सुना है, मनुस्मृति को जलाया गया……??
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अच्छा, ये पुस्तक जलाने का काम कौन करते हैं ? इसके जवाब के लिए ऐसे उदाहरण देखने होंगे !
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नालंदा विश्वविद्यालय को ख़िलजी ने जलाया था ! क्यों और किसलिए हम सब जानते हैं ! ठीक इसी तरह से जेएनयू में मनुस्मृति की प्रतियां जलाई गयीं !
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क्या संयोग है,क्या समानता है ,दोनों उदारहणो में ! वैसे ये काम वही करते हैं जिन्हे अपने ज्ञान पर भरोसा नहीं , वर्ना अपने तर्कों से किसी भी किताब को परास्त किया जा सकता है !
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उलटे ,जलाने से हुआ क्या ? क्या पुस्तक का अस्तित्व मिट गया ??
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नहीं ! चलो, अच्छा ही हुआ कि पुस्तक अधिक चर्चा में आ गयी ! क्योंकि यकीन से कह सकता हूँ कि जलाने वालो ने इसे नहीं पढ़ा होगा ! अगर पढ़ा होता तो उस पर बात करते, जलाते नहीं !
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अधिक हैरानी तो इसलिए हो रही है की जिस युग में हर दूसरे दिन बाजार का मॉडल बदल जाता है वो काल ये स्वीकार करने को तैयार नहीं कि ये हजारों साल पहले की व्यवस्था है , जो समय के साथ परिवर्तनशील है ! मगर ये अज्ञानी ये जान कर हैरान होंगे की मनुस्मृति के मूल में कई महत्वपूर्ण बातें ऐसी हैं जो किसी भी उन्नत समाज के लिए आज भी स्वागत योग्य होगी !
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मनुस्मृति के मतानुसार माता के गर्भ से साधारण जन्म है| वास्तविक जन्म तो शिक्षा पूर्ण कर लेने के उपरांत होता है| जन्म से प्रत्येक मनुष्य शूद्र या अशिक्षित है ! ज्ञान और संस्कारों से स्वयं को परिष्कृत कर योग्यता हासिल कर लेने पर ही उसका दूसरा जन्म होता है! मनु के अनुसार मनुष्य का वास्तविक जन्म विद्या प्राप्ति के उपरांत ही होता है |और शिक्षा प्राप्ति में असमर्थ रहने वाला शूद्र ही रह जाता हैं ! इसलिए ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य होने की बात तो छोडो जब तक अच्छी तरह शिक्षित नहीं होगा तब तक मनुष्य भी नहीं माना जाएगा |
असल में यह पूर्णत: गुणवत्ता पर आधारित व्यवस्था है, इसका जन्म या अनुवांशिकता से कोई लेना-देना नहीं है ! लेकिन कालांतर में वर्ण व्यवस्था गड़बड़ा गई और लोग जातियों में बंट गए | अर्थात मनुस्मृति के मूल समय के लोग तो समझदार थे मगर बाद की पीढ़ी हम जैसी मूर्ख रही होगी जिसने समय रहते इसमे आवश्यक बदलाव तो किये मगर सही की जगह गलत करते चले गए !
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इसे कुछ प्रमाण के द्वारा स्थापित किया जा सकता है ! क्या कारण है कि आज भी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और दलितों में कई समान गोत्र मिलते हैं??
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इस से पता चलता है कि सब एक ही पूर्वज, एक ही कुल की संतान हैं।और सटीक उदाहरण देखना हो तो ,विदुर दासी पुत्र थे। तथापि वे ब्राह्मण हुए और उन्होंने हस्तिनापुर का मंत्री पद सुशोभित किया। श्लोकों से पता चलता है कि कुछ क्षत्रिय जातियां बाद में शूद्र बन गईं !
वर्ण परिवर्तन की साक्षी देने वाले यह श्लोक मनुस्मृति में बहुत बाद के काल के हैं। सत्यकाम वेश्या के पुत्र थे, परन्तु वे ब्राह्मणत्व को प्राप्त हुए! विश्वामित्र के पुत्रों ने शूद्र वर्ण अपनाया। विश्वामित्र स्वयं क्षत्रिय थे परन्तु बाद में उन्होंने ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया। ऐसे ही कई उदहारण मिल जाएंगे!
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सच कहूँ तो वे मूर्खों, ख़िलजी की तरह पुस्तक जलाने की जगह शंकराचार्य बन कर मनुस्मृति पर शास्त्रार्थ करते और उसमे जरूरी बदलाव करते तो इतिहास में तुम्हारा नाम स्वर्णक्षरों से अंकित होता !
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अब तुम खुद को क्या कहलाना चाहोगे , वो शब्द खुद सुनिश्चित कर लो !
🖋️ @shubhamhindu01
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