हरि मंदिर में सब करें जागरण

हरि गीत सब मिल हैं गा रहे

रात्रि के अंधकार में

भक्ति प्रकाश फैला रहे

उस समय परन्तु कुछ बैठे चिंतित

निशाचरों का भय था उनको

वे रात में भटकें जीव भयानक

कहीं चले न आएं सुनके धुन को

पर हरिभक्त यहाँ अनिभिज्ञ सभी

कहें – दानव आज दिखते कहीं ?

वे तो बेचारे मानव हैं

यहाँ आए जब थी नहीं कोई राह कहीं

सुनकर बोले पंडित भी

प्रभुभक्ति करो दयावान बनो

निश्चिन्त होकर भजन करो

और योगेश्वर का ध्यान करो

एक शिवभक्त व्यथित, था वहीं उपस्थित

बोला मेरी जिज्ञासा शांत करो

मेरे शिव के पास फिर शस्त्र है क्यों

प्रश्न पे प्रकाश ‘पंडित रविकांत’ करो

पंडित ने अपनी बात कही

त्रिशूल शस्त्र नहीं बस सज्जा है

बस रूप में ही अच्छा है

शिव के समय को कयी युग हुए

अब अहिंसा मार्ग ही अच्छा है

भक्त थोड़ा विचलित हुआ

फिर उसने मन को शांत किया

सबने फिर ये विवाद भुलाया

दीपक प्रज्वलित कर प्रकाश किया

अंधकार के दिवस आने वाले थे अब

किंचित दीपक को आभास था

समय निकट आ गया था अब

भोर का नहीं नाश का

फिर अंधकार में हुआ आक्रमण

निशाचर मानवों पर भारी थे

मृत्यु का ऐसा प्रलय हुआ

सब मरे जो नर और नारी थे

शवों की परिधि पर नृत्य हुआ

आज निशा का उत्सव है

वन के सिंह भी भय से भाग रहे

सिंह है या सैंधव है

यदि जागरण से जागे होते

शस्त्र साथ रख आगे होते

न कोई दानव आया होता

न रक्त नभों का साया होता

यदि त्रिशूल उठाया होता

ये मात्र किसी की मृत्यु नहीं

यह तो है सभ्यता का अंत

ये पूण्य भूमि अब रुदन करे

जो आज पुत्र विहीन हुई

दुख का ऐसा सागर टूटा

ये अनंत शोक में लीन हुई

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