उपहास, हिन्दू कायरता और हिन्दू त्योहारों का (कविता)
क्यों हिन्दू की होली पर ही भांड बचाते हैं पानी? क्यों हिंदू की दीवाली पर टाटा करता मनमानी?
क्यों हिन्दू की होली पर ही भांड बचाते हैं पानी? क्यों हिंदू की दीवाली पर टाटा करता मनमानी?
क्यों हिन्दू की होली पर ही भांड बचाते हैं पानी?
क्यों हिंदू की दीवाली पर टाटा करता मनमानी?
क्यों नवदुर्गा को ही अब वो, दुर्व्यहार से जोड़ रहे?
अरे हिंदुओ जरा भी क्या तुम, इस बारे में सोच रहे?
इसका कारण महज एक है, आप जो देते ध्यान नही।
और समझ बैठे हैं जिहादी, तुमको इसका ज्ञान नही।
सहनसीलता बहोत हुई अब, ले तलवारें निकल पडों।
राम, कृष्ण, दुर्गा के उपासक, अब उपहास न और सहो।
आर्थिक बहिष्कार से दुश्मन कभी भी बाज न आएगा।
गुस्सा जब तक जन सैलाब के रूप में नजर न आएगा।
रखो कोई हथियार साथ में, आओ अब हो जाओ एक।
अगले दंगो से ही पहले, दुश्मन काट के डालो फेक।
कब तक अब कमलेश तिवारी जैसी लाशें ढोओगे।
कब तक लव जिहाद में अपनी नव ललनाएँ खोओगे।
कोई विज्ञापन, कोई पोस्ट, कोई फ़िल्म, या कोई भांड।
और न कोई उपहास बनाए, अब ऐसे कर डालो कांड।
जला दो वो सारी कंपनियां, जो जिहाद को सींच रही।
उड़ा के बस उपहास हमारा, हमें ही उत्पाद को बेंच रही।
ऐसा सबक सिखाओ के फिर, कोई जिहादी न पनपे।
बता दो प्रलय आ जाएगा जो, हिन्दू आ गया अपनी पे।।
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