गुरु का महत्व
इस जीवन में छोटी-छोटी बातों के लिए भी हर कोई शिक्षक, डॉक्टर, वकील आदि का मार्गदर्शन लेता है। तब उस गुरु के महत्व की कल्पना करना असंभव है जो हमें जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त करते हैं । निम्नलिखित सूत्र इस बिंदु को स्पष्ट करते हैं।
मनोवैज्ञानिक दृष्टि से
1 . अपने अस्तित्व का भान एवं सामर्थ्य की झलक न दिखानेवाले देवताओं की अपेक्षा, शिष्य की उन्नति हेतु इनका प्रदर्शन करनेवाले गुरु की ओर शिष्य का ध्यान अधिक केंद्रित हो सकता है ।
2. गुरु अंतर्ज्ञान से सब कुछ समझते हैं, यह अनुभव अधिकतर शिष्य को बुरे काम करने से रोकते हैं ।
3. अपने ही ‘गुरु’ पद के कारण शिष्य को हीन महसूस न होने देना, गुरु उसकी हीनता को दूर कर उसे ‘गुरु’ की उपाधि देते हैं ।
आध्यात्मिक दृष्टि से
1. गुरु के पास जाना : गुरु शिष्य को अपनी याद दिलाता है; तभी शिष्य गुरु के पास जा सकता है।
2. समस्या निवारण : ‘कुछ भक्त स्वभाव के अनुसार ईश्वर के पास इस कामना से जाते हैं कि सांसारिक दुखों को ईश्वर दूर कर दें। उनका मानना है कि भगवान हमें मुसीबत से बचाएंगे जैसे हमारे माता-पिता हमारी देखभाल करते हैं। ऐसे भक्त मन ही मन भगवान से प्रार्थना करते हैं, प्रार्थना का परिणामस्वरुप संकट दूर होता है या संकट अपरिहार्य हो तो भक्त के मन में इसे सहन करने के लिए शांति या शक्ति उत्पन्न होती है । ऐसा इसलिए नहीं हुआ कि भगवान की ऐसी इच्छा थी बल्कि ऐसा भक्त की आस्था और उसके समर्पण के कारण गुरु की कृपा का प्रवाह बहता रहता है उसके कारण होता है ।
3. प्रारब्ध भोगने की क्षमता बढ़ना : मध्यम साधना से मंद प्रारब्ध भोगने की क्षमता, तीव्र साधना से मध्यम प्रारब्ध भोगने की क्षमता, जबकि तीव्र प्रारब्ध भोगने की क्षमता गुरु की कृपा से ही प्राप्त होती है ।
उपरोक्त सूत्रों से हम समझ सकते हैं कि हमारे जीवन में गुरु क्यों आवश्यक हैं । संक्षेप में गुरु के बिना गति नहीं । इसलिए गुरु हमारे जीवन में आये, गुरु की कृपा हमें प्राप्त हो, इस हेतु हमें शास्त्र में बताई साधना करनी चाहिए । 24 जुलाई को गुरुपूर्णिमा है । वातावरण में गुरुतत्त्व अभी 1000 गुना जागृत हो जाता है । इसलिए इस गुरुतत्त्व का लाभ अधिकाधिक होने हेतु हमें क्षमता के अनुसार सत कार्य हेतु तन-मन-धन का त्याग करना चाहिए ।
संदर्भ : सनातन संस्था का ग्रंथ ‘गुरुकृपायोग’
चेतन राजहंस,राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था
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