आजकल सलमान खुर्शीद बड़े चर्चे में हैं क्योंकि उन्होंने एक किताब लिखी है जिसमें उन्होंने हिंदुत्व की तुलना बोको हरम और आईएसआईएस जैसे क्रूर संगठनों से की है।
मैं आज शेखर गुप्ता जी को भी बधाई देना चाहूंगा जिसमें उन्होंने एक अपने पेड आलेख में बोको हराम जैसे संगठनों से हिंदुत्व की तुलना को गलत ठहराया है परंतु यह बात कहते कहते भी शेखर गुप्ता जैसे लोगों को दो-तीन दिन लग गए और दैनिक भास्कर को भी ऐसे लेख मिलने में दो-तीन दिन लग गए या यह भी हो सकता है कि कुछ चलताऊ लेखकों ने लिखा भी हो पर उन्हें एक शेखर गुप्ता जैसे नामचीन लेखक का आलेख चाहिए था जिसके लिए उन्होंने ३ दिन तक प्रतीक्षा की अर्थात एक गलत बात को गलत कहने के लिए भी बाजार को दो-तीन दिन की जरूरत पड़ती है।

खैर इस आलेख के लेखक का श्री सलमान खुर्शीद जी से 2004 से नाता है क्योंकि 2004 में दिल्ली पब्लिक स्कूल अलीगढ़ ज्वाइन करने के साथ ही मई के अंतिम सप्ताह में दिल्ली के तीन या चार डीपीएस स्कूलों में शिक्षकों का वर्कशॉप था और उसमें मेरे लिए वर्कशॉप डीपीएस फरीदाबाद में, अंग्रेजी वालों के लिए डीपीएस नोएडा में ,सोशल साइंस वालों के लिए डीपीएस मथुरा रोड और विज्ञान के शिक्षकों के लिए डीपीएस द्वारका में आयोजित हुआ था। इन तीन चार विद्यालयों में घूमने के क्रम में हमारा सामूहिक सामना सलमान खुर्शीद जी से हुआ एक ग्रुप फोटो में उस फोटो का हिस्सा मैं भी हूं और युवाओं में भारत का पक्ष रखते हुए हमने उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी के साथ भी देखा है और उन दोनों की गलबहियाँ किए हुए कई फोटोग्राफ नामचीन पत्रिकाओं के तत्कालीन अंको में दिखे।


बोको हराम और आइसिस से हिंदुत्व की तुलना करने से पहले श्री खुर्शीद ने क्या ये जहमत उठाई कि –

१. क्या बोको हरम की तरह किसी हिंदुत्ववादी ने संगठन ने किसी अन्य धर्म की महिलाओं का अपहरण किया है?
२. हिंदुत्व वादियों से भरे इस भारतवर्ष में इस्लाम समर्थकों की संख्या लगभग दुगुनी रफ़्तार से बढ़ रही है जबकि इस्लाम समर्थित देशों में हिंदुत्व वादियों की संख्या 10 गुनी दर से घट रही है। ईरान, इराक ,सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात ,मिस्र और अफ़गानिस्तान , नवोदित पाकिस्तान और बांग्लादेश से मौलिक हिंदू निवासियों की संख्या पर ध्यान दिया जाए तो आजादी के वक्त रही हुई हिंदू आबादी आज अपना दसवां अंश भी नहीं है।

यह बात में सिर्फ पाकिस्तान और बांग्लादेश के सन्दर्भ में कह रहा हूं जब कि खाड़ी देशों में तो कम से कम ६०० ई० से पहले मुसलमान नाम की प्रजाति तो नहीं रहती थी । तो जो भी रहती थी वह या तो हिंदू की आबादी थी यहूदी आबादी थी या ईसाई आबादी थी। आज सारे के सारे मुस्लमान हीं क्यों हैं? या तो सारा का सारा कुनवा मार दिया गया या मर्दों को मारकर माल ए गनीमत जंगजुओं में बाँट दी गई।

अफगानिस्तान में बुद्ध की गगनचुंबी मूर्तियां बनाने वाले लोग भी कम से कम इस्लाम समर्थक तो नहीं रहे होंगे। तालिबानियों को भी तो तोड़ना हीं आता है। पर आज इस्लाम का दबदबा ऐसा है कि अफगानिस्तान से आखरी सिख परिवार भी भारत आ चुका है और पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिंदू आबादी शायद एकांकीय प्रतिशत में बची है।
आने वाले दिनों में अपनी बेटियों की लुटती इज्जत को बचाने के लिए शायद वह आवादी भी इस्लाम कुबूल करले तो किसी भी हिंदुत्ववादी को अचरज नहीं होना चाहिए।
परंतु साहब को हिंदुत्व वादियों की असहिष्णुता से नाराजगी है।

हिन्दुत्व के आतंक का तो ये आलम है कि इस देश में संविधान के अंतर्गत भारत के सर्वोच्च पद पर कम से कम दर्जनभर मुसलमान सर्वोच्च संवैधानिक और न्यायिक पदों पर रही है और उन्हें यथोचित सम्मान भी मिला है।
क्या बोको हरम या आइसिस ने हिन्दुत्व की तरह ऐसा कमीनापन कभी दिखाया है?
क्या सलमान खुर्शीद यह सोचने की तकलीफ करेंगे कि जिस सहिष्णु देश में रहने के लिए खान तिकड़ी को, शायरों को , कई साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं को और कमल हासन जैसे अभिनेताओं को तकलीफ हो रही है उसी देश की सीमा पर रोहंगिया और बिहारी मुसलमान भारत की सीमा में घुसने के लिए बैठे हुए हैं और कुछ तो नाजायज तरीकों से आधार कार्ड ,राशन कार्ड ,पासपोर्ट आदि बनवा कर भारत के नागरिक भी बन चुके हैं।
क्या बोको हराम अलकायदा और आईसिस के कब्जे वाले इलाके में किसी अन्य धर्म के मतावलम्बी इस प्रकार धरना दिए बैठे हैं जा बैठे रह सकते हैं या उनकी बीवी बेटियां अपनी अस्मत बचा सकती हैं?
परंतु हिंदुत्व के लिए ये असनातनी जैसे आप सलमान खुर्शीद , जावेद अख्तर , मुनव्वर राणा या खान बन्धु जैसे कम अक्ल और सुविधा पसंद मुसलमान उसने खतरनाक नहीं है जितने इस भारत के बुद्धिजीवी हिंदू हैं। जिनका अगर नाम लेना हो तो सामूहिक रूप से लिया जा सकता है मसलन कांग्रेसी ,कम्युनिस्ट या वामपंथी, और वे सारे तथाकथित लोग जो बुद्धिजीवी कहलाते हैं परंतु जिनके कम से कम दादा तो हिंदू अवश्य थे… हाँ पिता और वे खुद सेक्युलर और बुद्धिजीवी भी हो सकते हैं, इन सब से भारत को ज्यादा खतरा है।
खुर्शीद साहब, अगर भारत के हिंदुत्व की तुलना आपने बोको हराम से की अलकायदा से की या आइसिस से की तो मुझे कोई अफसोस नहीं क्योंकि आप की सोच अबतक उससे ज्यादा ऊपर नहीं उठी है। हिन्दुत्व की परंपरा में गाय को हरा चारा खिलाना संस्कार माना जाता है जबकि आपको पता है कि कहीं कहीं बछड़े के गले पर छुरियां चलाना भी एक पाक और पवित्र फ़र्ज़ है और वह भी बहुत बड़ा ।
तो एक बार आप अब जरूर सोचें के जिस हिंदुत्व वाले हिन्दुस्तान में मुसलमान ३% से ३०% हो गए वो ज्यादा खतरनाक हैं या वो मज़हबी तंजीमें जिनमें आईसिस, अलकायदा, बोको हराम आदि का नाम लिया जा सकता है और जिसके वर्चस्व वाले क्षेत्रों में हिंदुओं की आबादी शत प्रतिशत से शून्य प्रतिशत तक पहुंच चुकी है?

जरूर सोचिए खुर्शीद साहब क्योंकि आप अक्लमंद हैं , आपकी अक्ल मंद नहीं है।

अज्ञानता एक बीमारी है और एक पूर्वाग्रह के साथ या बिना पूरी बात जाने किसी निर्णय पर पहुंचने की चाहत एक प्रकार का अज्ञान है।
गेट वेल सून खुर्शीद साहब।।

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