हिंदुत्व को समाप्त करने का दुःस्वप्न आज का नही है, मुग़लों का विभत्स इतिहास हो, या जातियों में तोड़कर समाज को विभाजित करने और उसे कानूनी समर्थन देता अंग्रेजों का शासनकाल हो, हिन्दू समाज और धर्म को कुचलने के भरसक प्रयास किया गया, यहां तक कि स्वंत्रता मिलने के पश्चात इसे एक स्तर और आगे ले जाया गया, हमारी शिक्षा व्यवस्था पर अंग्रेजों द्वारा पोषित वर्णसंकर प्रजाति के वंमपंथियों ने कब्जा कर लिया, इतिहास की पुस्तकों को विकृत और झूठे इतिहास से भर दिया गया, और न केवल भारतीय समाज बल्कि विश्व के सामने भारत को सपेरों का देश सिद्ध कर दिया गया, भारत अंधविश्वास, कुरीतियों, निरक्षरता और गरीबी का पर्याय बना दिया गया, नौबत ये आ गई कि सनातन धर्म पर टिप्पणी करने वो लोग भी आने लगे जिन्हें इस धर्म का क, ख, ग, भी नही पता था, हिन्दू समाज को नीचा दिखती फिल्में बनने लगीं, हिन्दू देवी देवताओं को सरेआम गालियाँ दी जाने लगीं, स्वयं को बुद्धिजीवी और निष्पक्ष कहने वाला समाज इस प्राचीनतम सभ्यता को पिछड़ा और मरा हुआ सिद्ध करके दफनाने के प्रयास में लग गया, ऐसा लगता था जैसे इस अंधकार में सब कुछ समाप्त हो जाएगा।

पर नियति को कुछ और रचना था, उसने संघ के रूप में एक बीज धीरे से प्रत्यारोपित कर दिया, नागपुर में कुछ छोटे बच्चों को लेकर, एक युगदृष्टा ने एक खेल आरम्भ किया, नकारात्मक शक्तियां इतने चरम पर थीं कि उस पौधे को अनदेखा कर दिया, आज वो कुछ बच्चों से शुरू हुआ खेल राजनीति की बिसात से होते भारत के संसद तक जा पहुँचा है, वो पौधा एक वटवृक्ष में बदल चुका है, एक आशा की किरण जगी जिसने अंधेरे से घिरे, मरणासन्न पड़े हिन्दू समाज में एक नई जान फूक दी, फिर हिन्दू समाज ने एक लंबी सांस ली और करवट बदल अपने जीवित होने का प्रमाण दिया।

मोदी के रूप में भारत को वो अंतिम मौका मिला जो प्रकृति सबको देती है, हमें इसे गंवाना नही है, इस वटवृक्ष को आधार मानकर एक उपवन बनाना है, जहां हिन्दू निडर रहे, सजग रहे और सुरक्षित रहकर विश्व को पुनः अपने नेतृत्व में आगे ले जाये।

यही एक वो एक मौका है, वो आखिरी उम्मीद।।

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