मैं चंदन हूँ , घिस के महक जाऊँगी,
मैं हिना हूँ , पिस के भी रंग लाऊँगी ।
मैं बाती हूँ, खुद जलूँ तो रोशनी फैलाऊँगी,
मैं ‘गर हूँ अग्नि, तो जलकर चुल्हे में भूख मिटाऊँगी ।
मैं मेघ हूँ, टूटकर भी बरखा लाऊँगी,
मैं मिट्टी हूँ, प्यार से सींचें दाने से हरियाली फैलाऊँगी ।
मैं फूल नहीं हूँ गुलाब की, छूने से कुम्हला जाउंगी,
मैं हूँ पलाश, जेठ की गर्मी में भी खूब खिल जाॐगी ।
मैं आशा हूँ, हर प्रयास में निश्चित साथ निभाऊँगी,
मैं संयम हूँ, जो हार से भी सीखके आऊंगी ।
मैं प्रेम नहीं उसकी अभिव्यक्ति हूँ,
मैं तृष्णा नहीं, मैं जल से बुझने वाली तृप्ति हूँ ।
मैं इत्र नहीं, जो मोहक सुवास फैलाऊँगी,
मैं वायु सी निर्मल, जो प्राण दायिनी बन जाऊँगी।
मैं भाग्य नहीं कि पुर्व से परिकल्पीत हूँ,
मैं कर्म जैसी बनती और बदलती हूँ ।
तुम साथ हो मेरे, तो मैं, मैं हूँ,
जो तुम साथ नहीं, तो भी मैं हूँ ।
मैं मद नहीं जो तुम्हें मादक कर जाऊँ,
मैं मोह नहीं कि अपनी माया से तुम्हें हर जाऊँ ।
मैं आम हूँ, मैं खास नहीं,
मैं कोई जुही की सुवास नहीं ।
मैं पिता की दुर्बलता नहीं, उनकी शक्ति हूँ।
मैं मा की परछाई नहीं, उनकी तर्क की युक्ति हूँ।
मैं नारी हूँ।
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नारी का सशक्त एवं सार्थक चित्रण