अमेरिका के 42वे राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की पत्नी, हेलिरी क्लिंटन का एक बहुत ही प्रसिद्द वाक्य है! उन्होंने पाकिस्तान की आलोचना करते हुए कहा था कि “अगर आप बैकयार्ड (घर के पीछे) ये सोच कर साँप पालते हैं कि वह सिर्फ आपके पड़ोसी को काटेंगे तो ऐसा नही होता!”
पाकिस्तान अपने जन्म के तुरंत बाद से ही छद्म युद्ध को अपनी युद्धनीति का हिस्सा बना लिया था और इसके लिए उसने बाबर की जिहाद वाली युद्धनीति को अपना आदर्श बनाया। चूंकि आजादी के बाद से ही पाकिस्तान अमेरिका के पाले में सामिल था इसलिए भारत गुटनिरपेक्षता के वावजूद USSR के करीब था। 80 के दशक जब USSR अफगानिस्तान में घुसा तो उसे पीछे धकेलने के लिए अफगानिस्तान में तालिबान जैसे संगठन को अमेरिका और पाकिस्तान ने न सिर्फ खड़ा किया बल्कि उन्हें हर तरह से मजबूत भी किया। जबकि भारत को सबक सिखाने के लिए इसी बीच पाकिस्तान में भी अलकायदा जैसे कई आतंकवादी संगठन को अनुकूल माहौल मिला और वह अपनी जड़े मजबूत करते गए।
1991 में जब USSR टूटा और उसके कुछ ही वर्षों बाद 1996 तक अफगान तालिबान इतना मजबूत हो गया कि उसने तत्कालीन आअफगान राष्ट्रपति ‘नजीबुल्लाह’ को गाड़ी में पीछे बांध कर पूरे शहर में घसीटा और बाद में शहर के बीचोबीच सरेआम फांसी पर लटकाकर अफगानिस्तान में कब्जा कर लिया। इस घटना से प्रेरित होकर पाकिस्तान में एक और संगठन का उदय हुआ जिसका नाम था तहरीक-ए-तालिबान, जो अफगानिस्तान की तर्ज पर पाकिस्तान में शरीयत की सत्ता नाफ़िज करने के लिए पाकिस्तान की ही सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।
11 सितंबर 2001 को अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला हुआ जिसमें लगभग 3000 लोग मारे गए और 6000 से ज्यादा लोग घायल हुए। इस हमले की जिम्मेदारी अलकायदा ने ली जिसका मुखिया ओसामा बिन लादेन था। इस हमले के बाद पूर्व राष्ट्रपति की पत्नी हिलेरी क्लिंटन को शायद साँप पालने के साइड इफ़ेक्ट का एहसास हुआ होगा और तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने आतंकवाद के खतरे को क़रीब से समझा और दुनिया भर में आतंकवाद के खिलाफ जंग छेड़ दिया। उसका परिणाम ये हुआ कि इराक और सीरिया जैसे पश्चिमी एशिया के कई छोटे बड़े देश तबाह हो गए लेकिन अमेरिका का सबसे बड़ा दुश्मन ओसामा अब भी बचा हुआ था जिसे 2011 में ओबामा की अगुवाई में अमेरिका ने पाकिस्तान में घुस कर मार गिराया।
अमेरिका USSR को तोड़ने के लिए जिन साँपो को उसने दूध पिला पिला कर बड़ा कर चुका था अब वही उसे आंख दिखाने लगे थे और वह उन्ही साँपो के फन कुचलने के लिए अफगानिस्तान में 20 सालों तक अपनी फौज की न सिर्फ कुर्बानियां देता रहा बल्कि उसे अरबो डॉलर भी खर्च करने पड़े। इस बीच पाकिस्तान जहाँ एक ओर भारत से लड़ने के लिए अब भी जैश-ए-मुहम्मद जैसे तमाम आतंकवाद संगठनों को दूध पिलाता रहा वही दूसरी ओर पाकिस्तान में शरीयत की सत्ता का ख्वाब देख रहे अपनी ही सरकार से लड़ने वाले तहरीक-ए’-तालिबान के खिलाफ लंबे समय से युद्ध करता रहा।
2021 में अमेरिका ने जैसे ही अपनी सेना को अफगानिस्तान से हटाने का फ़ैसला किया, पाकिस्तान और चीन दोनो देश खुश हो गये। पाकिस्तान ने तो इसे भारत की हार करार दिया। यद्यपि भारत अफगानिस्तान में किये गए अपने अरबों डॉलर के निवेश को बचाने के लिए तालिबान से बात कर रहा है और तालिबान भी भारत से अच्छे संबंधों की इच्छा रखता है मगर पाकिस्तान को उम्मीद है कि तालिबान पाकिस्तान के प्रभाव में भारत को अफगानिस्तान की भूमि पर भविष्य में किसी तरह की भूमिका में नही रहने देगा।
वास्तव में देखा जाए तो पाकिस्तान फिरहाल एक ऐसे सौतन की तरह व्यवहार कर रहा है जो अपने ही पति की मौत की कामना सिर्फ इसलिए करती है ताकि उसकी सौतन विधवा हो जाये। अफगानिस्तान में अपनी ही सरकार के ख़िलाफ़ लड़ रहे तालिबान को चीन और पाकिस्तान से जिस तरह मदद मिल रही है उससे संभव है कि जल्दी ही तालिबान काबुल पर फतह हासिल कर, पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लेंगे और अगर ऐसा हो जाता है तो संभव है भारत को कश्मीर में इसका बुरा असर देखने को मिले लेकिन इससे कहीं ज्यादा बुरा असर पाकिस्तान और चीन पर पड़ने वाला है। जहाँ एक ओर पाकिस्तान में शरीयत सत्ता का ख़्वाब देखने वाले तहरीक-ए-तालिबान को मजबूती मिलेगी, और वह ज्यादा ताकत के साथ पाकिस्तान और हमला करेगा वहीं उइगर मुस्लिम जो चीन सरकार के ख़िलाफ़ हैं, उन्हें भी सम्भव है भविष्य में तालिबानियों का संरक्षण हासिल हो जाये और वह चीन के खिलाफ हथियारबंद हो जाये।
– राजेश आनंद
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