यूँ तो इस ओलिंपिक में अबतक भारत के ओलयम्पियन्स ने तीन पदक अपने नाम कर देश को गर्व करने तथा खुश होने का अवसर प्रदान किया किन्तु आज सुबह जब भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने अपने चिर-प्रतिद्वंद्वी जर्मनी को पराजित कर 41 वर्ष की लंबी प्रतीक्षा का अंत कर पुरुष हॉकी में अपने पुराने गौरव को पुनः जीवित कर ना सिर्फ मेजर ध्यानचंद्र और रूप सिंह, बलवीर सिंह सीनियर जैसे हॉकी के सर्वकालीन महानतम खिलाड़ी को स्मरण करने का एक अवसर प्रदान किया अपितु वर्षों से अपेक्षित भारत के राष्ट्रीय खेल हॉकी के प्रति देशवासियों के मन में पुनः प्रेम और गर्व के भाव का संचार किया जो 1980 के पश्चात औपनिवेशिक खेल क्रिकेट के विराट छाया में उपेक्षित हो गया था।
ऐसा नही हैं कि इन 41 वर्षों में भारतीय हॉकी में अच्छे खिलाड़ियों का आना बंद हो गया था अथवा वो भारतीय हॉकी की ओलिंपिक में स्वर्ण पदक जीतने की गौरवशाली परंपरा को जारी रखने में असमर्थ थे किंतु भारतीय हॉकी संघ के खराब मैनेजमेंट, भ्रस्टाचार और नेताओं के अनावश्यक हस्तछेप ने उन प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को वो अवसर और वातावरण ही नही प्रदान दिया जहाँ वो भारतीय हॉकी को नई ऊंचाई तक ले जा सके।
राष्ट्रकवि दिनकर ने अपनी कालजयी रचना रश्मिरथी में सत्य ही लिखा हैं कि “सौभाग्य ना सब दिन सोता हैं..” और भारतीय हॉकी की महिला और पुरुष खिलाड़ियों ने अपने अथक परिश्रम और पुरुषार्थ से अपने और अपने देश की हॉकी का सौभाग्य जागृत किया हैं एवं इसमे उनका साथ निभाया हैं बेहद शालीन मुख्यमंत्री श्री नवीन पटनायक जी के कुशल नेतृत्व वाली ओडिशा सरकार ने।
वर्ष 2018 में जब भारतीय हॉकी का कोई प्रायोजक नही था एवं भारतीय हॉकी संघ भीषण आर्थिक संकट से जूझ रहा था तब इस परिस्थिति में ओडिशा सरकार का आगमन किसी देवदूत के समान था।
ओडिशा सरकार ने ना सिर्फ भारतीय हॉकी को प्रायोजित किया अपितु 2018 में कुशल प्रबंधन में बेहद सफल हॉकी विश्व कप भी हुआ। ओडिशा में नवीन पटनायक जी के नेतृत्व में ओडिशा सरकार द्वारा अकेले उतने अत्याधुनिक हॉकी ग्राउंड का निर्माण किया गया हैं जितने सायद पूरे देश में भी नही हैं। 1980 के दशक में भारतीय हॉकी का पतन जहाँ नेताओं के हस्तक्षेप से हुआ तो अब पुनर्जागरण भी एक सशक्त नेतृत्व के हाथों हुआ हैं तो क्यों ना भारतीय हॉकी टीम की सफलता में ओडिशा सरकार की महती भूमिका को स्वीकार कर भारत सरकार के महतव्कांक्षी लक्ष्य ‘2028 तक भारत का ओलिंपिक में शिर्ष 10 मेडल जीतने वाली देशों की सूची में शामिल होने’ की पूर्ति हेतु ओडिशा मॉडल को अपनाया जाए जहाँ प्रत्येक राज्य कम-से-कम एक खेल को प्रायोजित और प्रोत्साहित करें ताकि 2028 तक ओलिंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले खिलाड़ियों की संख्या तीन गुनी हो सके फलस्वरूप मेडल जीतने की संभावना में भी वृद्धि होगी एवं भारत सरकार अपने लक्ष्य को पूरा करके खेल की दुनिया में भारत एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभरे।
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