आखिर क्यों इस बार का बिहार चुनाव इतना महत्वपूर्ण है भारतीय परम्परा के हिसाब से; आइए कुछ महत्वपूर्ण पहलू पर प्रकाश डालते हैं।
आजादी के बाद जिस तरह से केन्द्र में अधिकांश वक्त सत्ता में बैठे कांग्रेस ने बिहार को औधोगिक विकास से दूर रखा यह जग जाहिर है।

वैसे तो सरकारें कई बार बदली पर सही मायने में आजादी के बाद पूर्ण बहुमत की गैर कांग्रेस सरकार केन्द्र में पहली बार 2014 में आई।
बिहार जंगल राज के भय से 2005 के बाद निकल चुका था और 10 वर्षों में अपराध के मामले एकदम से सून्य हो गए थे। जिस तरह भाजपा और जदयू के साथ राम विलास पासवान जी ने बिहार में भूमिका निभाई वह एक चमत्कार से कम नहीं था ।

औधोगिक क्रान्ति तो बहुत दूर की बात थी मूल सुविधाएं तक नहीं थी जो कि प्रदेश की जनता को मिलने लगी, एक पृष्टभूमि तैयार हो चुकी थी औद्योगिक इकाइयों के स्थापना की पर अचानक 2015 के विधान सभा चुनाव में नीतीश कुमार का लुप्त होती राजद के साथ गठबंधन करना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी चलाने के समान था क्योंंकि एनडीए में वो खुद ही सीएम उम्मीदवार थे पर उनके गलत फैसले ने भ्रष्टाचारी कांग्रेस और राजद को संजीवनी देने का काम किया और नीतीश कुमार सुशासन बाबू से कुशासन बाबू हो गए , किए कराए पे पानी फेर दिया गया था खुद अपने ही हाथों अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार चुके थे नीतीश। जो बिहार केन्द्र के साथ अब औधोगिक विकास की तरफ देखने वाला था वह फिर से कांग्रेस और राजद के बीच में उलझ गया फिर गठबन्धन टूटा मगर बहुत देर हो चुकी थी और नीतीश कुमार जो एक बिहार का महानायक बन सकते थे उन्होंने अपने सारे राजनीतिक जीवन के संघर्ष को मिट्टी में मिला दिया।

मजबूरी थी भाजपा के साथ फिर आ गए पर आज भी लगभग सबसे ज्यादा विधायक राजद के ही हैं जो कि प्रदेश में फिर से अपराध को बढ़ने में एक भूमिका निभाई।
बात करते हैं 2020 की तो यह वर्ष बिहार की राजनीति में एक नए आयाम को जोड़ने वाली साबित हो सकती है। चुनावी समीकरण की बात करें तो इस बार चतुष्कोणीय मुकाबला होने जा रहा है।

बात करते हैं विदेशी विचारधारा वाली ए ओ ह्यूम्म जो ब्रिटिश सरकार के आदमी थे उनकी पार्टी कांग्रेस पहले से अपनी पैठ जमाए हुए है और अब विदेशी मार्क्स की पार्टी भी 25- 30 सीट पर लड़ रही है अगर ये दोनो विदेशी विचारधारा जीत गई तो लगभग 100 सीट पर कब्जा कर लेगी जो प्रदेश के लिए बिलकुल भी सही नहीं होगा। साथ साथ कट्टर सोच के ओवैसी की पार्टी भी चुनाव में ताकत लगा रही है और बिहार को अपमानित करने वाली शिव सेना भी बिहार में 50 सीट पर हिन्दू वोट तोड़ने के लिए आयेगी। राजद को कांग्रेस से अलग चुनाव लडना था जिसमे कुशवाहा जी का गठबन्धन को साथ लाना था , ओवैसी के आने से my समीकरण भी बनता और उसमे कुशवाहा जी को जोड़ दें तो myk समीकरण बनता जो जनता में एक नए ऊर्जा को जन्म दे सकता था। MYK समीकरण एक नया सा समीकरण लगता प्रदेश की जनता को।

विदेशी विचारधारा का मतलब यह बिलकुल नहीं है कि कोई नेता विदेशी हैं। सभी नेता बिहार के ही हैं पर इनकी पार्टी जहां से चलती है जो इनके आदर्श है वह एक विदेशी विचारधारा तो है ही।
जिनके पार्टी को बनाने वाले ही विदेशी हैं उस पार्टी की विचारधारा हिन्दुस्तान के हित में कैसे हो सकती है।

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