1920 ईस्वी में लेलिन ने कहा था – साम्यवाद की लपेटें पेकिंग (बीजिंग) से होते हुये , बंगाल के रास्ते एक दिन लंदन तक पहुँच जाएगी । क्या गलत कहा था लेलिन ने, साम्यवादी गिद्ध तो अब कलकत्ता क्या पूरे देश मे फैल चुके हैं, और गढ़ है जेनयू और बॉलीवुड ।

हम कब तक मान-सम्मान ढोते रहेंगे । 1000 साल तक कि गुलामी क्या कम थी, जो फिर से हम ये बबासीर पालने पर उतारू हैं । 200 आदमी के सहारे ये दो लाख आदमियों को डरा धमका देते हैं, और हम अहिँसा की माला लिए , मारकाट होने के वावजूद , शांति समझौते की बात करते रहते हैं । दिन दहाड़े पांच गुंडे मिलकर कभी पुलिस की हत्या कर देता है , किसी मासूम के हाथ पांव काट कर जला देता है , छोटी छोटी बच्चीयों के साथ रेप कर लेता है और हम हाथ पे हाथ धरे विप्लप गान गाते रहते हैं ।

जब जी चाहा रोड को घेर के बैठ गए , जब जी चाहा डफली बजाने लगे , जब जी चाहा दलित ठाकुर खेल खेलने लगे ! क्या हम फिर से गुलाम हो जाना चाहते हैं, या हम कभी अशोक भी बनेंगे ? शांति का मार्ग सम्राट अशोक ने बाद में चुना था पहले नही ,और ये बात हम भूल बैठे हैं । ऐसे ही नही बन गया था विशाल मौर्य साम्राज्य मगध से अफगानिस्तान तक , उसके लिए अशोक को क्रूर बनना पड़ा था । तभी तो वह आज भी चांडाल अशोक कहलाते हैं । लेकिन हमारी आदत ही है कि जो चल रहा है चलने दो , संतोष करो । गरीबी है , सतोष करो । कोई दबा रहा है, संतोष करो । किसीने डॉक्टर पर पथराव किया, संतोष करो । बलरामपुर या राजस्थान में बलात्कार किया , रहने दो। कोई प्रतिक्रिया नही ? मानो हम सिर्फ कहलाने के लिए युवाओं का देश हैं और काम वृद्धावस्था वाली । संतोष करो ।

शरीर से भले ही हमारे प्रधानमंत्री वृद्ध हैं लेकिन ऊर्जा और सोचने की शक्ति में वे हमसे बहुत आगे हैं। सही मायने में तो वो युवा हैं और हमलोग शिथिल , लाचार, बेबस, बस संतोष करने वाले लोग । यंहां “हमलोग” से मेरा संबोधन उनलोगों के लिए है जिन्हें गिद्ध मण्डली ने मार्क्स या वामपंथी विचारधारा  के रूप में ड्रग्स देना सुरु कर  दिया है  l एक बार बस  लत  लग गयी ,उसके बाद  सिर्फ  बेहोशी l मैंने भी मार्क्स  को  पढ़ा  है , लेकिन  साथ में  मैक्यावेली को भी पढ़ा है जिसने कहा था – देश के आगे कुछ भी नही l जो भी भटके हुए युवा  हैं, यदि वह ध्यान  से साम्यवादी निति का अध्यन करेंगे तो सामने -जलता बंगाल , जलता बेगलुरु , और शाहींनबाग को देखेंगे  !

यदि यही रवैया रहा, तो वह दिन दूर नही जब हम एक बार फिर से गुलाम हो जाएंगे । और इसबार अनपढ़ और जाहिल मुगलों का गुलाम नही बल्कि महा धूर्त , गिद्ध से भी ज्यादा लालची कम्युनिस्ट का गुलाम । मुग़ल ने तो हमारी हत्या की , लेकिन हमारे दिमाग पर अधिकार नही कर पाये , शायद इसीलिए उस गुलामी की जंजीरों को हम तोड़ पाए । अंग्रेजों ने मानसिक रूप से हमें गुलाम बना लिया था तभी भारत के दो टुकड़े हुए । ये होना ही था क्योंकि अंग्रेज मुगलों की तरह अनपढ़ नही थे । लेकिन जिस तरह से हम देश मे हो रहे घटनाओं को नजरअंदाज करते जा रहे हैं , वह दिन दूर नही जब अचानक से देश की सत्ता इन गिद्घों के हाथों में चली जाएंगी । और फिर  तो आप चीन में नागरिकों के साथ बरताव देख ही रहे हैं l जिस मंदिर  को हमारे  पूर्वज  बचाते  चले आये, उसे तो अब तक हमने संभाल के रखा है l लेकिन , यदि ये गिद्ध सफल हो जायंगे तो फिर भारत में ना  मंदिर बचेगी और ना बुद्धस्थल l चीन में , रशिया में गिरजाघर या मस्जिद ढाह दिए गए हैं , कोई रोक भी नही सकता ! जो भारतीय मुसलमान सोच रहे हैं वामपंथी वाले उनके साथ हैं वे एकबार आराम से,मन और चित शांत करके चीन का पढ़ लें ,मेरा दावा है,यदि थोड़ी सी  भी समझदारी होगी, तो वर्तमान सरकार की जयजयकार करने लगेंगे l समझ जायंगे  कि मोदी  जी सही हैं, और नकली सेकुलर-छेदन निति देश के लिए  बेहद ही सटीक और कारगर  इलाज है !

सम्पूर्ण देश मे ये लोग सक्रिय हैं और अब तो परिणाम भी दिखने सुरु हो गए हैं । कईं युवा पूरी तरह से इनके गिरफ्त में हैं । अब चाहे वर्तमान सरकार कुछ भी अच्छा कर दे वह बेहोश हैं l उनके दिमाग को नियंत्रित कर लिया गया है । दिमाग मे कम्युनिस्ट का ड्रग्स दौड़ रहा है । उन्हें पता ही नही की उनमें और चीनी के नागरिक में अब कोई फर्क नही है ।

मैं ये पोस्ट इसलिए नही लिख रहा कि मुझे कोई वाहवाही चाहिए या प्रशंशा । वाहवाही और प्रशंशा के लिए 1962 की लड़ाई में लोग लिख लिख कर लेह-लद्धाख की जमीन चीन को दान दे चुके हैं । किसी को पदम् श्री, तो किसी को राष्ट्रकवि का पुरस्कार मिल ही गया था l वह भी इसलिए कि उनलोगों ने लिख लिख कर सेनाओं के मानोबल को बढ़ाया था । आप सोच कर देखिये , पूरा भूभाग चीन ने कब्जा लिया , और देश् के प्रधानमंत्री नेहरूजी ने कहा- वह जमीन किसी काम का नही था और इतने सैनिकों की बली भी चढ़वा दिया, और सैनिक संहार के जश्न में  फिर पुरस्कार वितरण समारोह का आयोजन ।

मैं तो सोच रहा था की जब जमीन बेकार ही थी तो फिर युद्ध ही क्यों होने दिया नेहरू जी ने ? आराम से उन बेकार जमीन को चीन के हवाले कर देते । कम से कम हिंदी चीनी भाई नारे की लाज तो रह जाती और हमारे सैनिक भी नही मारे जाते । लेकिन मैं भी क्या लिख रहा हूँ । उस व्यक्ति से अपेक्षा करना मूर्खता से कम नही जो अपनी अय्याशी को छुपाने के लिए मातृभूमि को ही गाली दे कर मातृभूमि को बंजर कह दिया । और उसी अय्यासी का नाती कल असभ्यता के साथ हमारे प्रधानमंत्री को पंजाब में संबोधित कर रहा था । चीन के हड़पे हुए जमीन पर यदि पढ़ लेता तो अबतक गधा से उल्लू नही मनुष्य बन गया होता । आज की लेख में मैं थोड़ा क्रोधित हूँ और असभ्यता के साथ ही नेहरू को संबोधित कर रहा हूँ । कारण स्पष्ट है – ये वर्तमान भेड़िये उसी का जना हैं   !

मैंने सम्मान देना छोड़ दिया है । कभी कभार “जी” का प्रयोग सुरुआती प्रयास के  भूल मात्र  हैं , और सुरुआत तो करना ही होगा तभी परिपक्वता के साथ हम इन दुश्मनों को धूल चटा पाएंगे । आँख में आँख डालकर , बिना  किसी  सम्मान के , इन सभी को सबक सिखाना होगा l ये लोग उन्हीं लोगों के संतान  हैं जो मुगलों  और अंग्रेजों  के पाले में बैठ कर सिगार और शराब पीकर देशभक्तों और देश के साथ गद्दारी करते रहे और मातृभूमि पर  मरने वाले  हमारे पूर्वज इनके पूर्वजों का इंतज़ार करते रहे , यह सोच कर कि – आज नही तो कल देशप्रेम जाग जाएगा , लौट आएगा ! हम भी अपने पूर्वजों की तरह  वही कर रहे हैं – इनके  लौटने  की प्रतीक्षा ! हम  गलत  कर रहे  हैं , फिर  से वही गलती तो फिर परिणाम भी वही होंगे – हमारी हत्या , गुलामी !

कश्मीर , लेह , लद्धाख आदि आदि बहुत से नासूर देकर मरे थे नेहरू जी । और उसी नासूर को आगे बढ़ाने का काम अपने सुपुत्री को सौंप गए थे । यह परंपरा भंग किया भाजपा ने और कश्मीर अब देख लीजिए । यह सब इसलिए हो रहा है कि हमने पहली बार सही मायने में अपना नेता चुना है । यही है हमारा नेता जो ढोंग में नही देश मे विश्वास करता है । जो कुर्सी से नही देश से प्रेम करता है। दिन रात हमें हमारे इतिहास से मिला रहा है ।

हमें अब तीव्र हो जाना चाहिए । एकदम नुकीला , धारदार जिससे किसी भी लक्ष्य को भेद संके । यदि हम इस काल में भी सोये रहे तो ये मुठ्ठी भर लोग हमे नोच खाएंगे । और आदत के अनुसार हम सहते भी जाएंगे । अभी हुंकार का समय है । हमें हूंकार करना होगा । हमे चुप नही रहना बल्कि हमला करना होगा । बात करने का समय बीत चुका है । हमें शोशल मीडिया या गली , मोहल्ले हर-तरफ अपनी जाल बिछानी होगी । अब जाल में फंसने का समय नही , शिकार करने का समय है । जो देश के विरुद्ध पत्रकारिता कर रहे हैं उनके नकाब को हम  नोंच  चुके हैं ! एकसूत्र में हमसब अब बंध चुके हैं ! अब और नही सहेंगे !

इसलिए सबसे पहले ममता को बंद करने का समय आ गया है । यही लोग देश् को बर्बाद करने पर तुले हुए हैं। जेल में पागलों को डालना ही होगा । और कोई उपाय अब शेष नही । कोई विकल्प अब शेष नही । देश के विरुद्ध जो भी बात करे उसका सम्मान नही दमन !!

वन्दे मातरम  – वन्दे मातरम – वन्दे मातरम 

जय-हिंद

~दिशवWrites

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