पूर्व प्रधानमंत्री एवम् भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी हिन्दी कवि, पत्रकार व एक प्रखर वक्ता थे। अटल जी अपनी पार्टी के साथ साथ विपक्षी पार्टी में समान रूप से सम्माननीय रहे हैं। अटल जी एक सफल प्रधानमंत्री रहें। भारत के लिए उन्होंने प्रधानमंत्री के नाते वो सारे काम किए जो एक सफल प्रधानमंत्री को करने होते हैं, उनका जीवन बेहद सरल था और वे पूर्ण रूप से राष्ट्र समर्पित थे। वे एक बेहतरीन कवि भी थे, बहुत सारी कविताएं उन्होंने लिखी और सारी की सारी कविताएं एक अच्छा संदेश देने में कामयाब रहीं। अटल जी के लिए मैं जितनी भी तारीफ करूं उतनी कम हैं। वे हर बातों का गहराई से अध्ययन करते थे और फिर कोई निष्कर्ष पर आते थे, उनका जीवन मानों उनकी उम्र से भी बड़ा रहा।

भारत में अभी तक के जितने भी प्रधानमंत्री रहें उन सबमें अगर भारत देश के प्रति सबसे अच्छा वर्णन किसी ने किया होगा तो वो सिर्फ और सिर्फ अटल जी ने किया था, अटल जी ने अपने वर्णन में कहां था “भारत कोई भूमि का टुकड़ा नहीं,जीता जागता राष्ट्रपुरुष है। हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है,पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं। पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं। कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके पग पखारता है। यह चन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है,यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है। इसका कंकर-कंकर शंकर है,इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है। हम जियेंगे तो इसके लियेमरेंगे तो इसके लिये।”, जरा सोचिए ऐसी क्या परिस्थितियां रहीं होंगी या कहें कि ऐसी क्या भावनाएं रहीं होंगी अटल जी के जीवन में भारत देश के प्रति जिसने उनको प्रभावित किया भारत का सुवर्ण अक्षरों में वर्णन करने के लिए।

जैसे मैने कहां उन्होंने इतना खूबसूरती से भारत का वर्णन किया और उन्होंने ने शीर्षक दिया “भारत कोई भूमि का टुकड़ा नहीं, जीता जागता राष्ट्र पुरुष है”। वे कहना चाहते थे कि भारत केवल ज़मीन का टुकड़ा नहीं परन्तु सबसे पुरानी और प्रथम सभ्यता हैं जो आदिकाल से आजतक चलतीं आ रहीं हैं, और आगे भी चलतीं रहेगी। ना जाने कितनों ने भारत की भूमि पर आदिकाल से राज किया परन्तु भारत की सभ्यता और संस्कार को कोई ठेस ना पहुंचा सका और आगे भी कोई ठेस ना पहुंचा सकेगा। विभिन्न जाति और एकता का एकमात्र देश भारत हैं। भारत की नदियां मानो राष्ट्र पुरुष के रग-रग में बहते खून समान हैं। ये भारत की धरती है जहां प्रगति और संस्कृति साथ में चल रहीं हैं और आगे भी चलती रहेंगी। ये वो राष्ट्र पुरुष है जिसकी धरती पर इंसानों के साथ साथ भगवानों का भी जन्म हुआ और भगवानों के साथ साथ दुनियां बदलने वाले आविष्कारों का भी जन्म हुआ।अटल जी ने अपने वर्णन में कहां; हिमालय सा मस्तिष्क और कश्मीर एक किरीट अथवा मुकुट समान है। पूर्वी और पश्चिमी घाट विशाल और मजबूत जंघायें समान हैं जो इस राष्ट्र पुरुष के भार को उठाएं खडे़ हैं। कन्याकुमारी भारत के चरण हैं, और उस चरणों पर विशाल महासागर बहता है। पंजाब और बंगाल जैसे भारत के मजबूत कंधे हैं। चंदन की खुशबू का एहसास आपको भारत की भूमि पर होता है और अभिनन्दन की भावना आपको इस भूमि को चूम के होता हैं। ज़मीन पर माथा टेको तो तर्पण का एहसास हैं, और भारत का इतिहास देखो तो अर्पण का एहसास हैं। भारत भूमि के कण कण में भगवान शंकर का निवास हैं और इस भारत भूमि की बूंद बूंद गंगाजल के समान हैं।

और अंत में भारत का इतना खूबसूरती से वर्णन करने के बाद अटल जी कहते हैं कि “हम जीयेंगे तो इसके लिये और मरेंगे तो इसके लिये और मरने के बाद भी गंगाजल में बहती हुई हमारी अस्थियों को कोई कान लगा कर सुनेगा तो एकही आवाज़ आयेगी भारत माता की जय”।

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