सोशल मीडिया पर हम अक्सर एक चीज सुनते है, की मुसलमान कर नहीं देते क्योंकि वो सिर्फ पंचर बनाते हैं। उनके पास कोई अन्य व्यवसाय या नौकरी नहीं है। हालांकि, वास्तविकता पूरी तरह से अलग है। यदि आप ध्यान से देखें, तो सभी छोटे शहरों के बाजार मुस्लिमों की छोटी-छोटी दुकानों और छोटे व्यवसायों से पट गए हैं। नाइ, कपड़ो की दुकान, फल की दुकान, वेल्डिंग की दुकान, फूलो की दुकान, रिपेरिंग की दुकाने, और पता नहीं क्या क्या, आप हर जगह उन्हें ही पाएंगे। आप हैरान होंगे ये जानकर की यह सब एक एजेंडा के तहत किआ गया, ताकि हिन्दू अपने जाति और उससे सम्बंधित हुनर पर शर्म महसूर करें और उस काम को मुल्ले अपना कर बाजार में राज करें।

ऐसा क्यों और कब हो गया, आपको पता ही नहीं। क्योंकि, अनजाने में आप अपने जाति और जाति से संबंधित कौशल के लिए शर्मिंदा होने के शिकार हो गए हैं। वो कौशल और स्किल्स जिन पर आपके पूर्वज गर्व और आर्थिक स्वतंत्रता महसूस करते थे, आप उस पर शर्मिंदा होने लगे और आपने वो सब हुनर और काम छोड़ दिए। अब हेयरड्रेसर को ही ले लो। भारत के किसी भी शहर या शहर के किसी भी बाजार में जाएँ, आपको ज़्यादा से ज़्यादा अब मुस्लिम नाई मिलेंगे। जबकि हज्जाम के इस कौशल का पारंपरिक रूप से हिन्दुओं द्वारा स्वामित्व और प्रदर्शन किया गया था। हाँ, उन्हें जातिवादी प्रोपोगंडा के तहत शर्म महसूस कराइ गई और उन्होंने हज्जाम बनने के इस हुनर ​​को सीखना ही छोड़ दिया, जिसे अब ज्यादातर मुस्लिम्स ने अपना लिया और जिन्हें हज्जाम के इस काम को करने में कोई शर्म नहीं है।

इसी तरह, ‘लोहार’ ने लोहे का काम छोड़ दिया है। अब छोटे-मोठे लोहे वाले काम, छोटे बाजारों में, जैसे की वेल्डिंग, छोटे दुकान मालिक मुसलमानो द्वारा किया जाता है। ‘रंगरेज’ ने कपड़े रंगने के काम को छोड़ दिया है, ‘मोचिओं’ ने जूते बनाने छोड़ दिए, ‘बजाज’ ने कपड़े बेचना छोड़ दिया, ‘बढ़ई’ ने बढ़ईगीरी छोड़ दी, ‘तेलियों’ ने तेल की पैकेजिंग छोड़ दी, ‘गडरिया’ ने ऊन बनाना छोड़ दिया, ‘यादवों’ ने दूध का कारोबार छोड़ दिया, ‘धोबी’ ने कपड़ों की इस्त्री करने का काम, ‘हल्वाई’ ने मिठाइयाँ और नमकीन बनाना, बेचना, ‘मालियों’ ने बाग़बानी करना और इत्र का कारोबार करना, इत्यादि बहुत से जाति-संबंधी कौशल और कारोबार हिन्दुओं ने करने ही छोड़ दिए। और भी बहोत सारे ऐसे हुनर होंगे हिन्दुओ की जाति से सम्बंधित जो उन्होंने करने और सीखने छोड़ दिए होंगे जो मैं यहाँ नहीं लिस्ट कर पाया । और इन सभी कौशल-आधारित कार्यों को अब छोटे मुस्लिम व्यापार मालिकों, कुशल मुस्लिमों ने संभाल लिया है, जो इन कामों को करने में शर्म महसूस नहीं करते हैं।

यहां तक ​​कि तथाकथित उच्च जाति वाले क्षत्रियों को फिल्मों और शैक्षिक प्रचार से कुत्षित रूप से शर्मिंदा किया गया कि उन्होंने धर्म और समाज की सुरक्षा के लिए युद्ध के कौशल तक को सीखना बंद कर दिया है। ब्राह्मण जाति के तथाकथित लोगों को भी ऐसे ही शर्मिंदा किया गया कि उन्होंने संस्कृत और वेदों को पढ़ना ही बंद कर दिया। इस्कॉन द्वारा आयोजित एक गीता प्रतियोगिता किसी मुस्लिम लड़की ने जीती है, न की किसी ब्राह्मण ने।

अतः, अपने स्थानीय बाजार में गौर से देखें और यह आकलन करें कि मुसलमानों के पास कितने छोटे-छोटे व्यवसाय हैं, उस समय पर जब हिंदू युवा अपने स्वयं के कौशल-आधारित व्यवसायों को छोड़ने के बाद नौकरी पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अब वो जिहादी मुस्लिम्स पूरे स्थानीय बाजार पर छा चुके हैं, कहीं भी किसी भी बाजार में आप जाके देख लो। इसलिए वे अपने जिहादी एजेंडा को और अधिक लागू करने के लिए अब बेहतर और आर्थिक रूप से तैयार हैं। उस स्वप्नलोक में अब मत रहो कि जिहादी मुसलमान सिर्फ पंचर बनाते हैं और वे आपको या समाज के लिए खतरा नहीं हैं।

यदि आपने तथाकथित जाति आधारित हुनर छोड़ दिए हैं, तो अपने पारंपरिक कौशल पर काम करना शुरू करें। खुद पर और अपने कौसल पर गर्व करते हुए एक व्यवसाय शुरू करें और घर पर रहते हुए लोकल बाजार में अपनी धाक जमाएं। इससे आप अन्य युवाओं को भी रोजगार देंगे। नौकरी या नौकरी के नाम पर दूसरों का गुलाम होने की जरूरत भी नहीं होगी।

“क्या भईया अपना काम करने में कैसी शर्म?’

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