फाल्गुन पूर्णिमा के दिन आने वाला होली त्यौहार देशभर में बड़े उत्साह से मनाया जाता है। दिनांक अनुसार इस वर्ष यह 25 मार्च को मनाया जाने वाला है। दुष्ट प्रवृत्ति एवं अमंंगल विचार का नाश करके, सत प्रवृत्ति का मार्ग दिखाने वाला उत्सव है होली । वृक्ष रुपी समिधा अग्नि को अर्पण करके उसके द्वारा वातावरण की शुद्धि करना यह उदात्त भाव होली का त्यौहार मनाने के पीछे है । होली के त्यौहार का महत्व, इस त्यौहार को मनाने की पद्धति आदि विषय में जानकारी इस लेख के माध्यम से देने का प्रयास किया गया है।
होली त्यौहार की तिथी : देशकाल के अनुसार फागुन माह की पूर्णिमा से पंचमी तक 5,6 दिनों में कहीं दो दिन तो कहीं पांचो दिन यह उत्सव मनाया जाता है ।
होली त्यौहार के लिए समानार्थी शब्द : उत्तर भारत में होली, दोल यात्रा, गोवा एवं महाराष्ट्र राज्यों में शिमला, होली, हुताशनी महोत्सव, होलिका दहन एवं दक्षिण में काम दहन ऐसे नाम हैं। बंगाल में दौला यात्रा नाम से होली का त्यौहार मनाया जाता है । इसे वसंत उत्सव अथवा वसंत गमनोत्सव अर्थात वसंत ऋतु आगमन के लिए मनाया जाने वाला उत्सव नाम भी दे सकते हैं।
होली त्यौहार का इतिहास : प्राचीन काल में ढुंढा अथवा ढौंढा नामक राक्षसी गांव में घुसकर छोटे बच्चों को पीड़ा देती थी। वह रोग निर्माण करती थी। बीमारी फैलाती थी। उसे गांव से बाहर भगाने के लिए लोगों ने बहुत प्रयास किया, परंतु वह जाती ही नहीं थी। अंत में लोगों ने गंदी-गंदी गालियां, श्राप, देकर एवं सर्वत्र आग जलाकर उसे डराया एवं भगा दिया । इस तरह वह गांव से बाहर भाग गई ऐसा भविष्योत्तर पुराण में कहा गया है।
एक बार भगवान शंकर तपस्या करने में लीन थे । जब वे समाधि अवस्था में थे तब मदन ने (कामदेव ने) उनके अंतःकरण में प्रवेश किया । तब “मुझे कौन चंचल बना रहा है” ऐसा कहते हुए शंकर ने आंखें खोलीं एवं मदन को (कामदेव को) देखते ही भस्म कर दिया। दक्षिण में लोग कामदेव दहन के उपलक्ष में यह उत्सव मनाते हैं। इस दिन मदन की कामदेव की प्रतिकृति बनाकर उसका दहन किया जाता है। इस मदन को जीतने की क्षमता होली में है। इसलिए होली का उत्सव है।
फागुन पूर्णिमा के दिन पृथ्वी पर हुए प्रथम महायज्ञ की स्मृति के रूप में प्रत्येक वर्ष फागुन माह की पूर्णिमा को भारत में ‘होली’ इस नाम से यज्ञ होने लगे।
होली का महत्व –
विकारों की होली जलाकर जीवन में आनंद की बरसात करना यह सिखाने वाला त्यौहार : होली विकारों की होली जलाने वाला फागुन माह का त्यौहार है। विकारों के जाले निकालकर, दोष जलाकर नए उत्साह से सत्वगुण की ओर जाने के लिए हम तैयार हैं, मानो इसका वह प्रतीक ही है। शेष सूक्ष्म अहंकार भी होली की अग्नि में नष्ट हो जाता है और वह व्यक्ति शुद्ध सात्विक होता है। उसके बाद रंग पंचमी आनंद की बरसात करते हुए आती है। नाचते गाते एकत्रित होकर जीवन का आनंद उठाना, “श्री कृष्ण-राधा” ने रंग पंचमी के माध्यम से बतलाया। “आनंद की बरसात करो” ऐसा परम पूज्य परशराम पांडे महाराज ने कहा है। होली अपने दोष ,बुरी आदतें, नष्ट करने की सुसंधी है। होली सदगुण ग्रहण करने की अंगीकृत करने की संधि है।
होली का त्यौहार मनाने की पद्धति : देशभर में सर्वत्र मनाए जाने वाले होली त्यौहार में छोटे से लेकर बड़े तक सभी उत्साह से सहभागी होते हैं । होली की रचना करना एवं उसे सजाने के पद्धति भी स्थान के अनुरूप बदलती रहती है ऐसा देखने में आता है। साधारणतः मंदिर के सामने अथवा सुविधाजनक स्थान पर पूर्णिमा की शाम को होली जलाई जाती है। अधिकांशत: ग्राम देवता के सामने होली खड़ी की जाती है। श्री होली का पूजन का स्थान गोबर से लीपकर एवं रंगोली डालकर सुशोभित करते हैं । अरंडी, सुपारी का पेड अथवा गन्ने खडे करते हैं । उसके चारों ओर कंडे एवं सूखी लकडियां रचते हैं । घर का कर्ता अर्थात प्रधान पुरुष शुचिर्भूत होकर एवं देश कल का उच्चारण करके, “सकुटुम्बस्य मम ढूंण्ढा राक्षसी प्रित्यर्थ तत्पीडापरिहारार्थं होलिका पूजनमहं करिष्ये”, ऐसा संकल्प करके तत्पश्चात पूजन करके नैवेद्य भोग अर्पित करे। होलिकायै नमः ऐसा कहकर होली जलानी चाहिए। होली प्रज्वलित होने पर होली की प्रदक्षिणा करनी चाहिए एवं मुंह पर उलटा हाथ रखकर (बोंब) अर्थात जोर से आवाज करनी चाहिए। होली पूरी जल जाने पर उस पर दूध एवं घी डालकर उसे शांत करना चाहिए। श्री होलिका देवता को पूरनपोली का नैवेद्य तथा नारियल अर्पित करना चाहिए। एकत्रित हुए लोगों को उसका प्रसाद देना चाहिए। नारियल के समान फल बांटने चाहिए । पूरी रात नृत्य गायन करते हुए व्यतीत करनी चाहिए ।
होली की पूजा ऐसी करनी चाहिए – प्रदीपानन्तरं च होलिकायै नमः इति मंत्रेण पूजाद्रव्य-प्रक्षेकात्मकः होमः कार्यः। – स्मृतिकौस्तुभ
अर्थ : अग्नि प्रज्वलित करने के बाद होलिकायै नमः इस मंत्र द्वारा पूजा सामग्री चढ़कर होम करना चाहिए।
निशागमे तु पूज्येयं होलिका सर्वतोमुखैः। – पृथ्वीचंद्रोदय
अर्थ : रात्रि होने पर सब ने होलिका का (सूखी लकडियां एवं कंडे रख कर जलाई हुई अग्नि का) पूजन करना चाहिए।
होलिका का पूजन करते समय बोला जाने वाला मंत्र
“अस्माभिर्भयसंन्त्रस्तैः कृत्वा त्वं होलिके यतः।
अतस्त्वां पूजयिष्यामो भूते भूतिप्रदा भव।। – स्मृतिकौस्तुभ
अर्थ – हे होलिके (सूखी हुई लकडियां एवं कंडे रच कर जलाई हुई अग्नि) हम भय ग्रस्त हो गए थे इसलिए हमने तुम्हारी रचना की, और अब हम तुम्हारी पूजा करते हैं। हे होली की विभूति ! तुम हमें वैभव प्रदान करने वाली बनो।
होली के दूसरे दिन की जाने वाली धार्मिक कृति –
प्रवृत्ते मधुमासे तु प्रतिपत्सु विभूतये।
कृत्वा चावश्यकार्याणि सन्तप्यर् पितृदेवताः।।
वन्दयेत् होलिकाभूतिं सर्व दुष्टोपशान्तये। – स्मृतिकौस्तुभ
अर्थ – वसंत ऋतु की प्रथम प्रतिपदा को समृद्धि प्राप्त हो इसलिए सुबह प्रातः विधि होने के बाद पितरों का तर्पण करना चाहिए । तत्पश्चात सभी दुष्ट शक्तियों की शांति के लिए होलिका की विभूति (राख) को वंदन करना चाहिए। (कुछ पंचांगों के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा के दूसरे दिन आने वाली प्रतिपदा से वसंत ऋतु का प्रारंभ होता है) होली के दिन की होलिका यह होलिका राक्षसी नहीं है !
भक्त प्रहलाद को लेकर आग में बैठने वाली होलिका राक्षसी थी । होली के दिन बोले जाने वाले मंत्रों में जो होलिका का उल्लेख आता है वह फाल्गुन पूर्णिमा को उद्देशित करके कहा गया है । उस राक्षसी को नहीं। फाल्गुन पूर्णिमा के दिन लकडियां रच कर होम करते हैं इसलिए उस तिथि को होलिका कहते हैं ऐसे उपरोक्त श्लोक में आया ही है।
आयुर्वेद के अनुसार होली के लाभ : ठंड के दिनों में शरीर में एकत्रित कफ होली के समय सूर्य की उष्णता से पतला होता है एवं उसके कारण विकार, रोग उत्पन्न होते हैं । होली के औषधीय धुएं से कफ कम होने में सहायता होती है। सूर्य की उष्णता से पित्त कुछ प्रमाण में बढ़ता है। गाने हंसने से मन प्रसन्न होता है एवं पित्त शांत होता है। होली के समय बोले जाने वाले रक्षोघ्नमंत्रों से बुरी शक्तियों का कष्ट भी कम होता है । ऐसा वैद्य मेघराज माधव पराड़कर ने कहा है।
होली के अवसर पर होने वाले दुष्प्रकार रोकना यह हमारा धर्म कर्तव्य है ! – आजकल होली के त्यौहार पर अपप्रकार होते हैं जैसे मार्ग में रोककर जबरदस्ती चंदा वसूलना, अन्यों के पेड़ पौधे तोडना, सामान की चोरी करना, शराब पीकर शोर मचाना इत्यादि । इसी तरह रंग पंचमी के निमित्त एक दूसरे को गंदे पानी के गुब्बारे फेंक कर मारना, घातक रंग शरीर पर लगाना इत्यादि भी किए जाते हैं । इससे धर्म की हानि होती है। यह धर्म हानि रोकना हमारा धर्म कर्तव्य ही है। इसके लिए समाज को भी जागृत करना चाहिए। जागृत करने पर भी यदि गलत कार्य होते हुए दिखते हैं तो पुलिस में शिकायत करनी चाहिए । सनातन संस्था विभिन्न समविचारी संगठन एवं धर्म प्रेमी के साथ इस संदर्भ में अनेक वर्षों से जनजागृति करने के लिए प्रयासरत है । आप भी इसमें सहभागी हो सकते हैं। वर्ष भर होने वाले वृक्षों की कटाई से जंगल उजाड़ हो जाते हैं, उसकी तरफ ध्यान न देने वाले तथा कथित पर्यावरणवादी एवं धर्म विरोधी संगठन वर्ष में एक बार आने वाली होली के समय कचरे की होली जलाओ इस तरह का प्रचार करते हैं। यह धर्म विरोधी लोग परंपरा नष्ट करने के लिए ही प्रयत्न करते हैं, यही इससे सिद्ध होता है। इसलिए हिंदुओं की धार्मिक परंपराओं में कोई भी हस्तक्षेप ना करें। हिंदुओं, धर्मविरोधियों की बातों में मत आइए। पर्यावरण के लिए लाभदायक, बुरे प्रकारों से विरहित, मात्र धर्मशास्त्र सुसंगत ऐसी होली मनाइए।
संदर्भ – सनातन संस्था का ग्रंथ त्यौहार, धार्मिक उत्सव, एवं व्रत
श्री चेतन राजहंस, राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था
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