“गिरती” जीडीपी या सिर्फ प्रोपगैंडा ?
क्या GDP का गिरना वाक़ई अचरज भरा है ? या सिर्फ़ मौक़ा देखकर प्रॉपगैंडा चलाया जा रहा है ?
क्या GDP का गिरना वाक़ई अचरज भरा है ? या सिर्फ़ मौक़ा देखकर प्रॉपगैंडा चलाया जा रहा है ?
जैसे ही खबर आयी कि भारतीय जीडीपी का नेगेटिव ग्रोथ हुआ है , उम्मीद के मुताबिक लिबरल-कांग्रेसी-वामपंथी गुट और डिज़ाइनर पत्रकार अपना अपना एजेंडा लेकर आ गए। प्रधानमंत्री-वित्तमंत्री सब निशाने पर आ गए , डिमॉनीटाइजेशन – GST – सारे निर्णय गलत बता दिए गए। जैसा पहले कहा, इनसे यही उम्मीद था , इसमें नया कुछ है नहीं।
ज़रा जीडीपी समझते हैं – ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट – साधारण भाषा में कहें तो किसी देश में जो प्रोडक्ट या सर्विसेज का उत्पादन होता है , उसे GDP से नापा जाता है। इसमें बहुत से सेक्टर जैसे कृषि , उद्योग , होटेल , यातायात , कन्स्ट्रक्शन आदि आते हैं । इन सबके आँकड़ों को जोड़कर GDP के आँकड़े दिए जाते हैं । ग्रोथ रेट होता है की प्रतिशत में पिछली बार से कितना बड़ा । अब जरा GDP के आंकड़ों पर नज़र डालते हैं (सोर्स ):
ऊपर के सारिणी में देखेंगे तो , खेती को छोड़कर बाकी सारे सेक्टर में भयंकर गिरावट आयी है। कंस्ट्रक्शन ५०% से ज़्यादा नीचे गया है , होटल व ट्रांसपोर्ट ( जो ट्रेवल एंड एंटरटेनमेंट सेगमेंट में आता है ) वहां पर गिरावट ४७% की है। मैन्युफैक्चरिंग में करीबन ४०% का इम्पैक्ट है और माइनिंग में २३% का।
इसको समझना मुश्किल भी नहीं है। कोरोना के चलते लोग घरों में बंद हैं , कारखाने या तो नहीं चल रहे हैं या कम कैपेसिटी पर चल रहे हैं। कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री के लिए भी SOP आ तो चुकी है पर अभी भी काफी वर्कर वापस काम पर नहीं आये हैं। तो इन सब के चलते क्या ये नेगेटिव आंकड़े एक्सपेक्टेड नहीं थे ? या उम्मीद थी की इस सबके बावजूद सब अच्छा रहेगा ?
जो अच्छा है वो ये है की कृषि क्षेत्र ऊपर जा रहा है।
कोरोना आपदा में तुरंत जिन दो चीज़ों की ज़रुरत थी : भोजन और चिकित्सा सुविधाएँ : उनपर काम हुआ है। सब तक भोजन पहुँचाना बहुत मुश्किल है पर अधिकतर लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की गयी है। टेस्टिंग और हॉस्पिटल की सुविधांए भी बढ़ाई गयी हैं। इन सब में हम पहले से ही बहुत पीछे थे , पर इस आपदा में हमने बेहतर होने की कोशिश की है। एक बार जब ये आपदा ख़त्म होगी , तो ये चर्चा ज़रूर होगी की भारत ने कैसे इस आपदा का प्रबंधन किया और ये प्रबंधन दुनिया के कई बड़े देशों से अच्छा रहा है । बानगी ये है की शुरुआत में हम केवल ३०० टेस्ट दिन में कर पा रहे थे अब ये संख्या लाखों में है । नीचे के ग्राफ में टेस्टिंग की ग्रोथ दिखाई गयी है ( सोर्स )
और टेस्टिंग के लिए किट भी भारत खुद बना रहा है अब जो शुरुआत में बाहर से आ रही थी , साथ ही PPE किट , मास्क , फेस शील्ड के प्रोड्कशन में भारत ने लम्बी छलांग मारी है। वेंटीलेटर की संख्या भी कई गुना बढ़ रही है।
कुल मिलाकर , भारत को एक निर्णय लेना था की इकॉनमी बचाएँ या देश को कोरोना से बचाना है , सरकार ने इकॉनमी को थोड़ा पीछे रखा , इग्नोर नहीं किया। समानांतर में US की GDP के नंबर्स देखें तो ( US में नंबर वार्षिक आते हैं , इसलिए तिमाही के आंकड़े बदलते रहते हैं ) पाएंगे की ये लगभग ३०% से नीचे गयी है जो न केवल प्रतिशत में बल्कि कीमत में भी कहीं ज्यादा है (सोर्स) :
जबकि अमेरिका में भारत की तरह का लाक्डाउन नहीं था । अमेरिका के ये आंकड़े अब ठीक होने शुरू हो जायेंगे। कोरोना से लड़ाई जारी है पर धीरे धीरे यहाँ पर ( भारत की तरह ) ही त्योहारों का समय आ रहा है। केवल थैंक्सगिविंग के तीन दिनों में ये आंकड़े बदल जायेंगे अगर लोग शॉपिंग के लिए निकले। इसका एक बड़ा कारण ये भी है कि अमेरिका में ( और अब भारत में भी ) “इम्पल्सिव शॉपिंग ” का बहुत चलन है। इस तरह की खरीददारी में अक्सर ग्राहक को लुभाया जाता है कोई भी प्रोडक्ट खरीदने के लिए। इसमें कई कारक होते हैं जैसे प्रोड्कट का विज्ञापन , ग्राहक के हाथ में पैसे ना होने पर भी उसके लिए अन्य तरीके बनाना ( जैसे EMI ) | विज्ञापन में तो तकनीकी इस स्तर पर जा रही है की खास आपके लिए विज्ञापन बनाये या दिखाए जाते हैं। इसका दूसरा पक्ष ये भी है की आप वो भी खरीद लेते हैं जो आपको नहीं खरीदना है या बाद में खरीदना है। भारतीय ग्राहकों का एक बड़ा वर्ग अभी भी जीवन की ज़रूरतों पर ही खरीददारी करता है और इसमें कुछ गलत नहीं है क्यूंकि जो भी मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट हैं वो प्रकृति के दोहन से बनते हैं जिसमे एक संयम चाहिए ही। सर्विस , ट्रेवल और एंटरटेनमेंट ये इंडस्ट्री भी भारत में धीरे धीरे बढ़ रही हैं। सबके अपने अच्छे और बुरे पहलू हैं।
इसलिए केवल GDP ग्रोथ पर किसी भी सरकार को मापना गलत है। और भी फैक्टर देखे जाने चाहिए जैसे महंगाई की दर , जो वर्तमान भारत सरकार काफी हद तक कण्ट्रोल किये हुए है। कोरोना तो है ही साथ ही बाकी देशों की तुलना में हमारी प्राथमिकताएं अलग हैं। एक बहुत बड़ी जनसँख्या है जिसे संभालना है। इस वजह से कम से कम मुझे तो आंकड़ों पर आश्चर्य नहीं होता।
पर हमारे बुद्धिजीवियों को शायद ये सब नहीं दिखता ।
एक और खास बात है , इन ज्यादातर बुद्धिजीवियों ने कांग्रेस की “न्याय” योजना का समर्थन किया था। जो अगर इम्प्लीमेंट होती , तो सरकार को लगभग वही करना पड़ता जो कोरोना की वजह से करना पड़ा , कुछ क्षेत्रों में तो खर्च बढ़ाना भी पड़ता। अभी इकॉनमी २४% से नीचे गयी है , तब क्या होता ? शायद कभी जवाब मिले !!
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