वो चाहते ही नहीं हैं कि मुद्दा सुलझे’, सरकार कई बार किसानों से बात करने की कोशिश कर चुकी है
जानिए, किसान आंदोलन से जुड़ी हर बात, शुरुआत से अब तक
जानिए, किसान आंदोलन से जुड़ी हर बात, शुरुआत से अब तक
भ्रामक तथ्यों और बेबुनियाद आरोपों के आधार पर शुरू हुआ ‘किसान आंदोलन’ अब आधे से अधिक दिल्ली को घेर रहा है। केंद्र सरकार द्वारा बातचीत की पेशकश करने के बाद भी किसानों का प्रतिनिधित्व करने का दावा कर रहे ‘किसान संघ’ का इरादा बातचीत करने का कम, और अराजकता फैलाने का ज्यादा है।
‘किसान आंदोलन’ में भागीदारी कर रहे किसान संगठनों, विशेषकर ‘भारतीय किसान यूनियन’ ने आरोप लगाया है कि सरकार कोई बातचीत ही नहीं करना चाहती। परंतु सच्चाई तो यह है कि सरकार ने अपनी तरफ से सभी प्रयास किये हैं, जिसमें से सबसे वर्तमान प्रयास 1 दिसंबर, यानि कल ही हुआ था, जब कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और वाणिज्य एवं रेल मंत्री पीयूष गोयल ने इस विषय पर ‘किसान आंदोलन’ के कुछ भागीदार, कृषि विशेषज्ञ और केंद्र सरकार के साथ बातचीत के लिए एक स्पष्ट मार्ग प्रशस्त करने का निर्णय लिया। परंतु इस बातचीत का कोई विशेष हल नहीं निकला।
यहाँ पर ये बताना बेहद जरूरी है कि प्रारंभ से ही किसान के अधिकारों के नाम पर लड़ रहे ये आंदोलनकारी सरकार से हद दर्जे की बदतमीजी कर रहे हैं। कभी पंजाब में रेल लाइन पर रोक लगा देंगे, तो कभी खालिस्तानी उग्रवादियों को अपने विरोध प्रदर्शन में मंच देने का प्रयास करेंगे। सरकार फिर भी इनके साथ सम्मानपूर्वक वार्तालाप कर रही है। ऐसे में अब यदि आंदोलनकारी वास्तव में किसानों के अधिकारों के लिए फिक्र करते हैं, तो उन्हें तत्काल प्रभाव से सरकार के साथ बातचीत प्रारंभ करनी चाहिए।
अक्टूबर से ही केंद्र सरकार ने विरोधी पक्ष के साथ बातचीत का प्रस्ताव दिया था, पर चूंकि मीटिंग सरकारी अफसरों के साथ होनी थी, इसलिए किसान संघों ने मना कर दिया था। उसके बाद जब केंद्र सरकार ने उच्चाधिकारियों से बातचीत कराने की पेशकश की, तो उसे भी मना कर दिया गया। इसके अलावा जब दिल्ली तक आंदोलनकारी पहुँचने लगे, तो स्वयं गृह मंत्री अमित शाह सामने आए, और उन्होंने हर मुद्दे पर बातचीत करने की बात कही, और तय तारीख से पहले बातचीत करने की भी पेशकश थी, अगर सभी आंदोलनकारी बुराड़ी के संत निरंकारी मैदान में स्थानांतरित हो जाएँ। परंतु अराजकतावादियों को भला बातचीत क्यों रास आती?
अब ये भी सामने आया है कि जो आंदोलनकारी आज वर्तमान कृषि अधिनियम का विरोध कर रहे हैं, पिछले वर्ष उसी अधिनियम के अंतर्गत आने वाली नीतियों के लिए उन्होंने केंद्र सरकार पर दबाव भी बनाया था, और इसीलिए ये कहना गलत नहीं होगा कि यह आंदोलन किसानों के अधिकारों के लिए कम, और अराजकता फैलाकर केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए अधिक किया जा रहा है।
DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.