Combat Aircraft के प्रमुखतः 3 रोल होते हैं; 1st – Air-to-Air डिफेन्स, 2nd – Air-to-Ground बॉम्बिंग और 3rd – Air-to Ground कॉम्बैट।
2014 के बाद से Air-to-Air डिफेन्स रोल को ताकत प्रदान करने के लिए लम्बी दूरी की मारक क्षमता वाली BVRAAM मिसाइल खरीदी जा रही हैं, नई मिसाइल डेवेलोप की जा रही हैं और लड़ाकू जहाजों में फिट की जा रही हैं; अतिरिक्त AEWCS एयरक्राफ्ट खरीदने की भी तयारी चल रही है वहीं दूसरी ओर Air-Defence SAM को बहोत ज्यादा मज़बूत किया जा रहा है, S-400, XR-SAM, LRSAM ‘Barak’, Akash-Mk-II, DRDO QRSAM, NASAMS इत्यादि सरफेस टू एयर डिफेन्स सिस्टम प्रोक्योर करे जा रहे हैं। ऐसा होने से Fighter Jets का Air-to-Air डिफेन्स रोल काफी कम हो जायेगा अर्थात दुश्मन देश द्वारा Aircraft, Drone या Helicopter द्वारा एयर अटैक होने पर Combat Aircraft को तैनात करने की आवश्यकता कम हो जाएगी क्योंकि भारतीय वायुसेना Air-Defence SAM के द्वारा दूर से ही दुश्मन देश के विमानों इत्यादि को मारकर गिराने में सक्षम होगी।
2014 के बाद से Air-to-Ground बॉम्बिंग रोल को ताकत प्रदान करने के लिए अत्यधिक आधुनिक और घातक Air-to-Ground B’ombs और Munitions जैसे की KAB-1500L, AASM ‘Hammer’, Spice ‘2000’, SAAW इत्यादि खरीदे जा रहे है; दूसरी ओर Surface-to-Surface राकेट लांचर Pinaka की रेजिमेंट्स भारी संख्या में बढाई जा रही हैं; सिर्फ यही स्पेशल कॉम्बैट मिसाइल प्रोजेक्ट्स जैसे की ‘Pralay’, ‘Agni-1P’, ‘Shaurya – NG’, ‘Nirbhay-ITCM’ इत्यादि पर काम चल रहा है जिनका प्रयोग आने वाले समय में दुश्मन देश के Military Installations, आउट-पोस्ट, बंकर, पुल, रोड इत्यादि को दूर से ही उडाने के लिए किया जायेगा। ऐसा होने से Fighter Jets का Air-to-Ground बॉम्बिंग रोल काफी कम हो जायेगा और भारतीय वायुसेना को अपने लड़ाकू जहाज़ दुश्मन देश की सीमा में भेजने की आवश्यकता कम हो जाएगी।Air-to-Air डिफेन्स रोल तथा Air-to-Ground बॉम्बिंग रोल कम होने के चलते वायुसेना के Combat Aircraft प्रमुखतः स्पेशल मिशन वाले Air-to Ground कॉम्बैट पर अपना पूरा फोकस रख पाएंगे।
2014 के बाद से Air-to-Ground कॉम्बैट रोल (Specific Mission) पर मुख्य फोकस किया जा रहा है, स्पेशल मिसाइल जैसे की Brahmos-A, SKALP, NASM-SR, Rudra-ARM, इत्यादि को विकसित किया जा रहा है। भारतीय वायुसेना नए Defence Satellite स्थापित करने के अलावा Battlefield ग्राउंड सर्विलांस एयरक्राफ्ट ISTAR ‘Sentinel’ प्रोक्योर करने पर काम कर रही है; अतिरिक्त Surveillance ड्रोन लिए जा रहे हैं; सिर्फ यही नहीं शार्ट डिस्टेंस मिशन के लिए Combat Helicopter जैसे की ‘Apache’ और ‘HAL-LCH’ लिए गए हैं, इनके अलावा ‘Predator’ और ‘Eitan’ कॉम्बैट ड्रोन खरीदने की तयारी चल रही है, सिर्फ यही नहीं वायुसेना के पास जो सर्विलांस ड्रोन हैं उन्हें Armed करने पर भी काम चल रहा है। आने वाले समय में वायुसेना का Air-to-Ground कॉम्बैट रोल भी काफी सीमित और बहोत स्पेसिफिक हो जायेगा।
सबसे प्रमुख बात की 2014 के बाद से फाइटर जेट्स के Spares Parts की अवेलेबिलिटी और Service Agreement पर विशेष ध्यान दिया गया है; फाइटर जेट की Availability Rate यानि किसी भी समय जवाबी हमले के लिए उपलब्ध (टेक्निकली फिट) कॉम्बैट जेट्स को बढाया गया है। नई Fighter Jet डील ज्यादा Availability Rate के अंतर्गत साइन हो रही हैं।
उपरोक्त लेख को अगर ध्यान से पढ़ें और समझें तो ये स्पष्ट हो जायेगा की आज भारतीय वायुसेना अपनी घटती Squadrons को लेकर चिंचित क्यों नहीं है।
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