लालू यादव ने नीतीश कुमार को एक बार पलटूराम बताया था और कहा था कि वह कभी भी पलटी मार जाते हैं इसके अलावा उन्होंने सांप की भी उपाधि दी थी जो हर 2 साल में केंचुल बदल देता है. आज ये बयान सोशल मीडिया पर सुर्खियों में है लेकिन न तो नीतीश और न ही लालू यादव के परिवार को इससे कोई फर्क पड़ रहा है.

अब आधिकारिक रूप से नीतीश कुमार ने भाजपा सेचचा - भतीजा संबंध तोड़ लिए हैं और 7 पार्टियों के गठबंधन में   164 विधेयकों के समर्थन के साथ दोबारा मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं. इसमें भाजपा छोड़कर सभी दल शामिल हैं

नीतीश कुमार ने प्रेस कांफ्रेंस की उसमें बिल्कुल सामान्य दिख रहे थे और ऐसा लग रहा था कि उन्हें महागठबंधन में जाने की खुशी ज्यादा है और भाजपा छोड़ने का कोई दुख नहीं है.

वास्तव में उनके पाला बदलने की योजना काफी पहले से काम कर रही थी और और ये उस समय स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ा जब राबड़ी देवी की रोजा अफ्तार की पार्टी में नीतीश कुमार शामिल हुए और नीतीश कुमार की रोजा इफ्तार पार्टी में तेजस्वी और राबड़ी शामिल हुए. ये ऐसा मौका था जब नीतीश कुमार और लालू यादव के परिवार में आमने सामने बैठकर बहुत सारी बातों पर चर्चा हुई. बिहार में जातिवादी राजनीति अभी भी ये था बस चल रही है और किसी पार्टी की जीत के लिए दलित और पिछड़े मतदाताओं के अलावा मुस्लिम मतदाता बहुत महत्वपूर्ण है. आरजेडी की राजनैतिक सफर में तो यादव और मुस्लिम का बहुत बड़ा हाथ रहता आया है. मोदी और भाजपा के प्रति ज्यादातर भारतीय मुसलमानों का व्यवहार जगजाहिर है और अगर उनका बस चले तो वह एक मिनट भी मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर न रहने दें. लेकिन इतने मुखर विरोध के कारण ध्रुवीकरण भी बहुत तेज होता है जिसके कारण मुसलमानों के निर्णायक रहते आये मत भी भाजपा को सत्ता से नहीं हटा पाते.

हाल में खुफिया एजेंसियों के इनपुट के आधार पर बिहार के फुलवारी   शरीफ इलाके के नया टोला में स्थित पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के दफ्तर में 11 जुलाई को छापेमारी की गई। इस दौराना वहां से कई संदिग्ध दस्तावेज और आपत्तिजनक सामग्री बरामद हुई। इसमें पीएफआई के मिशन-2047 से जुड़ा एक गोपनीय दस्तावेज भी मिला है। इसमें भारत को अगले 25 सालों में इस्लामिक राष्ट्र बनाने की साजिश का जिक्र है। बिहार पुलिस इसकी व्यापक छानबीन कर रही है और इस संबंध में कई लोगों को गिरफ्तार किया गया है.

बिहार में अन्य राज्यों से आकर लोग पीएफआई के बैनर तले मुस्लिम नवयुवकों को अस्त्र शस्त्र चलाने की ट्रेनिंग देते थे. इस खुलासे से हड़कंप मच गया और चूँकि नीतीश कुमार हमेशा गृह मंत्रालय अपने पास रखते आए हैं इसलिए उन्हें भी काफी असहज होना पड़ा. नीतीश को चुप रहे लेकिन आरजेडी के नेताओं ने खुलकर पीएफआई और मुसलमानों का पक्ष लिया उन्होंने कहा कि जैसे आरएसएस अपने कैंप में शस्त्र चलाने की ट्रेनिंग देता है वैसे ये लोग देते हैं और इसमें गलत क्या है. कई नेताओं ने तो यहाँ तक कहा कि अगर हिंदुओं का एक वर्ग से हिंदू राष्ट्र बनाने की बात करता है तो अगर मुस्लिम इस्लामिक राष्ट्र बनाने की बात करते हैं तो इसमें गलत क्या है.

पिछले विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के भी पांच विधायक चुने गए थे, एआईएमआईएम ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने के लिए खुला समर्थन दे रखा था. इस समय उनकी पार्टी के कई विधायक आरजेडी में शामिल हो गए हैं.

यह भी कोई छिपी बात नहीं है कि भारत में जेहाद की गतिविधियों को विदेशी समर्थन भी हासिल रहता है और पैसे का अंधाधुंध उपयोग किया जाता है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस्लामिक वामपंथ गठजोड़ अभियान चलाकर सरकारों को अस्थिर करने का प्रयास करता है, और सत्तारूढ भाजपा के विरुद्ध लगातार अभियान चलाया जाता रहा है चाहे शाहीन बाग हो किसान आंदोलन हो या कोई भी मौका हो लेकिन इस तरह की सभी शक्तियां एकजुट हो जाती है. अगर बिहार में लंबे समय से पीएफआई का नेटवर्क फैल रहा था तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है? पिछले 15 वर्ष से भी अधिक समय से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं और गृह मंत्रालय हमेशा उनके पास रहता आया है.

पीएफआई की 2047 में भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने की योजना का पर्दाफाश होने के बाद और देशभर में ताबड़तोड़ छापों के बाद इसके अंतरराष्ट्रीय समर्थकों ने दबाव बनाना शुरू कर दिया था. पैसे का खेल तो अंधाधुंध होता ही है लेकिन एक मुस्त  वोटों के लालच देकर  स्थानीय विधेयकों और सांसदों को भी दबाव में लेने का काम किया जाता है. पीएफआई के बिहार के शुभचिंतकों और समर्थकों ने जेडीयू और आरजेडी विधेयकों पर दबाव बनाना शुरू किया था और किसी न किसी तरह से सख्त पुलिस कार्रवाई का विरोध भी किया था. इसलिए बिहार में पीएफआई की मिशन 2047 योजना का पर्दाफाश होने के बाद जितनी शक्ति और सामर्थ्य के साथ पुलिस कार्रवाई होनी चाहिए थी वह देखने को नहीं मिली.

इसके थोड़ा और पहले जिससमय सेना में अग्निवीर की भर्ती के विरोध में देश के कुछ शहरों में प्रदर्शन हुए थे उसमें बिहार सबसे प्रमुख था जितनी हिंसक मुखर प्रदर्शन बिहार में हुए उसने पूरे भारत में कहीं नहीं हुए और आगजनी तोड़फोड़ और रेलवे संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने का जितना काम बिहार में किया गया उतना कहीं नहीं किया गया. बिहार से अनेक ऐसे वीडियो बरामद हुए और ऐसी खबरें भी आईं जिनमे आगजनी और तोड़फोड़ की गतिविधियों में असामाजिक तत्वों का लिप्त होना पाया गया लेकिन पुलिस ने न तो कोई कार्रवाई की और न ही यह पता चल पाया कि असामाजिक तत्व कौन थे जिन्होंने अग्निवीर बरती योजना का इतना प्रखर विरोध किया और रेलवे की संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया. पूरे घटनाक्रम पर नीतीश कुमार भी चुप रहे और उन्होंने विरोध में एक भी शब्द नहीं बोला. उस समय से ही संदेह गहराता चला जा रहा था कि नीतीश कहीं ना कहीं से खासे दबाव में है. पिछले विधानसभा चुनाव में नीतीश की पार्टी जेडीयू की सीखें घटकर 43 पर पहुँच गई थी इसलिए नीतीश कुमार को अपने वोटबैंक का विस्तार करने की चिंता सताई जा रही थी. इसलिए किसी भी तरह की सख्त पुलिस कार्रवाई नहीं की गई.

आज PFI और उनका तंत्र बहुत खुश है अब जांच की आंच उन तक नहीं पहुंचेगी और उनका मिशन चलता रहेगा .

फुलवारी शरीफ ने पीएफआई के मॉड्यूल के खुलासे के बाद पटना के एसएसपी का बयान बेहद चौंकाने वाला रहा जिसमें उन्होंने पीएफआइ की तुलना आर एस एस सी की थी. मजेदार बात यह भी है कि उसके खिलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की गई थी. ये कहना भी अनुचित नहीं होगा कि उसी बिंदु से भाजपा और जेडीयू के बीच में दूरियां बढ़ने लगी और भाजपा जेडीयू के संबंध विच्छेद होने की पटकथा लिखी गई थी. मैंने 19 जून को एक विडीओ यू ट्यूब पर अपलोड किया था जिसमें यह संभावना बताई थी कि नीतीश कुमार जल्द ही पलटी मारने वाले हैं.

और अब जब नीतीश कुमार ने पलटी मार ही दी है तो फुलवारीशरीफ के पीएफआई मॉड्यूल की  राज्य की पुलिस द्वारा की जाने वाली जांच प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकती जब तक कि इसकी जांच एनआईए के द्वारा नहीं की जाती. इसलिए इसमें किसी को भी कोई हैरत नहीं होनी चाहिए कि इस तरह की सत्तापलट में पीएफआई का कनेक्शन भी हो सकता है क्योंकि पीएफआई को वर्ग विशेष के बड़े नेताओं और राजनैतिक आकाओं का संरक्षण प्राप्त है.

अब PFI पर जांच की आंच नहीं आयेगी और उसका मिशन २०४७ सुचारू रूप से चलता रहेगा .

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