साल २०२० और  भारतीय संविधान के ७० बरस पुरे, दलित फिर भी अपाहिज ? संविधान में आरक्षण है, दलितों के लिए विशेषाधिकार है फिर भी हालात नहीं बदले क्यों ? क्या यह प्रश्न भीम आर्मी ने कभी कांग्रेस या बसपा से पूछने की हिम्मत की ? इस प्रश्न की जबाबदेही सबसे पहले किस पर है ? आज मैं आपके सामने उस तथ्य को रखने जा रहा हूँ जिसको सदैव इनलोगों ने आरक्षण के नाम पर दबा कर रखा , फलस्वरूप दलित कभी आगे बढ़ ही नहीं पाए , सामाजिक मुख्यधरा से कभी जुड़ ही नही सके !

सिर्फ “चमार द ग्रेट ” लिख देने से या “ऑल इंडिया एससी एसटी परिसंघ” या फिर बसपा पार्टी बना देने से यदि दलितों का जीवन सरल हो जाता तो फिर आप सभी को पता है – ये तीनों संगठन अभी भी मौजूद हैं ,बस इनमे दलित का नाम तो है, पर दलित समाज का अस्तित्व नही ! आइये बारी बारी से इनके बुने हुए जाल को उधेड़ते हैं ताकि एक एक रेंसा साफ़ साफ़ और स्पष्ट रूप से दिखने लगे !

मायावती दलितों का मसीहा – बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो , चार बार उतर प्रदेश की मुख्यमत्री बनी , क्या दलितों के इस मसीहा ने , दलितों का ही वोट लेकर दलितों को उसी हाल में नही छोड़ दिया ? वास्तव में तो होना  चाहिए था ये की बर्ष १९९५ में जब ये मुख्यमंत्री बनी थी तो सबसे पहले दलित समाज का उत्थान करती लेकिन  वकील साहिबा को तो कुर्सी से प्रेम था और दलित समाज कुर्सी तक पहूँचाने का साधन ! अब भला क्योंकर कोई  व्यक्ति चाहेगा की वह अपने कार में ही आग लगा दे जो जहाँ मर्जी वहीँ आराम से महज सही से ड्राइव करने पर पंहुचा देती है ! मायावती स्वंय के भाई -बंधू को असमान पर पहुंचाती रही और दलित वहीँ के वहीँ रह गए ! गरीब, पिछड़ा आदमी सहज और निश्चल होता है , उसके पक्ष में यदि कोई बात कर दे तो वह उसी को अपना मान बैठता है ! मायावती एक वकील होने के नाते इस बात को जानती थी, और भरपूर इस्तेमाल किया ! देखिये, आज नॉएडा में विशाल हाथी पर बैठे कर मुस्कुरा रही हैं ! आलीशान रहन शहन , बड़ी बड़ी कार , आगे पीछे लोग दौड़ रहे हैं ! इस सब को मायावती दलितों की जीत कहती हैं और समाज ख़ुशी से फुले नही समता !

उदित राज – दलितों का मसीहा नंबर 2  :–

मायावती को देखकर भला कौन नही दलित का नेता बनाना चाहेगा ? किसी  ना  किसी  पर  असर  तो होगा ही, जेनयु से पढ़कर उदित राज , आरक्षण के बदौलत १९८८ में आइआरस बनता है ! इनकम टैक्स ऑफिसर होने के  नाते  खूब पैसा बटोरता है , कभी किसी दलित परिवार या अपने ही गाँव के लिए कुछ भी नही करता ! सपनों में दिन -रात मायावती को देख देख कर ( ध्यान रहे दलित को देखकर नही ) राजनीति में किस्मत आजमाना चाहता है ! २००१ , बुने हुए जाल में दलितों को फंसाने के लिए हिन्दू धर्म को छोड़ कर बुद्ध धर्म को अपना लेता है ! चुकी , मायावती के होते हुए और कोई चारा भी नहीं था जिससे दलितों को फांसा  जा  सके ,  इसलिए  धर्म  परिवर्तन करके दलित समाज में सन्देश देना ही था कि ” असली दलित नेता वही है”l

२००३ में दलित ऊथ्थान के नाम पर खुद का पार्टी बनाता है – इंडियन जस्टिस पार्टी ! दलितों के बीच जाता है , गरीब जिसके साथ हो जाए उसका नाम होना स्वभाविक है , आखिर राजनीति में भीड़बल का ही तो महत्व है ! और गरीबों की सबसे बड़ी कमजोरी उसके पास छलविद्या का ना होना है ! गरीब प्रत्यक्ष स्वांग को ही अपना हितैषी मान लेता  है ! सामने बुधिष्ट बने  उदित राज  के स्वांग से दलित समाज का  बचना नामुमकिन था, और इसलिए वे सभी फंसते चले जाते हैं ! उदित राज स्वयं अपना डोक्युमेंट्री बनाता है, स्क्रीनिंग में भाजपा के  नेता, कांग्रेस के नेता सभी आते हैं ! इतना करने के वावजूद भी जब कुछ हासिल नहीं होता  है फिर भाजपा के  पास जाकर टिकट के लिए २०१४ में अनुरोध करता है इस शर्त के साथ की वह अपनी पार्टी का विलय करने को  तैयार है, यदि पार्टी उसे टिकट दे दे  ! जब भाजपा टिकट दे देती है तो दिन रात प्रचार-प्रसार में कहना सुरु कर देता है कि – भाजपा ही गरीबों के लिए सही दल है इसीलिए उसने भाजपा को ज्वाइन किया है ! हालाँकि भाजपा के लिए बात वह सही कहता है लेकिन आप जान गए होंगे की क्यों ? खैर , २०१४ लोकसभा चुनाव में वह जीत  जाता है लेकिन भाजपा  २०१९ में टिकट देने से मना कर देती है क्योंकि बीते पांच बर्षों में उदित राज अपने छेत्र  में कुछ काम नहीं करता जिसके कारण पार्टी की छवि पर दाग लगती है ! भाजपा जैसी पार्टी जो देश के लिए  समर्पित हो उसे व्यक्ति से नही काम से सरोकार है ये हम सभी जानते हैं ! इसके प्रतिउतर में उदित राज पार्टी  छोड़कर कांग्रेस से हाथ मिला लेता है !

अब वर्तमान में ये हाल है की दिन रात भाजपा को बुरा -भला कहता है ! हिन्दू  धर्म  को  गाली  देकर  दलितों  और मुसलमानों को खुश करने पर लगा रहता है ! अब भला  दलित  समाज  में से  कोई  कैसे पूछे  कि जब  इस्लाम इतना ही अच्छा है तो बुधिष्ट बनने की क्या जरुरत थी ? इस्लाम ही अपना लेते ? आखिर बुद्धिज्म  का भी उद्गम तो सनातन से ही है ?

अब आइये अंतिम दलित मसीहा से मिलते हैं !

भीम आर्मी – चंद्रशेखर आजाद रावण , सतिश कुमार और विनय सिंह – बर्ष – २०१५  !

ये तीन तिलंगे  की कहानी कोई उपर्युक्त कहानी से भिन्न नहीं है बस इनकी कहानी में एक एड्ड ऑन है – “खूब जमेगा रंग ,जब मिल बैठेंग – आप ,मैं और बैगपाइपर सोडा ” ! असल में इनको भी सोडा बताकर  दलितों को शराब ही बेचना था और बेच भी रहे हैं ! बस अंदाज में इन्होने थोड़ा सा बदलाव किया ! सतीश  कुमार एक दलित , चंद्रशेखर – दास  और विनय सिंह  – तीनो मित्र ! २०१५ में भीम आर्मी के नाम से उदित राज , और मायावती के जीवन से प्रेरित होकर दलितों के नाम पर तीनों ने एक संस्था सुरु तो  कर दिया , लेकिन ना पास में पैसा और ना ही कोई जान पहचान , आननफानन में कैसे फेमस हो जाएँ इसी उधेरबून में लगे रहते थे !

जिसको  दूंढा गली  गली  वह  घर  के  पिछवाड़े  मिली ! दलित  बस्ती , चमारों  की  बस्ती , अपना गाँव ! लगा दिया बोर्ड ” द ग्रेट चमार ” ! यहाँ मैं लेख पढने वालों को एक सुचना देना चाहता हूँ की मुझे चमारों से  जितना  लगाव और स्नेह है उतना शायद ही किसी से कभी हो सके वह भी सिर्फ एक चमार के चलते जो महान ही नहीं मेरे लिए भगवान तुल्य हैं ! मैं बात कर रहा हूँ महान कवि , गीतकार स्वर्गीय शैलेन्द्र जी की , जिनके बदौलत राजकपूर राजकपूर बने और आज के गीतकार गुलजार गीतकार बने ! इस बात को गुलजार ने भी कईं बार स्वीकार किया है ! जब मैं सोचता हूँ की शैलेन्द्र जैसे महान व्यक्ति ने कभी भी इस देश की बुराई नही की जबकि उनको पूरा देश सुनता था ! उन्होंने कलम के माध्यम से कुरीतियों पर , भ्रष्टाचार पर जरुर प्रहार किया लेकिन एक दिल से लिखा – हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है ! मेरे लिए ऐसे चमार महान ही रहेंगे और मैं खुले दिल से इनके लिए लिखता रहूँगा – द चमार ग्रेट !

खैर , हम अपनी कहानी पर लौटते हैं ! तीनों को “चमार” शब्द मिल गया था , बोर्ड पर लिखबा कर  इन्तजार में  थे कब  बबाल हो ! बबाल हुआ और ये लोग रातों रात फेमस हो गए ! अब ये उसी मायावती के साथ , उदित राज के साथ , कांग्रेस के साथ उठते -बैठते हैं जिनलोगों ने ७० सालों में दलितों को दलित ही रहने दिया ! यदि ये लोग भीम रॉ आंबेडकर के अनुयायी होते तो सबसे पहले कांग्रेस की आँखों में आँखे डाल कर पूछते – बताओ  हमारे  दलित समाज के लिए क्या किया ? ये मायावती से पूछते की – बहनजी ., जबाब दो दलित समाज आज भी ऐसी  हालात में क्योंकर है ? जबकि आप चार चार बार मुख्यमंत्री रह चुकीं हैं ? लेकिन ये नहीं पूछेंगे – क्योंकि इन्हें  खुद ही कांग्रेस ,उदितराज और मायावती के जैसे आलीशान जीवन जीना है ! और इन सभी की मंशाओं पर पानी फेरने के लिए सामने खड़ी है भाजपा ! विरोध तो ये लोग करेंगे ही , आखिर एकतरफ से भाजपा सभी रावणों को  विगत २०१४ से जलाने का ही तो काम कर रही है ! ये लोग चुकी रावण हैं तो इन्हें जलना ही होगा !!

ये सभी आतंकी हैं , इनलोगों की मंशा देश सेवा नही , देश में दलित और गरीब कैसे आजीवन गरीब बना रहे , और ये लोग मिलकर उनके वोट से राज करते रहें , यही है ! ये कभी नहीं चाहेंगे कि पिछड़े समाज सम्पूर्ण विकसित हो जाए  ! यदि ऐसा हो गया तो फिर इनको कौन पूछेगा ! बस दो -चार , दो-चार को आरक्षण का लाभ मिलता रहे , वे इनके गुण गाते रहें और बस्ती बस्ती यूंही दलित जीवन -यापन करे ! सम्पूर्ण विकास का  मतलब इन सभी सत्ता लोभियों की अंत्येष्ठी ठीक वैसे ही जैसे इमरजेंसी काल में सम्पूर्ण क्रांति का मतलब  जय प्रकाश नारायण  ने इंदिरा गाँधी को सत्ता से उतार कर  देश को बताया था ! जिसे परिवर्तन लाना होता है  वह किसी जाति विशेष की बात नही करता  बल्कि  नागरिकों की बात करता है अन्यथा भीम राव  आंबेडकर  सिर्फ “डोम” की बात करते भारतीय संविधान कभी ना लिखते और  हरिजन आन्दोलन में महात्मा गाँधी के  साथ साथ  चलते  ! लेकिन  उन्होंने ऐसा नही किया  क्योंकि वह देशवासियों से प्रेम करते थे , जाति से नही !

ये आतंकी लोग  भीम आर्मी नहीं  भीम  को रोज  सूली  पर लटकाने  वाले  लोग हैं ! मैं  सभी देशवासियों  को इस लेख के माध्यम  से  आगाह करना  चाहता हूँ  !

-दिशव

 

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