जगन्नाथपुरी, ओडिशा की विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा अर्थात भगवान श्रीजगन्नाथ के अर्थात जगदोद्धारक भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों हेतु महापर्व ! मात्र भारत से ही नहीं; अपितु विश्व भर से आने वाले श्रद्धालुओं की यह यात्रा श्रद्धा व भक्ति का अद्वितीय दर्शन है । इस यात्रा के कुछ वैशिष्ट्य देखते हैं ।

1) रथयात्रा के अग्रस्थान पर बलराम, मध्य में सुभद्रा देवी व पीछे जगन्नाथ जी, यह रथों का क्रम होता है ।
2) श्रीबलराम के रथ को तालध्वज कहते हैं । इस रथ का वर्ण लाल व हरा होता है । देवी सुभद्रा के रथ को दर्पदलन अथवा पद्मरथ कहते हैं । यह श्याम (काला), नीला अथवा लाल होता है । भगवान श्रीजगन्नाथ के रथ को नन्दी घोष अथवा गरुडध्वज कहते हैं । यह लाल व पीला होता है ।

3) श्रीबलराम का रथ 45 फुट ऊंचा, सुभद्रा देवी का 44.6 फुट ऊंचा व भगवान श्रीजगन्नाथ का 45.6
फुट ऊंचा होता है ।

4) ये तीनों रथ नीम की पवित्र व परिपक्व लकडी से निर्मित होते हैं । इसके लिए नीम का निरोगी व शुभ वृक्ष चुना जाता है । इस हेतु एक विशेष समिति स्थापित की जाती है । इसकी सिद्धता में (तैयारी में) कोई भी लौह कील अथवा अन्य किसी धातु का उपयोग नहीं किया जाता । यह इसका एक वैशिष्ट्य है ।

5) रथ हेतु लकडी का चुनाव विशिष्ट मुहूर्त पर किया जाता है । इसके लिए वसंत पंचमी का दिन निर्धारित किया गया है । उस दिन से इसकी लकडी का चुनाव किया जाता है । रथ की निर्मिति प्रत्यक्ष रूप में अक्षय तृतीया से प्रारम्भ होती है ।

6) यह तीनों रथ तैयार होने पर छर पहनरा नामक अनुष्ठान किया जाता है । जिसके अन्तर्गत पुरी के नरेश पालखी से आकर इन तीनों रथों का विधिवत पूजन करते हैं ।  इस समय सोने की झाडू से रथ का मण्डप व मार्ग स्वच्छ करने की प्रथा है ।

7) इसके उपरान्त रथ का प्रस्थान होता है । आषाढ शुक्ल पक्ष द्वितीया को रथयात्रा आरम्भ होती है । इस दिन ढोल, नगाडे, तूती व शंख की ध्वनि के साथ भक्तगण रथ खींचते हैं । ऐसी भाविकों की श्रद्धा है कि जिन्हें रथ खींचने का सौभाग्य प्राप्त होता है, वे पुण्यवान होते हैं । पौराणिक मान्यता अनुसार रथ खींचने वाले को मोक्ष प्राप्ति होती है ।

पुरी के श्रीजगन्नाथ मन्दिर के अद्भुत  बुद्धि अगम्य वैशिष्ट्य !

1) श्रीजगन्नाथ मन्दिर विश्व प्रसिद्ध है । लगभग 800 वर्ष प्राचीन इस मन्दिर की वास्तुरचना इतनी भव्य है कि उसके विषय में शोध करने के लिए विश्वभर से वास्तुशास्त्री इस मन्दिर को देखने आते हैं ।

2) यह तीर्थक्षेत्र (धाम) भारत के 4 पवित्र तीर्थक्षेत्रों में से एक है ।

3) श्रीजगन्नाथ के मन्दिर की ऊंचाई 214 फुट है । मन्दिर का क्षेत्रफल 4 लाख वर्गफुट है ।

4) पुरी में किसी भी स्थान से मन्दिर के कलश पर स्थित सुदर्शन चक्र देखने से वह अपने समक्ष ही है,
ऐसा लगता है ।

5) मन्दिर पर स्थित ध्वज सदा वायु के विरुद्ध दिशा में लहराता है ।

6) सामान्यतः प्रतिदिन वायु, समुद्र से भूमि की ओर आती है व सायं काल इसके विपरीत बहती है;
परन्तु पुरी में इसके विपरीत वायु का प्रवाह होता है ।

7) मुख्य शिखर की छाया दिन के किसी भी समय अदृश्य ही होती है ।

8) यहां पक्षी अथवा वायुयान, मन्दिर के ऊपर से उडते कभी नहीं दिखेंगे ।

9) भोजन हेतु वर्ष भर के लिए पर्याप्त अन्न सामग्री मन्दिर में होती है । विशेष यह कि महाप्रसाद अनुपयोगी नहीं होता है । लाखों श्रद्धालु यह प्रसाद भक्तिभाव से ग्रहण करते हैं ।

10) इस मन्दिर का रसोई घर विश्व के किसी भी मन्दिर के रसोई घर से बडा है । यहां महाप्रसाद बनाते समय मिट्टी के पात्र एक के ऊपर एक रखे जाते हैं । सर्व अन्न लकडी द्वारा प्रज्ज्वलित अग्नि पर ही पकाया जाता है ।

11) इस विशाल रसोई घर में भगवान श्रीजगन्नाथ का प्रिय महाप्रसाद बनाया जाता है । इस हेतु 500 रसोइये व 300 सहायक एक साथ सेवा करते हैं ।

एशिया खण्ड की सबसे विशाल पाकशालायुक्त मन्दिर की रसोई । लाखों श्रद्धालु इस पाकशाला का प्रसाद भक्तिभाव से ग्रहण करते हैं ।

श्रीजगन्नाथ को खिचडी का नैवेद्य अर्पण करने का कारण : कर्माबाई नामक जगन्नाथ जी की एक भक्त थीं । वह निर्धन होने के कारण खिचडी बनाती थी । भगवान जगन्नाथ प्रतिदिन प्रातः कर्माबाई के घर खिचडी खाने जाते थे । जिस दिन कर्माबाई ने देहत्याग किया, उस दिन जगन्नाथ के नेत्रों में अश्रु आए । यह दृश्य सभी पुजारियों ने देखा । भगवान पुजारियों से बोले, “कर्माबाई प्रतिदिन मुझे खिचडी देती थी । अब मुझे खिचडी कौन देगा ?” तब सभी पुजारी बोले, “भगवान, आज से प्रतिदिन हम आपको खिचडी का ही नैवेद्य देंगे ।” तब से श्रीजगन्नाथ को खिचडी का नैवेद्य पहले अर्पण किया जाने लगा ।

चेतन राजहंस,
राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था

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