संत और गुरु
सकाम और निष्काम की प्राप्ति के लिए संत थोड़ा मार्गदर्शन देते हैं। कुछ संत लोगों की व्यावहारिक समस्याओं को हल करने के साथ-साथ अनिष्ट शक्ति के कारण होने वाले कष्टों को दूर करते हैं। ऐसे संतों का यही कार्य होता है। जब कोई संत साधक को शिष्य के रूप में स्वीकार करते हैं, तो वे उसके लिए गुरु बन जाते है। निष्काम (भगवान) की प्राप्ति के लिए ही गुरु पूर्ण मार्गदर्शन देते हैं । एक बार जब कोई संत गुरु के रूप में कार्य करना शुरू कर देते हैं, तब सकाम की अड़चनें छुड़ाने के लिए मार्गदर्शन करना चाहिए ऐसा लगता है। धीरे-धीरे यह भावना कम हो जाती है और अंत में समाप्त हो जाती है; लेकिन जब वे किसी को अपना शिष्य मान लेते हैं तो उसका सभी प्रकार से बहुत ध्यान रखते हैं। हर गुरु एक संत है; लेकिन हर संत गुरु नहीं होते । फिर भी, संत के अधिकांश लक्षण गुरु को लागू होते हैं।
चेतन राजहंस,राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था
DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.