सामाजिक जीवन में आम जन के प्रतिनिधि बनने की सबसे बुनियादी और अनिवार्य शर्त होती है कथन और कृत्य। ये आज के राजनैतिक स्तर के निम्न स्तर पर जाने का ही प्रमाण है कि क्षुद्र राजनीति से प्रेरित होकर ,देश नायक , नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के दिन को अभी कुंठा निकालने का अवसर बना रहे हैं।
पश्चिम बंगाल की मुखिया ममता बनर्जी ने कल जिस तरह का सार्वजनिक प्रदर्शन किया वो उनके द्वारा पहले से ही ऐसे बेतुके ,हास्यापद , खीज और हताशाभरे तमाशे , जय श्री राम बोलने वाले लोगों को जेल में डाल देने की धमकी , कभी का का छी छी जैसे वाहियात नारे का प्रलाप , सर्व दलीय बैठकों में अमर्यादित आचरण और व्यव्हार जैसे अनगिनत कृत्यों की अगली कड़ी ही माना जाना चाहिए।
अपने जन प्रतिनिधियों को देखने सुनने वाले साधारण लोगों ने यदि , जय श्री राम , जय हिन्द , वन्दे मातरम् का जयघोष कर दिया तो वो मुख्यमंत्री को राजद्रोह सरीखा लगा , उन्हें और उनकी सरकार को अपमानित किए जाने का प्रयास करता दिखा। और इसलिए और इसी बात को मुद्दा बनाते हुए उन्होंने अपनी वो कुंठा , वो गुस्सा , वो द्वेष सबके सामने जाहिर कर दिया जो वे करना चाहती थीं और चलती बनीं।
वाह , राम के देश में , राम की प्रजा जय श्री राम नहीं कह सकती क्यूँ ममता की मूर्ति दीदी नाराज़ हो जाएंगी हाँ पाकिस्तान ज़िंदाबाद कह कर शहर ,गाँव रेल बस दफ्तर फूँक देने वालों को कभी कोई द्रोह नहीं लगता उन्हें सब माफ़ है। बंदिशें हैं तो सिर्फ दुर्गा पूजा पर , माँ भगवती की प्रतिमा , पूजा और विसर्जन तक पर बाकी बांग्लादेश से पूरा रोहिंग्या देश उठा कर बसा देने वालों से कोई शिकायत नहीं है कभी प्रदेश सरकार को।
चुनाव से पहले पूरे भारत से प्रधानमंत्री पद के 22 दावेदारों को एक बुफे खाने की दावत देकर भाजपा और राष्ट्रवादियों के खिलाफ अपने भानुमति के कुनबे से सबको डराने की कोशिश करने वाली ममता शक्ति और सत्त्ता नियंत्रण के केन्द्रीयकरण में इतनी ज्यादा आगे चली गईं की , चुनाव आते आते एक एक करके सभी साथी सहयोगी भी अकेला छोड़ कर चल दिए।
केंद्र सरकार की परियोजनाओं को सिर्फ भाजपा और मोदी विरोध में ग्रस्त होकर प्रशानिक अनुमति न देने वाली ममता बनर्जी आज केंद्र सरकार द्वारा नेताजी के जन्म दिवस को पराक्रम दिवस मनाए जाने की घोषणा को चुनाव प्रेरित लोक लुभावन निर्णय कह कर आरोप लगाती हैं मगर खुद आज तक इस दिशा में अपनी सरकार द्वारा किसी भी बड़ी योजना या निर्णय के बारे में बताने के लिए उसके खुद के पास कुछ भी नहीं है।
अपने कार्यकाल के अंत में अपनी सारी अफलताओं के लिए , अपने सारे अधूरे कार्यों और जनता से किए हुए वादों को करके उन पर रत्ती भर भी काम न हो सकने जैसी सारी बातों के लिए केंद्र की भाजपा सरकार को और प्रधानमंत्री मोदी को कोसने का सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए ममता बनर्जी ने जनता द्वारा लगाए गए जिस “जय श्री राम ” के जयकारे के उद्घोष को एक बहाना बनाया है तो उन्हें ये स्मरण रहना चाहिए कि , बोलने , कहने और सुनने के लिए जय श्री राम से बेहतर इस दुनिया में और कुछ भी नहीं है। “जय श्री राम ” बोलना सुनना तो आशीर्वाद है दीदी : भगवान से कुढ़ना ,ये कैसी हठ है ??
आप अपने राजनैतिक पराभव के कारणों का जब आकलन विश्लेषण करना तो ये भी जरूर याद रखना कि समाज आपको राम द्रोही के रूप में भी जरूर याद रखेगा। और हाँ , इस देश में जिसका नाम भारत है हिन्दुस्तान है -जय श्री राम तो इस देश की आत्मा है सुनने देखने समझने पूजने की आदत डालनी ही होगी। जय श्री राम
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