कहते हैं कि -जो भी इंसान बोता है उसे वही काटना भी पड़ता है -यही चरितार्थ हो रहा है आज लालू यादव और उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के साथ। कभी जेपी आंदोलन से अपना चेहरा कर राजनीति चमकाने वाले लालू ने सत्ता के लिये सोशल इंजीनियरिंग के नाम पर “मुस्लिम यादव ” गठजोड़ करके उसे बाकी के समाज से अलग कर जिस फूट की राजनीति पर अपना और अपनी पार्टी का महल खड़ा किया था अब वो टूट कर भरभराने के कगार पर पहुँच गई है।
देर सवेर तो ये ठीक उसी तरह से होना तय माना जा रहा था जिस तरह से , कांग्रेस राहुल प्रेम में और सपा अखिलेश की राजनैतिक अपरिपक्वता में धीरे धीरे अपने ढलान की ओर हैं । असल में राजनेताओं के नौनिहालों को सब कुछ आता होगा बेशक , बस राजनीति नहीं आती और जनसेवा का भाव है नहीं । फिर जब लालू यादव की सल्तनत संभालने की बारी हो तो तेज और तेजस्वी में खींचतान हैरान करने वाला नहीं है।
सूत्रों की मानें तो ,लालू के ज्यादा निकट और उनके राजनैतिक उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव की अपने अग्रज तेज प्रताप यादव से , राजनैतिक विचारों में उतनी समानता नहीं है । अलबत्ता अब चुनाव के बाद तो तल्खी और अधिक बढ़ गई है । तेज प्रताप जहां अपने नए दल के साथ तरह तरह के कारनामे (उनके सारे क्रिया कलाप आखिरकार कारनामे ही साबित होते हैं )
करके मीडिया में सुर्खियां बटोरने में लगे रहते हैं तो वहीँ छोटे युवराज तेजस्वी ने अपनी पावर का इस्तेमाल करते हुए , पार्टी के स्टार प्रचारक से लेकर पोस्टर तक में बड़े भाई तेज प्रताप को आउट ऑफ़ सिलेबस कर दिया। तेजस्वी फिलहाल पिताजी की देखरेख में व्यस्त दिखाई दे रहे हैं।
पिता लालू यादव जो अभी थोड़े दिनों पहले वही रटा रटाया राग गा रहे थे कि मैडम सोनिया की चरण वन्दना करते हुए सारे विपक्षी दलों को वहां लोट जाना चाहिए ताकि भाजपा को , मोदी को शाह को योगी को रोका जा सके। लेकिन किस्मत देखिये कि उनके अपने ही लालटेन में फड़फड़ाहट बहुत तेज़ है।
DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.