नवरात्रि के नौ दिनों में घटस्थापना के उपरांत पंचमी, षष्ठी, अष्टमी एवं नवमी का विशेष महत्त्व है । पंचमी के दिन देवी के नौ रूपों में से एक श्री ललिता देवी अर्थात महात्रिपुरसुंदरी का व्रत होता है । शुक्ल अष्टमी एवं नवमी ये महातिथियां हैं । इन तिथियों पर चंडीहोम करते हैं । नवमी पर चंडीहोम के साथ बलि समर्पण करते हैं ।

नवरात्रि की पंचमीपर ललितापूजन : पंचमी के दिन देवीपूजन करने से ब्रह्मांड में विद्यमान गंधतरंगें पूजास्थान की ओर आकृष्ट होती हैं । इन गंधतरंगों के कार्य के कारण पूजक के मनोमयकोष की शुद्धि होती है ।

नवरात्रि की षष्ठी तिथि का महत्त्व : षष्ठी के दिन देवी का विशेष पूजन किया जाता है और देवी की आंचलभराई भी की जाती है । इस काल में भक्त रातभर जागरण करते हैं, जिसे उत्तर भारत में जगराता भी कहते हैं। देवी की स्तुतिवाले भजन गाने के लिए विशेष लोगों को बुलाया जाता है । देवी का पूजन किया जाता है ।

नवरात्रि में जागरण करने का शास्त्रीय आधार : जागरण करना, यह देवी की कार्यस्वरूप ऊर्जा के प्रकटीकरण से संबंधित है । नवरात्रि की कालावधि में रात्रि के समय श्री दुर्गादेवी का तत्त्व इस कार्यस्वरूप ऊर्जा के बल पर इच्छा, क्रिया एवं ज्ञान शक्ति के माध्यम से व्यक्ति को कार्य करने के लिए बल प्रदान करता है । जागरण करने से उपवास के कारण सात्त्विक बने देह द्वारा व्यक्ति वातावरण में कार्यरत श्री दुर्गादेवी का तत्त्व इच्छा, क्रिया एवं ज्ञान इन तीनों स्तरों पर सरलता से ग्रहण कर पाता है । परिणामस्वरूप उसके देह में विद्यमान कुंडलिनी के चक्रों की जागृति भी होती है । यह जागृति उसे साधना पथ पर अग्रसर होने में सहायक सिद्ध होती है । यही कारण है कि, शास्त्रों ने नवरात्रि की कालावधि में उपवास एवं जागरण करने का महत्त्व बताया है ।

नवरात्रि की सप्तमी काे देवीमां के `कालरात्रि’ रूप का पूजन : सप्तमी के दिन देवीमां के दैत्य-दानव, भूत-प्रेत इत्यादि का नाश करनेवाले `कालरात्रि’ नामक रूप का पूजन करते हैं।

दुर्गाष्टमी (महाष्टमी) : दुर्गाष्टमी के दिन देवी के अनेक अनुष्ठान करने का महत्त्व है । इसलिए इसे `महाष्टमी’ भी कहते हैं । अष्टमी एवं नवमी की तिथियों के संधिकाल में अर्थात अष्टमी तिथि पूर्ण होकर नवमी तिथि के आरंभ होने के बीच के काल में देवी शक्ति धारण करती हैं । इसीलिए इस समय श्री दुर्गाजी के ‘चामुंडा’ रूप का विशेष पूजन करते हैं, जिसे `संधिपूजन’ कहते हैं ।

सार्वजनिक नवरात्रोत्सव : कैसा न हो और कैसा हो ?

शास्त्र के अनुसार जो कुछ भी हो, वही आदर्श तथा लाभदायक सिद्ध होता है । यदि दुर्गादेवी की मूर्ति मूर्तिविज्ञान के अनुसार बनी हो तो उसकी पूजा करने वालों को उसका लाभ मिलता है । दुर्भाग्य से आजकल लोगों की रूचि के अनुरूप, मूर्तिविज्ञान का आधार लिए बिना विभिन्न रूपों तथा आकारोंवाली मूर्ति की पूजा की जाती है । इससे दुर्गादेवी का अपमान होता है । हिंदुओं के त्यौहार केवल सामाजिक उत्सव नहीं अपितु तीव्र गति से आध्यात्मिक उन्नति करने हेतु हैं । इसलिए हमें इस त्यौहार में आनेवाली बुराइयों को रोकने का प्रयास करना चाहिए ।

वर्तमान में मनाए जानेवाले नवरात्रोत्सव का विकृत स्वरूप : हमने अधिकांश त्यौहार एवं उत्सवों की पवित्रता खो दी है । होली, नवरात्रोत्सव, दीपावली जैसे त्यौहारों पर लोग मद्य पीकर ऊधम मचाते हैं तथा धन का अपव्यय करते हैं । आज की पीढी भटक गई है ।

उत्सवमंडप से संबंधित अनाचार : मंडप बनाने हेतु ज्वलनशील पदार्थों का प्रयोग, मूर्ति की सजावट, विद्युत जगमगाहट एवं संगीत कार्यक्रम पर अत्यधिक व्यय, मंडप में जुआ तथा मद्यपान

अशास्त्रीय रूप की मूर्तियां : ‘प्लास्टर ऑफ पैरिस’ से बनी मूर्तियां, विचित्र रूप की मूर्तिया, विशालकाय मूर्तियां

समाजविघातक विषयों का प्रसार : सिगरेट, गुटका आदि हानिकारक पदार्थों के उत्पादकों से (दान के स्वरूप में) निधि लेकर, ऐसे उत्पादों के विज्ञापनों के संदेशोंद्वारा समाज को व्यसनाधीन बनाने में सहायक होना

समाजमन पर अनुचित संस्कार डालने वाले प्रसारण : चलचित्र के गीत, चलचित्र के संगीत पर / गीतों की ताल पर आधारित देवताओं की आरतियों की ध्वनिमुद्रिका (ऑडियो कैसेट) उच्च स्वर में लगाना, वाद्यवृंद, पॉप संगीत एवं नृत्य जैसे संस्कारहीन कार्यक्रमों का आयोजन

चलचित्र के गीत, संगीत एवं बिजली की सजावट आदि के फलस्वरूप ध्वनिप्रदूषण : ऊँची आवाज में चलचित्र के गीत से ध्वनि प्रदूषण होना

जुलूस में होनेवाले अनुचित प्रकार : आवागमन-यंत्रणा में बाधक, कूर्मगति से चलनेवाला जुलूस, अन्यों को बलपूर्वक गुलाल लगाना, मद्यपान, विचित्र अंगचलन कर नाचना, महिलाओं के साथ असभ्य वर्तन, बहरा कर देनेवाले पटाखे

उत्सव में क्या होना चाहिए ?: स्वच्छता, सात्त्विक सजावट, प्रत्येक जन मिलकर भाव भक्ति से पूजा की तैयारी करे, मिट्टी से बनी तथा प्राकृतिक रंगों से रंगी मूर्ति का उपयोग करें, पवित्रता बनाए रखने के लिए शुद्ध होने के उपरांत ही पूजा की तैयारी करना , आरती करना , विशिष्ट आरती भाव भक्ति से गाना तथा आरती के उपरांत प्रार्थना तथा नामजप करना, प्रसाद बनाते समय नामजप करते हुए बनाना , विसर्जन बहते जल में शास्त्रानुसार प्रवाहित करना

उत्सव में क्या नहीं होना चाहिए ? : महंगी प्रकाश व्यवस्था तथा साज-सज्जा तथा थर्माकोल की सजावट, मूर्ति  प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी विशालकाय आकार में या विभिन्न वस्तुओं से बनी, लंबी आरती ऊंचे स्वर में गाना, प्रसाद बनाते समय बातें करते हुए बनाना, मूर्ति दान करना तथा विसर्जन करते समय ऊंचाई से जल में फेंक देना ।

आइए इस नवरात्रोत्सव को एकजुट होने तथा धर्मानुसार करने का प्रयत्न करें ।

संदर्भ – ‘देवीपूजन से संबंधित कृत्यों का शास्त्र‘ एवं अन्य ग्रंथ

चेतन राजहंस, राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था

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