जय श्री राम सुनकर ममता बनर्जी ने मंच छोड़ दिया. देश में कहीं कोई शोर सुनाई दिया क्या..?? सेक्युलरिज्म ख़तरे में आया..?? सेक्युलर पछाड़ खाकर गिरे क्या?? अभिव्यक्ति की आज़ादी के चैंपियन चीखें-चिल्लाए?? लिबरल्स की ‘लाल ढपलिया’ कहीं बजीं क्या?? क्या बोले/ क्या ना बोले अधिकार वोले भौपू कहीं सुनाई दिए?? धार्मिक आजादी की बात करने वाले बुद्धिजीवी चश्मा उपर चढकर, अजीबोगरीब भाव-भंगिमाएं बनाकर, माथे पर सिलवटे चढ़ाकर चिंतित दिखाई दिए?? भय का माहौल वाले पत्रकार डरे-सहमे पत्रकारिता करते दिखे क्या?? नहीं ना??.. याद किजिए जब मोदी जी ने जालीदार टोपी पहनने से इंकार कर दिया था तब.. सेक्युलर/लिबरल पछाड़ खाकर मुर्छित हो गए थे. तवायफ मीडिया ने पैरों में # लाल घुंघरू और बालों में # हरा गजरा बांध खुब मुजरा किया था. बुद्धिजीवियों के चेहरे 3D पैटिग की तरह बनने/ बिगड़ने लगें थे.और प्राइम टाइम वाले पत्रकार महीनों तक भय के माहौल में रहें थे.मोदी साम्प्रदायिक और मुस्लिम विरोधी हो गए थे. लेकिन ममता आज भी सेक्युलर है. हिन्दू विरोधी तो कतई नहीं है. उदारवादी भी है….
सोचिए किस तरह के नरेटिव के बीच रह रहे हैं हम लोग…

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