क्या अभी भी है नवरात्रि और दशहरा के मेले का जादू ???
गाँव कस्बों शहरों में लगने वाले इन पूजा मेलों का सामाजिक और आर्थिक महत्त्व भी उतना ही अधिक है
गाँव कस्बों शहरों में लगने वाले इन पूजा मेलों का सामाजिक और आर्थिक महत्त्व भी उतना ही अधिक है
उत्तर भारत का तो शायद ही कोई शहर हो जहां पर सैकड़ों राम लीला ग्राउंड न हों | और ये नाम भी उन मैदानों को इसलिए पड़ा क्यूँकि जाने कितने वर्षों पहले से नवरात्रि (दुर्गा पूजा )के दिनों से शुरू होकर दशहरे तक चलने वाला सारा उत्सव , रामलीला का मंचन /आयोजन तथा स्थानीय मेले से दस पंद्रह दिनों तक के लिए , आसपास का सबसे प्रमुख स्थान यही राम लीला ग्राउंड हुआ करते थे |
समय बदला , अब न वो दुर्गा पूजा की शुरुआत से पड़ने वाली हलकी गुलाबी सर्दी का एहसास बचा है न ही राम लीला की वो धूम | शहरों में तो ये सिर्फ एक विशेष मध्यम या गरीब वर्ग तक ही सीमित हो कर रह गया है | बड़े परिवार तो ऐसे समय पर आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रमों और इनके लिए विशेषतौर पर सजाये जाने वाले फेस्ट आदि में ही भागीदारी करते दिखते हैं
लेकिन शहर की सीमा से बाहर जाते ही ,कस्बे , गाँव , मुहल्लों में अब भी दुर्गापूजा के नौ दिनों के उत्सव , दिन से लेकर रात और अगले कई दिनों तक बदस्तूर चलने वाले छोटे छोटे मेलों की रौनक , वहीँ पास में ही छोटी छोटी अस्थाई दुकानें जिनमें बच्चियां अपने खिलौने , तो माताएं अपने श्रृंगार के साधन खरीदती दिखती हैं |
शायद ही गाँव को कोई घर आँगन होता हो जहां पर मेहमान रिश्तेदार आदि की आवक जावक न लगी दिखती हो | सुबह से ही मंदिरों में , पास ही स्थित माता के पंडाल में देवी देवताओं की मूर्तियों की पूजा आरती कीर्तन प्रसाद से ऐसा अलौकिक और अनुपम वातावरण बन जाता है जो हर तरह से सुखद और कल्याणकारी लगता है |
उत्तर भारत के खूबसूरत सैलानी स्थान कुल्लू का दशहरा मेला तो विश्व प्रसिद्द है | इसके अलावा भी पूरे देश भर में इन दिनों ऐसे विलक्षण और अभूतपूर्व मेलों , कार्यक्रमों का आयोजन/संचालन किया जाता है | हालांकि इस बार कोरोना महामारी ने इनके रंग को थोड़ा सा फीका जरूर किया है मगर इसके बावजूद भी लोगों के उत्साह में कोई कमी देखने को नहीं मिलती |
अगली पोस्ट में लिए चलते हैं आपको घुमाने :-
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