एक तरफ है समाजवादी पार्टी का जातिवादी, मज़हबी MY यानि मुस्लिम-यादव फ़ॉर्मूला जिसे अखिलेश यादव बार-बार अल्लादीन के चिराग की तरह घिस रहे हैं और उम्मीद कर रहे हैं जिन्न आएगा और उनको जिता देगा. पर उत्तर प्रदेश को पसंद आ गया है भाजपा का MY यानि मोदी-योगी फार्मूला क्योंकि इसमें सपा की तरह विनाश की नहीं विकास की गारंटी है.
सपा के MY में है जातिवादी ज़हर तो भाजपा के MY में है सभी जातियों का सम्मान
• सपा के MY में है मज़हबी कट्टरपंथियों की हिंसा, भाजपा के MY में है सर्वधर्म सदभाव
• सपा के MY में थानों में एक ही जाति का वर्चस्व, भाजपा के MY में सर्वजातियों की नियुक्ति
• सपा के MY में है राम भक्त कारसेवकों पर गोलीबारी, भाजपा के MY है राममंदिर निर्माण
• सपा के MY में है जिन्ना, भाजपा के MY में है नेताजी और झाँसी की रानी
• सपा के MY में है कट्टरता और तालिबान, भाजपा के MY में है उत्तर प्रदेश का सांस्कृतिक, आर्थिक उत्थान

अखिलेश यादव औरंगजेबी सत्ता और जिन्ना के प्रशंसक
यूँ तो अखिलेश यादव औरंगजेबी सत्ता और जिन्ना के प्रशंसक हैं पर जब उनकी सरकार आती है तो ‘निज़ाम’ चलता है. निज़ाम यानि ‘नसीमुद्दीन’, इमरान मसूद, आज़म खान और मुख़्तार अंसारी’. महिलाओं पर अमर्यादित टिप्पणी के लिए नसीमुद्दीन सलाखों के पीछे हैं तो मोदी जी की बोटी-बोटी करने की धमकी देने वाले इमरान मसूद कभी अंदर और कभी बाहर होते रहते हैं. बांकी बचे आज़म खान और मुख़्तार अंसारी अपने गुनाहों की सजा काट रहे हैं.

अगर आपको जानना है कैसा होता है अखिलेश का निज़ाम तो 2013 के फ्लैशबैक में चले जाइए. उस वर्ष सांप्रदायिक हिंसा की 247 घटनाओं के साथ शीर्ष पर रहा था उत्तर प्रदेश और दंगों में 77 मौतें हुईं थी. ऐसा नहीं था कि ये दंगे महज़ एक इत्तेफ़ाक़ थे, ये साज़िश थे क्योंकि ये सरकार के साये के तले हुए थे और जिन्होंने किया था उन्हें सरपरस्ती हांसिल थी सत्ता की और तब आज़म खान मंत्री होते थे.

अखिलेश यादव का मज़हबी चश्मा
अखिलेश यादव विपक्ष में रहकर जितनी भी बातें करें पर जब उनकी सरकार होती है तो उनके चश्में में दो कांच होते हैं जहां दाईं आँख के चश्मे से मज़हब विशेष के लोग दिखाई पड़ते हैं वहां हम और आप नहीं होते हैं. इसी तरह बाईं आँख के सीसे से एक जाति विशेष के लोग दिखाई देते हैं उसमे भी आप और हम नहीं होते हैं. ऐसा समाजवादी चश्मा एक बहुत ही खतरनाक बीमारी का परिचायक है. इसको पहनने के बाद दंगे, भ्रष्टाचार, भूकब्जा जैसे अपराध भी काम लगने लगते हैं.
इस चश्मे को पहनकर ही अखिलेश यादव एक तरफ कई सौ करोड़ के हज हाउस बनवाते हैं तो दूसरी तरफ भोलेबाबा के भक्त कांवड़ियों का डीजे बंद करवा देते हैं. इस चश्मे को पहनने के बाद आतंकवादी बेक़सूर नज़र आते हैं और उनके लिए अदालतों में माफीनामा लिखते हैं अखिलेश यादव. इस चश्मे को पहनने के बाद अखिलेश यादव को सिर्फ एक जाति विशेष के लोग ही काबिल दिखते हैं बाकी नालायक.
ये चश्मा पहनकर ही अखिलेश यादव 2013 के दंगों को विकास कहते हैं और दंगाई भूमाफिया आज़म खान को बहुत बड़ा नेता बताते हैं. पर अब उत्तर प्रदेश को इस मज़हबी और जातिवादी चश्मे की राजनीति नहीं पसंद, 2017 की ही तरह फिर देगा प्रदेश सत्ता से बाहर रहने का दंड. जबसे सपा और बसपा ने सत्ता के लिए अपराधियों को अपना बैसाखी बनाना शुरू किया तबसे उत्तर प्रदेश की आम जनता के दुर्दिन शुरू हो गए. ना सिर्फ अपराधी, डाकू और माफिया विधायक बने, उन्हें मायावती और अखिलेश यादव ने मंत्री पद भी दिया.
यहां तक कि सपा और बसपा सरकार के कार्यकाल में यूपी माफिया सेंटर बन गया था पर 2017 में प्रदेश की जनता ने कमल खिलाया तो अपराधी अब दो ही जगह दिखते हैं या तो वो जेल में हैं फिर समाजवादी पार्टी में. अपराधियों, डाकुओं और माफियाओं को समाजवादी पार्टी ने विधानसभा के लिए उम्मीदवार बनाया है, पहले मुख्यमंत्री रहते और पार्टी अध्यक्ष के नाते गले में हार सा सजाया है.

नाहिद हसन पर 17 मुकदमे चल रहे है, रफ़ीक अंसारी भी कई मुक़दामों में आरोपी है. इन दोनो ने भी पहनी अखिलेश यादव वाली लाल टोपी है. मोहर्रम अली पप्पू हो या असलम चौधरी या हो हाजी युनुस, ये सभी अपराधी रहते हैं सिर्फ समाजवादी पार्टी में खुश. मदन कसाना हो या अमरपाल शर्मा या हो शहीद मंज़ूर, अखिलेश भैया को है हर अपराधी, दंगाई मंज़ूर

इससे पहले पिता के साथ ऐसा बर्ताव मुगलिया सल्तनत में देखा गया था जहां तख़्त के लिए बाप को कैदखाने में डाल दिया था औरंगजेब ने. जब मुलायम ने अखिलेश को बबुआ कहा होगा तो सोचा भी नहीं रहा होगा उनके साथ ऐसा होगा पर सत्ता लौलुपता ने बबुआ यानि टीपू को अंधा कर दिया है. पहले पिता को ब्लैकमेल कर मुख्यमंत्री की कुर्सी हथियाना, फिर पार्टी अध्यक्ष पद से भी उन्हें बेदखल करना, ये तो भारतीय संस्कार बिलकुल भी नहीं हैं. तो क्या अखिलेश यादव औरगंजेब है?

बिलकुल, जिन्ना का जिन्न तो अखिलेश में है ही, औरंगजेब के संस्कार भी हैं. जैसे औरंगजेब ने बूढ़े बाप शाहजहाँ को आगरे के किले में कैद कर दिया और मरने के लिए छोड़ दिया शायद मुलायम के साथ भी ऐसा ही करना चाहता है टीपू. सिर्फ यही समानता नहीं है टीपू की औरगंजेब के साथ, वो औरंगजेब की ही भांति आखरी मुख्यमंत्री साबित होगा समाजवादी पार्टी का क्योंकि इस जिन्नाप्रेमी के 2012-17 सरकार के दौरान पूरा यूपी दंगों में जला.युवा UPPSC और लैपटॉप घोटाले से लूटे गए. प्रदेश के संसाधन खनिज घोटाले में लूटे गए. मज़हबी कट्टरपंथियों के सामने घुटने टेकती अखिलेश यादव की सरकार आतंकियों की सजा माफ़ करवाने के लिए अदालत में हलफनामा देती थी.

शिवाजी बनाम औरंगजेब
निःसंदेह ये चुनाव औरंगजेब और छत्रपति शिवाजी के बीच है क्योंकि ये दो विचारधाराओं के बीच चुनाव है और दो सरकारों के बीच भी जो इन विचारधाराओं पर चलती हैं. एक तरफ है औरंगजेब को अपना हीरो मानने वाली समाजवादी पार्टी सरकार और दूसरी तरफ है छत्रपति शिवाजी में अपने इतिहास, संस्कृति और गौरव प्राप्त करने वाली भाजपा. ये एक आक्रांता के खिलाफ हिन्दवी स्वराज के लिए लड़ने वाले नायक के लिए चुनाव है

ये चुनाव इस बात का भी चुनाव है कि क्या तुष्टीकरण के लिए एक मज़हब विशेष के उन्मादी ताकतों से चलेगा उत्तर प्रदेश? या सर्वधर्म सदभाव से ‘सबका साथ सबका विकास’ के मूलमन्त्र से चलेगा. ये चुनाव औरगंजेब वाली मानसिकता के खिलाफ भी चुनाव है जिसके अवशेष काशी, मथुरा, अयोध्या हर जगह मिलते हैं. ये वो मानसिकता है जिसे लगता है ये मुगलिया दौर है और यहां उनके फरमान और फतवे चलेंगे. ये चुनाव उस तुष्टिकरण की औरंगजेबी मानसिकता के खिलाफ भी है जो आतंकी गतिविधियों में शामिल आतंकवादियों की सजा माफ़ करवाने के लिए सरकारी तंत्र का उपयोग करती है.

ये चुनाव इसका भी चुनाव था कि क्या आपकी आने वाली नस्लें औरंगजेब बनेंगी या शिवाजी महाराज और जनता ने शिवाजी को चुना

योगी जी की जीत, औरंगजेब के ऊपर शिवाजी की जीत है

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