किसी राजा ने एक चोर को चोरी के लिए सजा सुनाई परंतु सजा की चॉइस चोर पर छोड़ी। उसे तीन प्रकार की सजा में से कोई एक चुनना था । पहला आप्शन था 5 किलो कच्चा प्याज खाना दूसरा ऑप्शन था 50 कोड़े खाना तीसरा ऑप्शन था ₹5000 राजकोष में जमा करवाना।
चोर ने सोचा कि सबसे आसान होगा 5 किलो प्याज खाना। 1 से 2 किलो प्याज खाते खाते चोर के नाक , कान और आंख से पानी निकलने लगा और परेशान होकर उसने कहा कि वह प्याज नहीं खा सकता इसीलिए वह 50 कोड़े खाने के लिए तैयार है। पैसा देने के लिए वह फिर भी तैयार नहीं था।
खैर 10-15 कोड़े खाने के बाद उसे लगा की 50 वें कोड़े तक तो उसका दम ही निकल जाएगा इसीलिए उसने राजा से इल्तिज़ा की कि 5000 रुपये लेकर उसे बख्श दिया जाए। सही समय पर सही निर्णय ना लेने की वजह से चोर को प्याज भी खाना पड़ा, कोड़े भी सहने पड़े और आखिरकार 5000 रुपए भी देने पड़े। अगर वक्त पर ₹5000 दे दिया होता तो न कोड़े खाने पड़ते न प्याज खाना पड़ता।


यह बात तब याद आई जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की। पूरा देश और उनके समर्थक कृषि कानूनों के समर्थन में अन्धाधुंध सबूतों के बाण चला रहे थे अचानक नरेंद्र दामोदर भाई मोदी की घोषणा के बाद स्तब्ध हैं। चलाए गये तीर वापस नीचे उन्हीं के कवच को चीर कर सीने में चुभ गये।

अगर बदलना ही था तो 14 महीनों की यह चिल्ल पों क्यों?
हाशिए पर जा चुकी वामपंथी सोच के बुझते दिए में नई ऊर्जा भरने की कोशिश क्यों?
रोते हुए टिकैत के लगभग डूबती हुई सांसों को ऑक्सीजन का सिलेंडर उपलब्ध क्यों कराया?
फायदा हमेशा पूंजीपति का होगा नुकसान हमेशा किसान का होगा, चाहे कृषि कानून पार्ट -1 आए या कृषि कानून पार्ट – 2। कितनी ठंडी रातें लोगों ने दिल्ली के बॉर्डर पर काटीं या अन्य राज्यों के सीमाओं पर गुजारी।

शाहीन बाग टू के लिए स्क्रिप्ट तो लिखी हुई थी पर उसे मंचित होने का मंच देने की क्या जरूरत थी?
बुझते हुए वामपंथी दिए में कृषि कानूनों का विरोध होने वाला तेल भरना क्या जरूरी था जो किया गया।

मैं मानता हूं कि इनमें सारे के सारे किसान नहीं थे और यह भी नहीं है कि कोई किसान नहीं था। सब के सब पेड-वर्कर थे । सबने अपने दिए गए समय का किसी न किसी पूंजीपति दलाल या बिचौलिए के द्वारा उचित मुआवजा भी पाया होगा क्योंकि भारत में तो मुफ्त का लोग मूत्र विसर्जन भी नहीं करते। केजरीवाल सरकार ने इन आंदोलनजीवियों के लिए चलंत शौचालय की व्यवस्था की तो कुछ बिरयानीबाजों ने उनके लिए भोजन की व्यवस्था की। कुछ लोग खालिस्तान का झंडा लेकर भी बैठ गए। कितने लोग ठंड से मरे, कितने लोग आपसी दुश्मनी से मरे। कुछ तो कारों के नीचे कुचले गए ।

और आखिर में हालत यह है कि प्रधानमंत्री ने तीनों कानून वापस लेने की घोषणा कर दी।
मैं सोचता हूं उन मोदी समर्थकों की क्या हालत हो रही होगी जो पहले धरना दे रहे किसानों को आतंकवादी कहते थे खालिस्तानी कहते थे, आंदोलनजीवी कहते थे, आज उस अनजान चेहरों की भीड़ ने संसद के 545 सदस्यों के द्वारा ध्वनि मत से पारित प्रस्ताव को कूड़ा बना दिया।

यह कुछ ऐसा ही है जैसे मनमोहन सिंह के प्रस्ताव को राहुल गांधी ने फाड़ कर फेंक दिया। यहां मनमोहन के बदले कोई और है और राहुल के बदले अनजान चेहरों का जमावड़ा।

मोदी का ये रोलबैक पंजाब और हरियाणा के किसानों को छोड़कर बाकी उन सारे किसानों के मुंह पर एक करारा थप्पड़ है क्योंकि उन्होंने मोदी की बात पर भरोसा किया और शांत रह कर सत्ता का साथ दिया।

कोई अचरज नहीं कि आने वाले दिनों में ट्रिपल तलाक, 370 और 35a, राम जन्मभूमि पर लिया गया न्यायिक फैसला , आदि आदि मोदी के शासनकाल में लिए गए न्यायिक या प्रशासनिक निर्णय के लिए भी ऐसी ही भीड़ जमा हो जाए और भारत में निठल्ले की कमी नहीं है । रोज का 500 रुपये मिलें तो ये निठल्ले कहीं भी धरना दे सकते हैं।

आने वाले दिनों में ऐसे कई रोलबैक देखने को मिल सकते हैं।

मोदी का यह रोल बैक बुने हुए स्वेटर के एक धागे के कटने जैसा है । जैसे ही एक धारा कटा पूरे स्वेटर के उधड़ जाने की पूरी संभावना है।

नियति का निर्णय नहीं पता। अगर ऐसे निर्णय होते रहे तो इसे प्रशासनिक रोलबैक के बदले हिंदुत्व का पराजय माना जाएगा और हिंदुत्व पराजित होगा। और ऐसा हुआ तो वामपंथ इस्लाम और ईसाइयत में से कोई एक बचेगा। हिन्दू तो कन्वर्ट हो जाएंगे या कुर्बान।

निर्णय आपका क्योंकि देश है आपका मोदी साहेब।

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