बन्दर-मगरमच्छ की कहानी
आज की कहानी है बंदर और मगरमच्छ की । किस तरह बंदर अपनी चतुराई से खुद को बचाता है !!
आज की कहानी है बंदर और मगरमच्छ की । किस तरह बंदर अपनी चतुराई से खुद को बचाता है !!
एक जंगल में एक नदी थी। नदी में एक मगरमच्छ रहता था। नदी के ही एक छोर पर मीठे फलों का पेड़ था। पेड़ पर एक बन्दर रहता था। कुछ समय में बन्दर और मगरमच्छ में दोस्ती हो गयी। बन्दर अक्सर पेड़ से मीठे फल तोड़ के मगरमच्छ को दे देता। मगरमच्छ भी फलों का आनद लेता।
एक रोज मगरमच्छ कुछ फलों को लेकर अपनी पत्नी के पास गया। उसने भी इतने मीठे फल कभी नहीं खाये थे। फल खाने के बाद बोली : बन्दर रोज इतने मीठे फल खाता है तो उसका कलेजा कितना मीठा होगा। तुम उसे घर ले आओ , हम उसे मार के खा जायेंगे।
मगर को भी सुझाव अच्छा लगा।
अगले दिन जब वो बन्दर के पास पहुंचा तो बोला कि तुम्हारे दिए फल मेरी पत्नी को बहुत अच्छे लगे और आज तुम्हे उसने खाने पर बुलाया है।
बन्दर मित्रता में आकर चलने को तैयार हो गया। मगरमच्छ की पीठ पर बैठकर बंदर चल दिया । जब गहरे पानी में थोड़ा दूर निकल आये तो मगरमच्छ ने बंदर को बताया कि वास्तविकता में आज वो और उसकी पत्नी बंदर को मार के उसका मीठा कलेजा खा जाएँगे ।
अब बंदर को बहुत डर लगा। पर उसने बुद्धिमत्ता से काम लेते हुए मगरमच्छ से कहा : अरे मित्र पहले बताते कि तुम्हें मेरा कलेजा खाना है , वो तो मैं पेड़ पर ही रख आया । भाभी तो मुझसे नाराज़ हो जाएँगी । वापस चलो मैं कलेजा तो ले लूँ ।
मगरमच्छ वापस हो लिया और किनारे पहुँचकर बोला जाओ कलेजा ले आओ ।
बंदर जैसे ही किनारे पहुँचा , तुरंत पेड़ पर चढ़ गया और बोला : मगरमच्छ भाई , कहीं कलेजा भी किसी के शरीर के बाहर होता है पर मुझे समझ में आ गया कि तुमसे मित्रता अच्छी नहीं ।
खुद की अक़्लमंदी और मगरमच्छ की बेवक़ूफ़ी से बंदर की जाँच बची । उसके बाद बंदर ने कभी मगरमच्छ से बात भी नहीं की । मगरमच्छ ने धोखा किया था मित्र के साथ ।
कहने का मतलब ये मित्रता बहुत सोच समझ के करनी चाहिए और वो बार किसी से मित्रता कर लो तो उसके साथ कभी आघात नहीं करना चाहिए ।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने भी कहा है : कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है !!
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