आश्विन शुक्ल प्रतिपदा के दिन घटस्थापना करके नवरात्रि का आरंभ होता है I  नवरात्रि महिषासुर मर्दिनी मां श्री दुर्गा देवी का त्यौहार है । देवी ने महिषासुर नामक असुर के साथ नौ दिन अर्थात प्रतिपदा से नवमी तक युद्ध करनवमी की रात्रि उसका वध किया । उस समय से देवी को ‘महिषासुरमर्दिनी’ के नाम से जाना जाता है । इस वर्ष अक्टूबर से 14 अक्टूबर की अवधि में नवरात्र उत्सव मनाया जाएगा । कोरोना महामारी की पृष्ठभूमि पर लागू की गई यातायात बंदी कुछ स्थानों पर उठाई गई है तथा जनजीवन सामान्य  हो रहा है जहां प्रशासन के सभी नियमों का पालन कर सामान्य की भांति यह उत्सव मनाना संभव हैऐसे स्थानों पर सामान्य की भांति कुलाचार अवश्य करें । किंतु अभी भी कुछ स्थानों पर प्रतिबंधों के कारण सामान्य की भांति नवरात्र उत्सव मनाने पर मर्यादाएं आ सकती हैं । ऐसे समय में अनेक लोगों के मन में ‘नवरात्रोत्सव किस प्रकार मनाना चाहिए ?’, यह प्रश्‍न उठ रहा है । इस परिप्रेक्ष्य में हम यहां कुछ उपयुक्त सूत्र और उचित दृष्टिकोण दे रहे हैं   
प्रश्‍न : नवरात्रोत्सव में देवी के मंदिर में जाकर गोद भरना संभव नहीं हो, तो क्या करना चाहिए ?
उत्तर : नवरात्रोत्सव में देवी के मंदिर में जाकर देवी की गोद भरना संभव न हो, तो घर पर पूजाघर में स्थित कुलदेवी की ही गोद भरें । गोद के रूप में देवी को अर्पित साडी का उपयोग प्रसाद के रूप में किया जा सकता है ।

प्रश्‍न : ललिता पंचमी मनाना संभव न हो, तो क्या करना चाहिए ?
उत्तर : ‘हम ललिता देवी की पूजा कर रहे हैं’, इस भाव से घर में स्थित देवी की ही पूजा करें ।

प्रश्‍न : कुमारिका पूजन कैसे करना चाहिए ?
उत्तर : घर में कोई कुमारिका हो, तो उसका पूजन करें ! प्रतिबंधों के कारण कुमारिकाओं को घर बुलाकर पूजन करना संभव न हो, तो उसकी अपेक्षा अर्पण का सदुपयोग हो, ऐसे स्थानों पर अथवा धार्मिक कार्य करने वाली संस्थाओं को कुछ धनराशि अर्पण करें ।

प्रश्‍न : भोंडला, गरबा खेलना अथवा घडे फूंकना जैसे कृत्य संभव न हो, तो क्या करना चाहिए ?
उत्तर : भोंडला, गरबा खेलना अथवा घडे फूंकना जैसे धार्मिक कृत्यों का उद्देश्य होता है देवी की उपासना करते हुए जागना । ये धार्मिक कृत्य करना संभव न हो; तो कुलदेवी का नामस्मरण अथवा पोथी वाचन, संकीर्तन (स्तुति वाचन भजन) कर देवी की उपासना करनी चाहिए ।

कुलदेवी के नामस्मरण, साथ ही नवरात्रोत्सव की जानकारी सनातन के ग्रंथ ‘शक्ति’, ‘शक्ति की उपासना’ में दी गई है । ये ग्रंथ www.sanatanshop.com संकेतस्थल पर ‘ऑनलाइन’ बिक्री हेतु उपलब्ध हैं, साथ ही संकेतस्थल पर नवरात्रि उत्सव के संबंध में जानकारी उपलब्ध है ।

प्रश्‍न : दशहरा कैसे मनाना चाहिए ?
उत्तर : घर में प्रतिवर्ष हम जिन उपलब्ध शस्त्रों का पूजन करते हैं, उनकी तथा जीविका के साधनों की पूजा करें । एक-दूसरे को अश्मंतक के पत्ते देना संभव न हो, तो ये पत्ते केवल देवता को अर्पण करें ।

दृष्टिकोण :

1. कर्मकांड की साधना के अनुसार आपातकाल के कारण किसी वर्ष कुलाचार के अनुसार कोई व्रत, उत्सव अथवा धार्मिक कृत्य पूरा करना संभव नहीं हुआ अथवा उस कर्म में कोई अभाव रहा, तो अगले वर्ष अथवा आनेवाले काल में जब संभव हो, तब यह व्रत, उत्सव अथवा धार्मिक कृत्य अधिक उत्साह के साथ करें ।
2. कोरोना महामारी की पृष्ठभूमि पर आपातकाल का आरंभ हो चुका है । द्रष्टा संत एवं भविष्यवेत्ताओं के बताए अनुसार आगामी 2-3 वर्षों तक यह आपातकाल चलता ही रहेगा । इस काल में सामान्य की भांति सभी धार्मिक कृत्य करना संभव होगा ही, ऐसा नहीं है । ऐसे समय में कर्मकांड के स्थान पर अधिकाधिक नामस्मरण करें । कोई भी धार्मिक कृत्य, उत्सव अथवा व्रत का उद्देश्य भगवान का स्मरण कर स्वयं में सात्त्विकता को बढाना होता है । इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं में सात्त्विकता बढाने हेतु काल के अनुसार साधना करने का प्रयास करना चाहिए । काल के अनुसार आवश्यक साधना के संदर्भ में सनातन के आध्यात्मिक ग्रंथों में विस्तृत जानकारी दी गई है, साथ ही वह सनातन संस्था के www.sanatan.org संकेतस्थल पर उपलब्ध है ।’नवरात्रि के दिनों में देवी तत्त्व अन्य दिनों की तुलनामें 1000 गुना अधिक कार्यरत रहता है । इस समय ‘श्री दुर्गादेव्यै नमः I’  यह नामजप तथा देवी उपासना भावपूर्ण कर देवीतत्त्वका अधिकाधिक लाभ लेंगे I

चेतन राजहंस,प्रवक्ता, सनातन संस्था, 

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