कभी-कभी कुछ मामले ऐसे होते हैं जिनपर न चाहते हुए भी सवाल पूछना पड़ता है क्योंकि ये सवाल जुड़े होते हैं करोड़ो हिंदुओं की आस्था से, उनके धर्म से. दरअसल 21 जुलाई को मद्रास हाईकोर्ट ने एक मंदिर के विवाद पर सुनाए जा रहे फैसले की अपनी टिप्पणी में कहा है कि मंदिरों के उत्सव अब भक्ति के बजाय शक्ति प्रदर्शन तक सीमित रह गए। जज ने ऐसे मंदिरों को बंद करने की सलाह दी है, जहाँ से हिंसा को बढ़ावा मिलता हो। इन त्योहारों के आयोजन में कोई भक्ति शामिल नहीं है बल्कि यह एक समूह या दूसरे द्वारा शक्ति का प्रदर्शन बन गया है। यह मंदिर उत्सव आयोजित करने के मूल उद्देश्य को पूरी तरह से विफल कर देता है।”
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मद्रास हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी एक याचिका की सुनवाई के दौरान की जिसमें मंदिर के अंदर होने वाले उत्सव के लिए सुरक्षा की माँग की गई थी। यह टिप्पणी जस्टिस आनंद वेंकटेश ने थंगारासु उर्फ के थंगाराज की याचिका पर की। याचिकाकर्ता अरुलमिघु श्री रूथरा महा कलियाम्मन अलयम के ट्रस्टी हैं। उन्होंने कोर्ट से अपने यहाँ होने वाले उत्सव के लिए सुरक्षा मुहैया कराने की माँग की थी।
लेकिन माननीय कोर्ट से हम बड़े ही विनम्र भाव से कहना चाहेंगे कि आपकी इस टिप्पणी से करोड़ों हिंदुओं की आस्था को ठेस पहुंचा है. हमारे मंदिर तो श्रद्धा की जगह हैं। अगर 2 गुटों के बीच झगड़ा होता भी है तो पुलिस का काम है शांति-व्यवस्था स्थापित करना ना कि सुरक्षा ना दे पाने की स्थिति में मंदिरों को बंद करना. हम इस ओर माननीय कोर्ट का ध्यान खींचना चाहेंगे कि क्या जब हमारी धार्मिक यात्राओं पर, हमारे कांवड़ियों पर मस्जिद के पास से पत्थरबाजी होती है तो क्या उन मस्जिदों में ताले लगा दिये जाते हैं? मस्जिद-मदरसों में आतंकी छिपते हैं, क्या कभी इन्हें बंद किया जाता है? जब देश में कोरोना फैलाने के बाद तबलीगी जमात के लोग देश भर के मस्जिदों-मदरसों में जाकर छिपे थे। तो क्या इनपर ताला लगा दिया गया था?
ये बात किसी से छिपी नहीं है चाहे रामनवमी की शोभायात्रा हो, सावन के महीने में बम-बम भोले बोलते हुए कांवड़ियों का जत्था हो इन पर पत्थर कौन बरसाता है उसके बाद भी इनलोगों पर किसी तरह की कोई टिप्पणी नहीं आती. ये बेहद ही अफसोसजनक है!
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