16 अगस्त: जब कोलकाता की सड़कों पर पड़े थे 10 हजार हिन्दू शव
आज से 74 साल पहले 16 अगस्त की तारीख अगर आप याद करते हैं तो दर्द उभर आता है और याद नहीं करते हैं तो ये ज्यादा दर्दनाक है, क्योंकि ये तारीख बताती है कि कैसे एक कुर्सी चाह में देश का विभाजन स्वीकार किया गया। ये तारीख बताती है कि कैसे गांधी जी का अहिंसा आंदोलन नेहरू प्रेम में बोगस साबित हुआ। ये तारीख कहती है कि कैसे देश का प्रधानमंत्री बनने के लिए नेहरू ने विभाजन को स्वीकृत किया और सबसे बढ़कर ये तारीख कहती है कि कैसे इस्लामी मानसिकता वक्त आने पर अपना असली रंग दिखाती है।
जी हां हम बात कर रहे हैं 16 अगस्त, 1946 की… जब मुस्लिम लीग ने देश में ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ मनाया था। पाकिस्तान की मांग को लेकर मोहम्मद अली जिन्नाह ने गांधी जी और कांग्रेस को चेतावनी दी थी और फिर उसके बाद पूरे देश में दंगे शुरू हो गए थे। मुस्लिम बहुल इलाकों में कांग्रेस और गांधी पर दबाव बनाने के लिए रैलियां शुरू की गई और फिर शाम होते-होते यह रैलियां हिंसक भीड़ में तब्दील हो गई। उस समय के बंगाल के मुख्यमंत्री सुहरावर्दी और शेख मुजीबुर्रहमान ने मोहम्मद अली जिन्नाह के आवाहन पर कोलकाता में विशाल मुस्लिम भीड़ लेकर रैली की उस रैली में मुसलमानों को हिंदुओं का कत्लेआम करने के लिए उकसाया गया। अगले दो दिनों तक कोलकाता की सड़कों पर इस्लामी आतंक अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच गया। तकरीबन 10 हजार हिंदुओं का क़त्ल किय्या गया और डेढ़ लाख के करीब हिंदू आबादी के घरबार जला दिए गए। जब 2 दिनों तक यह बर्बर कत्लेआम चला तब ना अंग्रेजी प्रशासन ने इस पर कोई कार्यवाही की और ना ही कांग्रेस नेतृत्व ने इस पर कुछ बोला। गांधी नेहरू सरीखे नेता अपने मुंह में दही जमा कर चुपचाप हिंदुओं का कत्लेआम देखते रहे। मगर जैसे ही 2 दिनों के बाद हिंदुओं ने बंगाल और कोलकाता में मुसलमानों पर पलटवार करना शुरू करा तो उसके बाद गांधी ने नोआखली में अनशन शुरू कर दिया और हिंदुओं की वीरता गांधी की आमरण अनशन की मूर्खता के आगे भावुक हो गई।
इतिहास आज तक सवाल पूछ रहा है कि जब मुस्लिम लीग ने डायरेक्ट एक्शन डे मनाया तब उस समय गांधी नेहरू और कांग्रेस के अन्य नेता क्यों नहीं कुछ बोले? और जब 2 दिन बाद हिंदुओं ने मुसलमानों को उन्हीं की भाषा में स्वाद चखाया उसके बाद इन लोगों ने आमरण अनशन क्यों किया? क्या नेहरू प्रेम में गांधी की दृष्टि इतनी कमजोर हो गई थी कि जिन्ना से बातचीत को जरूरी नहीं समझा गया? क्या कांग्रेस के तमाम नेताओं को 16 अगस्त के ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ प्लान की जरा भी भनक नहीं थी? जाहिर है इस धरा पर जब जब हिन्दू लहू बहा है तब तब कांग्रेस ने मौन की कायर चादर ओढ़ी है और जब जब सनातन शक्ति ने इन अब्राहमिक मजहबों को चुनौती दी है तब तब सेक्यूलर ढपली बजाकर उसे चुप कराया गया है।
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