हिंदू धर्म में पूर्णिमा तिथि बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह तिथि भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने और आशीर्वाद पाने के लिए बहुत ही उत्तम दिन माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, कार्तिक माह की पूर्णिमा को सभी देवी-देवता धरती पर आते हैं और गंगा घाट पर दीपावली मनाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था, क्योंकि इन्होने तीनों लोकों में आतंक मचा रखा था। इसलिए इस दिन को ‘त्रिपुरारी पूर्णिमा’ के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन स्नान दान करने के साथ भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
वैदिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 15 नवंबर सुबह 6 बजकर 19 मिनट पर होगी तथा पूर्णिमा तिथि का समापन 16 नवंबर सुबह 2 बजकर 58 मिनट पर होगा। ऐसे में कार्तिक पूर्णिमा 15 नवंबर को मनाई जाएगी।
कार्तिक पूर्णिमा को लेकर दो कथाएं प्रचलित हैं। एक भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिकेय से जुड़ी हुई है तथा दूसरी कथा देव दीपावली मनाने को लेकर है। जानते हैं ,पहली कथा – एक बार कार्तिकेय और गणेश की प्रथम पूज्य प्रतियोगिता हुई, जिसमें कार्तिकेय के छोटे भाई गणेश विजयी घोषित किए गए। इस बात को लेकर कार्तिकेय नाराज हो गए थे। जब स्वयं भगवान शिव और पार्वती कार्तिकेय को मनाने के लिए गए तो उन्होंने क्रोध में श्राप दिया था कि यदि कोई स्त्री उनके दर्शन करने आयेगी तो वो सात जन्म तक विधवा रहेगी। वहीं यदि किसी पुरुष ने दर्शन करने का प्रयास किया तो उसकी मृत्यु हो जाएगी और इसके बाद नरक में जायेगा। लेकिन बाद में किसी तरह भगवान शंकर और मां पार्वती ने उनका क्रोध शांत किया और उनसे किसी एक दिन दर्शन देने के लिए कहा। जब कार्तिकेय का क्रोध शांत हुआ तो उन्होंने कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को उनके दर्शन करना महा फलदायी बताया।
एक अन्य धार्मिक कथा के अनुसार कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को भगवान शिव ने तारकासुर नाम के राक्षस का वध किया था। यह भी कहा जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही प्रदोष काल में महादेव ने अर्धनारीश्वर रूप में तारकासुर के तीनों पुत्रों का भी वध किया था। जिन्हें त्रिपुरासुर के नाम से जाना जाता था। जिसकी खुशी में देवताओं ने शिवलोक यानि काशी में आकर दीपावली मनाई थी। तभी से ‘देव दीपावली’ मनाने की परंपरा चली आ रही है। माना जाता है कि कार्तिक मास पूर्णिमा तिथि के दिन काशी में गंगा स्नान कर दीप दान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है।
यह भी मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा को ही देवी तुलसी ने पृथ्वी पर जन्म ग्रहण किया था। कहा जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन राधिका जी की शुभ प्रतिमा का दर्शन और वन्दन करने से मनुष्य को जन्म के बंधन से मुक्त होने में सहायता मिलती है। इस दिन बैकुण्ठ के स्वामी श्री हरि को तुलसी पत्र अर्पण किया जाता है । इसके अलावा कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरु नानक देव जी का भी जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन गुरू नानक जयंती का पर्व भी मनाया जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा पूजा विधि :
कार्तिक पूर्णिमा पर पवित्र नदी में स्नान और दीपदान का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि इस दिन सही समय पर नदी में स्नान करने से व्यक्ति पापों से मुक्त हो जाता है। इसके अलावा, इस शुभ दिन पर जरूरतमंदों को दान भी दिया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा पर सुबह जल्दी उठें। घर की साफ-सफाई करें और सूर्य देव को अर्घ्य दें। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें। व्रत का संकल्प लें। भगवान विष्णु को सुगंध, फूल, फल, पुष्प और वस्त्र अर्पित करें। देसी गाय के घी का दीपक जलाएं, आरती करें और भगवान विष्णु के मंत्रों का जप करें। फल, मिठाई आदि का भोग लगाएं।
इस दिन अपने कुलदेवता तथा इष्टदेवता सहित, स्थानदेवता, वास्तुदेवता, ग्रामदेवता और गांव के अन्य मुख्य उपदेवता, महापुरुष, वेतोबा इत्यादि निम्न स्तरीय देवताओं की पूजा कर उनकी रुचि का प्रसाद पहुंचाने का कर्तव्य भी पूर्ण किया जाता है। देवदीपावली पर पकवानों का महानैवेद्य (भोग) अर्पित किया जाता है।
DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.