“असि गछि पाकिस्तान, बटव रोअस त बटनेव सान” (हमें पाकिस्तान चाहिए. पंडितों के बगैर, पर उनकी औरतों के साथ.)
“जागो जागो, सुबह हुई, रूस ने बाजी हारी है, हिंद पर लर्जन तारे हैं, अब कश्मीर की बारी है”
“हम क्या चाहते, आजादी.
आजादी का मतलब क्या, ला इलाहा इल्लाह.
अगर कश्मीर में रहना होगा, अल्लाहु अकबर कहना होगा”“यहां क्या चलेगा निजाम-ए-मुस्तफ़ा”
‘ए जालिमों ए काफिरों कश्मीर हमारा छोड़ दो”
क्या लगा आपको..???
ये नारे पढ़कर शायद आप समझें कि पाकिस्तान में भारत के विरुद्ध एक युद्ध की तैयारी हो रही है।
या कश्मीर के विरुद्ध साज़िशें रची जा रही है।
लेकिन नही आप के सारे अनुमान गलत है।
ये सब घटित हो रहा था 1990 के दशक में कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों के विरुद्ध और ये सब करने वाले भी कौन थे, उन्हीं के बचपन के साथी, वर्षों के निकट पड़ोसी।
कहने को तो ये भारत देश एक सेक्युलर धर्मनिरपेक्ष देश था, लेकिन 19 जनवरी 1990 की रात्रि को जो घटित हुआ उसने इस देश में अपने ही नागरिकों को घर छोड़ने के लिए विवश कर दिया, धर्मनिरपेक्षता जैसे मूल्य नष्ट हो गए, कश्मीरी पंडितों के लिए ज़िंदगी भर का नासूर बन गया।
ये सब इसलिए हुआ क्योंकि उस समय देश में एक कथित धर्मनिरपेक्ष दल का शासन था जिसे सिर्फ और सिर्फ मतलब था एक विशेष धर्म से, जिसे मतलब था सिर्फ अपने वोटबैंक से, जिसे मतलब था सिर्फ अपनी तुष्टिकरण राजनीति से।
आज 33 वर्षों के पश्चात भी वो घटना कश्मीरी पंडितों के जेहन में जस की तस बसी हुई है और जब भी वो इस बारे में बात करते है उनके होंठ कांपने लगते है, आप सिर्फ कल्पना कीजिए कि किस हद तक उनके साथ बर्बरता की गई वो भी उनके खुद के देश में ही।
आप कश्मीरी पंडितों के दर्द का अंदाज़ा इसी बात से लगा सकते है कि आज भी कोई कश्मीरी पंडित चाहे वो जहां भी बसा हुआ है, वह 19 जनवरी को ‘होलोकॉस्ट/एक्सोडस डे'(प्रलय/पलायन का दिन) के रूप में याद करता है।
19 जनवरी 1990 की रात्रि को जब लोग घरों में बैठे थे, तभी उन्हें अचानक से मस्जिदों के लाउडस्पीकर से आवाज़ें सुनाई दी,”रालिव, तस्लीव या गालिव (या तो इस्लाम में शामिल हो जाओ, या तो घाटी छोड़ दो, या फिर मरो)”
कश्मीरी पंडितों के घरों के बाहर एक नोटिस चस्पा दिया गया कि,”या तो मुस्लिम बन जाओ या फिर कश्मीर छोड़कर भाग जाओ…या फिर मरने के लिए तैयार हो जाओ”
लगभग 5 लाख से अधिक कश्मीरी पंडितों को अपने ही घरों को छोड़कर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा और पता नही कितनी ही सैकड़ों हत्याएं की गई, हज़ारों बहिन बेटियों के साथ बलात्कार किया गया, मासूम बच्चों का कत्लेआम किया गया।
1947 के बाद ये स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा पलायन एवं नरसंहार हुआ था।
इन सब कुकृत्यों एवं नरसंहार के बाद भी केंद्र की सत्ता कुछ नही कर पाई क्योंकि उसे चिंता थी मात्र एक विशेष धर्म के लोगों की, उन्हें मतलब ही नही था कश्मीरी पंडितों से और उनकी भावनाओं से।
लेकिन कहते है ना कि भगवान के घर देर है अंधेर नही।
जब 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनी और श्री नरेन्द्र मोदीजी जब देश के प्रधानमंत्री बने तब कश्मीरी पंडितों को वापिस अपने घर लौटने की आस जगी।
कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास हेतु मोदी सरकार ने निम्न कदम उठाए है :-
1. 2015 में 2000 करोड़ रुपए का राहत पैकेज।
2. 05 अगस्त 2019 – अनुच्छेद 370 एवं 35ए की समाप्ति।
3. अक्टूबर 2019 – कुल 5500 विस्थापित परिवारों में प्रत्येक परिवार को 5.5 लाख रुपए की मदद।
4. अप्रैल 2020 – नई डोमिसाइल नीति।
5. नई शिक्षा नीति।
6. 28400 करोड़ की नई औद्योगिक नीति।
7. सवर्ण आरक्षण लागू करने का निर्णय।
8. 80000 हज़ार करोड़ का विशेष राहत पैकेज।
9. कश्मीर वापसी पैकेज।
ये तो बस शुरुआत ही है, जो कार्य करने की पिछली सरकारें सोच भी नही सकती थी वो सारे असम्भव कार्य मोदी सरकार ने सम्भव कर दिखाए है।
इसलिए आप विश्वास रखिए कश्मीरी पंडितों को भी अब जल्द से जल्द उनकी जन्मभूमि कश्मीर में विस्थापित कर एवं उनके अधिकारों को वापिस दिलाने का कार्य मोदी सरकार में ही पूर्ण होगा।
आज कश्मीर पुनः मुक्त होने लगा है, आज कश्मीर पुनः चैन की सांस ले रहा है, आज कश्मीर पुनः भारत का स्वर्ग बनने जा रहा है।
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