एक दौर था जबकि सुलेख पर बहुत ध्यान दिया जाता था. अब एक दौर ऐसा आया है जबकि लिखने पर ही बहुत ध्यान नहीं दिया जाता है. जो पीढ़ी अपने अनुभवों को लेकर आई है वह भी कंप्यूटर की चपेट में आ चुकी है, नई पीढ़ी तो कम्प्यूटर पर ही पैदा हुई है. ऐसे में लिखने-लिखाने, लेखन आदि की बात उसके लिए एकदम से बेवकूफी वाली बातें हैं. इस बेवकूफी भरी बातों के बीच यदि खुद को गंवार साबित करना है तो किसी भी स्टेशनरी की दुकान पर जाकर फाउंटेन पेन माँग लीजिये. दुकान वाला ऐसे देखता है जैसे मंगल पर भेजे गए अंतरिक्ष यान पर बैठ कर कोई प्राणी धरती पर आ गया है. इसमें भी और अजूबा बनने वाली स्थिति वह होती है जबकि आप उस दुकान वाले से फाउंटेन पेन में भरने के लिए स्याही माँगिए. मंगल ग्रह से आने के बजाय वह आपको न जाने कौन से अजीब से ग्रह से आया हुआ घोषित कर दे. आज के समय में बहुतेरे लोगों के लिए, खासतौर से वे लोग जिनके लिए लिखना बहुत बड़ी मशक्कत की विषय-वस्तु है उनके लिए फाउंटेन पेन, स्याही आदि चीजें अजूबा ही हैं.

इस अजूबी दुनिया में अभी भी बहुत से प्राणी ऐसे हैं जो खुद को इस पुरातन समाज से जोड़े रखने में खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं. ऐसे लोगों के लिए लिखना आज भी एक धर्म है, एक पावन कृत्य है, उनकी पूजा है. उनके लिए कम्प्यूटर का इस्तेमाल आधुनिक जीवन-शैली के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना है मगर लिखना उनके लिए जीवन है. इस जीवन को एक-एक साँस उनके शब्दों से मिलती है. इस जीवन की धड़कन आज भी की-बोर्ड से नहीं बल्कि फाउंटेन पेन से चलती है. ऐसे लोगों के लेखन शौक की देह में रक्त का प्रवाह उसी स्याही का होता है जो कागज़ पर शब्द बनकर उतरती है. आज की उस पीढ़ी के लिए जो की-बोर्ड की दुनिया में, मोबाइल की टच स्क्रीन के संसार में खो चुकी है, ऐसे लोग भले ही अजूब हों मगर ऐसे लोगों ने ही अपनी ज़िन्दगी को असलियत में जिया है, आज भी उसी का सुख उठा रहे हैं.

पठन-पाठन करने वालों के लिए, लिखने के शौक़ीन लोगों के लिए कागज, पेन, स्याही जैसा सुख कहीं और नहीं है. उनके सामने, उनकी मेज पर भले ही उत्तम दर्जे के कम्प्यूटर, मोबाइल क्यों न मौजूद हों मगर उनके लेखन का चरम तभी पूर्ण होता है जबकि हाथ में कलम हो और हथेलियों के नीचे कागज़. स्याही की नमी में उभरते शब्दों में कोई रचना नहीं बल्कि ऐसे लोगों का जीवन उभरता है, उनके अनुभव उभरते हैं, उनकी स्मृतियाँ बिखरती हैं. इस सुख का अनुभव आज की पीढ़ी शायद ही कभी कर सके.

एक निवेदन पेन, कागज, स्याही के शौकीनों से कि वे अपने इस शौक को, अपनी इस जीवन-शैली को अपनी आने वाली पीढ़ी को हस्तांतरित करने का प्रयास करें. इस सुख को उनकी धड़कनों में, उनकी साँसों में, उनके रक्त-प्रवाह में समाहित करने की चेष्टा करें.

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.