1303 ई में, जब  दिल्ली के सुल्तान अल्लाउद्दीन खिलजी ने मेवाड़ पर आक्रमण किया, तब मेवाड़ के रावल रतन सिंह जी का साथ  उनके एक रिश्तेदार लक्षा उर्फ़ लक्ष्मण सिंह जी ने भी दिया था, इस युद्ध में लक्षा जी और उनके सात पुत्रों ने केसरिया बाना पहन साका कर लिया था. लक्षा जी नाथद्वारा के निकट सिसोदा नाम के गाँव के थे. उनके आठ पुत्र थे , और ये सब सिसोदिया कहलाते थे.
           युद्ध के बाद लक्षा जी के  परिवार में इनके  दूसरे पुत्र अजय सिंह  और इनके ज्येष्ठ पुत्र अरि का नन्हा पुत्र  हमीर सिंह ही बच गए थे. हमीर बचपन से ही अपनी वीरता से अपने चाचा अजय सिंह जी को अचंभित करते रहते थे.

           अलाउद्दीन ने मेवाड़ का जिम्मा जालौर के राजा मालदेव को दे दिया था. और अजय सिंह मेवाड़ को वापस अपने कब्जे में करने के प्रयास में लगे हुए थे. ऐसे में मालदेव ने युद्ध की आशंका से बचने के लिए अपनी पुत्री का विवाह हमीर से करने का प्रस्ताव रखा, जिसे अजय सिंह जी ने स्वीकार कर लिया.

            1326 ई में अंततः हमीर ने मेवाड़ को मालदेव के कब्जे से छुड़ा लिया, और मेवाड़ के पहले महाराणा बन गए, और ऐसे शुरू हुआ मेवाड़ का प्रसिद्ध सिसोदिया वंश. ये हमीर और रणस्थम्भपुरा (रंथभोर) के हमीर दोनों अलग थे.

( महाराणा हमीर सिंह जी )
महाराणा हमीर ने मेवाड़ पर 1364 तक शासन किया.

महाराणा हमीर के बाद इनके पुत्र महाराना क्षेत्र सिंह जी ने 1364 से 1382 तक मेवाड़ पर शासन किया.

1382 में राणा लक्खा मेवाड़ के महाराणा बने.

(रावत –चूण्डा जी )

एक दिन जब महाराणा लक्खा अपने दरबार में थे, तो संदेशवाहक ने सन्देश दिया कि मंडोर के राव रणमल राठौर विवाह का प्रस्ताव लाये हैं. जैसे ही राव रणमल ने दरबार में प्रवेश किया तो राना लक्खा ने उनसे पूछा – “क्या आप इस बूढ़े के लिये  विवाह का प्रस्ताव लाये हैं?”

ये सुन कर दरबार ठहाकों से गूँज उठा.

पर राव रणमल ने इन सब को अनसुना कर राना को बताया कि वो अपनी बहन हंसा बाई के साथ रावत चूण्डा ( महाराना के ज्येष्ठ पुत्र ) के विवाह का प्रस्ताव ले कर आये थे.
रावत चूण्डा उस वक़्त चित्तोरगढ़ से बाहर थे.
वापस आने पर जब उन्हें प्रस्ताव और राना के परिहास का पता चला, गुस्से में उन्होंने ने रिश्ते की बात अस्वीकार कर दी.
दोनों पक्षों की इज्ज़त का ख़याल रख ये तय हुआ कि हंसा बाई का विवाह राना लक्खा के साथ कर दिया जाए, पर राव रणमल ने ये शर्त रख दी की अगर हंसा बाई के पुत्र हुआ तो वही मेवाड़ का महाराणा होगा.
ये बात जब रावत चूण्डा को ज्ञात हुई तो उन्होंने मेवाड़ के कुलदेवता एकलिंगजी के समक्ष शपथ ली कि वो कभी मेवाड़ के महाराणा  नहीं बनेंगे, और सदैव महाराणा के प्रति वफादार रहेंगे, उनके वंशज भी ऐसा ही करेंगे.

1421 ई में महाराणा लक्खा की मृत्यु के बाद लक्खा और हंसा बाई के पुत्र मोकल सिंह मेवाड़ के महाराणा बने, और रावत चूण्डा उनके मुख्य सलाहकार.
रावत चूण्डा के वंशज चूण्डावत के नाम से जाने गए. और मेवाड़ की परंपरा रही की जब भी महाराणा की ताजपोशी हो तो महाराणा के सर पे ताज चूण्डावत  सरदार ही रखते थे. इस से चूण्डावत सरदार की सहमति भी प्रकट होती थी. और दरबार में महाराणा के बाद पहला स्थान चूण्डावत सरदार का ही रहा.

1572 ई में जब महाराणा उदय सिंह II की मृत्यु के पश्चात बालक जगमाल सिंह को महाराणा के सिंहासन पर बैठाने का प्रयास किया गया तो चूण्डावत सरदार ने जगमाल को सशरीर सिंहासन से उठा कर उसकी जगह उसके बड़े भाई प्रताप सिंह को महाराणा बनवा दिया.

https://youtu.be/dL1NwxVr3J8 ( For Video )

Ashwini Singh
Ranchi
21 Sept 2021.

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