पिछले दिनों दीपिका राजावत नामक महिला की तरफ से उनके ट्विट्टर हैंडल पर नवरात्रि में किए जाने वाले परम्परागत कन्या पूजन को जबरन ही किसी दूसरे परिदृश्य में दिखा कर जहां , माँ भगवती दुर्गा सहित तमाम बाल देवियों का अपमान किया गया वहीं इस बहाने से सनातन संस्कृति के प्रति अपने पूर्वाग्रह के विष का वमन भी किया | और फिर शाम होते होते खुद ही पीड़िता वाली गुहार लगा कर निरीह भी हो गईं |
हमारी सहोदरा जैसे अनुजा भारती इस पर कहती हैं :-
110 में से दो पेशियों पर जाने वाली वकील साहिबा को नवरात्रि में होते बलात्कारों पर कोई टुच्चा और दो टके का पोस्टर लहराने के बाद विक्टिम कार्ड खेलते वक्त घड़ियाली आँसू बहाते देख मुझे चाहकर भी दुख नहीं हो पा रहा है।
मैं देखती हूँ कि त्योहारों पर बकैती करते लोग मेरे हर तीसरे दिन बलात्कारों वाली पोस्ट पर आकर फटकते भी नहीं और इन्हें यकायक उत्सवों पर खाज होने लगती है। इसलिए इनके मौसमी बुखारों के साथ मेरी वाॅल पर आने पर वहीं घेर लेती हूँ मैं।
खैर…मैडम को बहुत चिंता है बलात्कारों की। तभी तो 110 में से दो पेशियों पर हाज़िर रहकर अपनी सामाजिक और व्यक्तिगत चिंता दिखा आती हैं पीड़िताओं के प्रति क्योंकि बाकी वक्त में तो पोस्टर छाँटकर लहराने होते हैं इनको।
मेरा तो दिमाग चट गया है ये हर त्योहार पर इन कपटी, धूर्तों, बेहूदा, निकृष्ट और छिछोरे एजेंडाबाज़ों द्वारा की जाने वाले विष वमन से उपजी बदबू पर।
जानबूझकर ट्रोल होने की चाहत और दूसरे हाथ में विक्टिम कार्ड खेलकर ग्लिसरीन से सना बेशर्म आँखों का पानी इनको त्योहारों पर अपने मानसिक दड़बे से निकलने को किक मारता है कि जाओ, आ गई होली, आ गई दीपावली, आ गई नवरात्रि, आ गई करवाचौथ, करो उल्टी और बताओ लोगों को कि कैसे इन दिनों बस सारा कुछ ग़लत होता है और बाकी दिन दुनिया फूलों की सेज पर सोती है और कितने बड़े समाज सुधारक हैं ये जो घर पर होते ग़लत पर एक शब्द नहीं फूटते।
अरे धूर्तों! लाज नहीं आती क्या ऐसी विकृत और बिकी हुई मानसिकता लिए फिरने में!फिर कोई इनको ज्ञान देगा तो कहेंगे… “सबकी अपनी अपनी इच्छा है। सबका निजी मसला है। सहिष्णुता ही नहीं रही लोगों में तो।”
इसी ज्ञान का फेसपैक बनाकर मल लो अपने दोगले चेहरे के चारों गालों पर और चुप रहो त्योहारों पर।
हद से ज़्यादा विनम्रता सहिष्णुता की नहीं कायरता की निशानी है।
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