचन ‘युद्धस्य कथा रम्यः।’ इस वचन की सार्थकता वर्तमान में संपूर्ण विश्व के श्रोता एवं पाठक अनुभव कर रहे हैं । रशिया–युक्रेन युद्ध के निमित्त संपूर्ण संसार में चर्चा हो रही है कि यह युद्ध तीसरे संभावित विश्वयुद्ध का प्रारंभ तो नहीं है । युद्ध में भारत की तटस्थ विदेश नीति और युक्रेन में रहने वाले विद्यार्थियों की सुरक्षा के लिए चल रहा ‘ऑपरेशन गंगा’ ये विषय भारत में सर्वत्र चर्चा में हैं । इन्हीं दो सूत्रों का संक्षिप्त विश्लेषण करनेवाला यह लेखन है …
भारत की तटस्थ विदेश नीति और ‘ऑपरेशन गंगा’
रशिया–युक्रेन युद्ध की प्रारंभिक अवस्था में विश्व के अन्य देश किसके पक्ष में समर्थन देते हैं और भारत की कौन सी भूमिका होगी, इस विषय पर संपूर्ण संसार के विद्वान चर्चा कर रहे थे युरो–अमेरिकी राष्ट्र युक्रेन की ओर सहानुभूति से देख रहे हैं, तब भारत ने रशिया के पक्ष में अथवा युक्रेन के पक्ष में मत न देते हुए तटस्थ रहते हुए यह विषय संयुक्त राष्ट्रों में चर्चा कर यह विवाद सुलझाया जाए’, ऐसी भूमिका ली । इसलिए ब्रिटिश और अमेरिकी समाचारपत्रों ने भारत पर वैचारिक आक्रमण किए । संपूर्ण संसार में ऐसा वातावरण बनाया जा रहा था कि भारत की विदेश नीति क्रूर है; परंतु भारत सरकार ने अनदेखी की । इसका महत्त्वपूर्ण कारण है रशिया और युक्रेन में निवास कर रहे भारतीय विद्यार्थी और नागरिक !
अभी एक लाख से अधिक भारतीय और भारतीय विद्यार्थी रशिया और युक्रेन इन देशों में शिक्षा अथवा नौकरी–व्यवसाय के लिए निवास करते हैं । युद्ध में किसी भी एक देश के पक्ष में भूमिका लेना, वहां के भारतीय नागरिकों को असुरक्षित करने के समान था । भारत ने तटस्थ की भूमिका लेकर रशिया और युक्रेन इन दोनों देशों के प्रमुखों से संवाद स्थापित किया, वह केवल भारतीय सुरक्षित रूप से युक्रेन से पोलैंड, बेलारूस, रोमानिया आदि देशों की सीमाएं पार करवाने के लिए । रशिया ने घोषित किया कि भारतीय तिरंगा वाले जनसमूह और वाहनों पर रशिया की सेना आक्रमण नहीं करेगी । युक्रेन ने सार्वजनिक किया कि, भारतीयों के लिए पोलैंड, बेलारूस, रोमानिया आदि देशों की सीमाएं रिक्त की जाएंगी । पोलैंड और रोमानिया में अंतरराष्ट्रीय सीमाएं पार कर आनेवाले भारतीय और विद्यार्थियों का स्थलांतरण भारत में होने के लिए सर्वत्र समस्याएं सुलझाने के लिए भारत के चार केंद्रीय मंत्री पूर्ण कालिक इन देशों में हैं । सभी अंतरराष्ट्रीय कानूनों की बाधाएं सुलझाकर ये विद्यार्थी ‘ऑपरेशन गंगा’ द्वारा भारत में भेजे जा रहे हैं । विशेषतः प्रतिदिन 1500 अरब डॉलर युद्ध का खर्च होते हुए रशिया ने खारकीव नियंत्रण में लेने से पूर्व 6 घंटे भारतीय विद्यार्थियों को सुरक्षित बाहर निकलने के लिए दिए । आज अमेरिका–चीन–यूरोपीय राष्ट्र केवल आर्थिक हित के लिए रशिया अथवा युक्रेन का पक्ष ले रहे हैं । युक्रेन में आज भी अमेरिकी और यूरोपीय वंश के लाखों नागरिक फंसे हुए हैं; परंतु उनके प्राणों की किसी को चिंता नहीं है । दूसरी और भारतीय संस्कृति ‘अर्थ’ इस कल्पना की अपेक्षा ‘जीवन’ इस संकल्पना को अधिक महत्त्व देती है । इसलिए भारत द्वारा दिखाई गई व्यावहारिकता संसार के सामने नया उदाहरण प्रस्तुत कर रही है । संपूर्ण संसार में भारतीय तिरंगे का बढा हुआ मूल्य अनुभव किया जा रहा है । भारतीय तिरंगा लगे हुए वाहन सुरक्षित युक्रेन से बाहर निकल रहे हैं । भारत के कट्टर विरोधी पाकिस्तान और तुर्किस्तान के नागरिक भी भारत के तिरंगे के आसरे से युक्रेन से स्थलांतरित हो रहे हैं, यह अभूतपूर्व है ।
युक्रेन का सीधा समर्थन न कारना व्यावहारिक दृष्टि से उचित ही !
विदेशनीति भावनिक नहीं होती, अपितु व्यावहारिक होती है । आर्थिक और सामरिक हित संबंधों पर ही दो देशों की मित्रता निश्चित होती है । रशिया के आक्रमण के कारण जिस युक्रेन के लिए संपूर्ण संसार में सहानुभूति की लहर है, उस युक्रेन ने भारत को कितनी बार सहायता की है, इसका ‘होमवर्क’ भारत के विदेश मंत्रालय ने पहले ही करके रखा था । जब संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर का 370 का सूत्र आया, तब युक्रेन ने भारत के विरुद्ध मत प्रस्तुत किया था । जब भारत ने परमाणु परीक्षण किया, तब भी संयुक्त राष्ट्र में युक्रेन ने भारत के विरुद्ध मत प्रस्तुत किया । भारत को संयुक्त राष्ट्रों की सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता देने का सूत्र आया, तब भी युक्रेन ने विरोधी मत प्रस्तुत किया था । युक्रेन ने भारत के परंपरागत शत्रु पाकिस्तान को शस्त्रों की आपूर्ति की । अणुऊर्जा के लिए जब भारत को यूरेनियम की आवश्यकता थी, तब भी यूरेनियम के भंडार वाले युक्रेन ने मना कर दिया था । इसलिए व्यावहारिक दृष्टि से युक्रेन का पक्ष न लेना ही उचित था ।
रशिया से कृतज्ञता का भुगतान !
भारत की स्वतंत्रता के पश्चात रशिया भारत का परंपरागत मित्र रहा है, उस समय युक्रेन का जन्म भी नहीं हुआ था । रशिया और युक्रेन का ‘स्लाव’ नामक नागरी वंश एक ही है । स्लाव नागरी भाषा में संस्कृत शब्द सर्वाधिक हैं । रशिया ने 1965 और 1971 में भारत के पाकिस्तान विरुद्ध के युद्ध में संयुक्त राष्ट्रों की सुरक्षा परिषद में नकाराधिकार का उपयोग कर भारत का समर्थन किया था । ‘ब्रह्मोस’ नामक शक्तिशाली क्षेपणास्त्र भारत में बनाया जाता है, इसका एकमात्र कारण है रशिया का भारत प्रेम ! मूलतः युक्रेन रशिया का ही भाग है । यहां की भाषा, संस्कृति रशिया की है । ऐसा होते हुए युक्रेन रशिया के विरोध में जाकर अमेरिका के प्रभाव में आकर नाटो के पीछे जा रहा हो, तो यह मातृभूमि से विश्वासघात कहना पडेगा । नाटो देशों की सीमा और रशिया की सीमा में युक्रेन ‘बफर स्टेट’ है । ऐसे समय युक्रेन यदि नाटो में चला गया, तो नाटो वैकल्पिक रूप से रशिया की प्रतिस्पर्धी अमेरिका रशिया की सीमा पर पहुंचने वाली है । ऐसे समय रशिया का युद्ध का निर्णय स्वरक्षा का है । स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने कहा था कि, आक्रमण ही स्वरक्षा का सर्वोत्तम मार्ग है । भारत ने वर्तमान में रशिया के विरुद्ध भूमिका न लेकर रशिया ने पहले की हुई सहायता का कृतज्ञतापूर्वक भुगतान किया है । भविष्य में तीसरा विश्वयुद्ध होगा, तब भारत की विदेश नीति रशिया–चीन समर्थक होगी कि नहीं, यह समय निश्चित करेगा ।
चेतन राजहंस
प्रवक्ता, सनातन संस्था
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