मध्यप्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, तेलंगाना, उत्तरप्रदेश सब जगह भाजपा को भारी बढ़त
गुजरात में 8 सीट पर उपचुनाव था
7 पर बीजेपी आगे 1 पर कांग्रेस आगे
मप्र उपचुनाव के नतीजे :28 सीटों के रुझान आए, 19 पर भाजपा, 8 पर कांग्रेस, 1 पर बसपा आगे; तुलसी सिलावट, गोविंद राजपूत आगे, एंदल सिंह कंषाना पीछे
मध्यप्रदेश में कायम है महाराज का जलवा – उपचुनाव परिणाम 2020: मध्यप्रदेश की 28 में से 19 सीटों पर बीजेपी, 8 सीटों पर कांग्रेस और 1 सीट पर बसपा ने बनाई बढ़त
मध्यप्रदेश में हुए 28 विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनाव की मतगणना शुरू हो गई है। मतों की गिनती करने का काम 19 मुख्यालयों पर जारी है। 28 विधानसभा सीटों में से 20 सीटों के रुझान सामने आ गए हैं। इसमें से 14 सीटों पर भाजपा ने बढ़त बनाई हुई है। वहीं, कांग्रेस छह सीटों पर आगे है।
इन 28 सीटों के नतीजे से यह स्पष्ट हो जाएगा कि मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की सरकार बरकरार रहेगी या नहीं। गौरतलब है कि मार्च महीने में ज्योतिरादित्य सिंधिया 22 विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे, उसके बाद तीन और विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया था।
वहीं तीन मौजूदा विधायकों के निधन से तीन सीटें खाली हुई थीं। आज की मतगणना भाजपा सरकार बचाने के लिहाज से ही अहम नहीं है, बल्कि इससे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया का राजनीतिक भविष्य भी तय होगा।
यूपी में उपचुनाव महज एक चुनाव से कहीं ज्यादा
उत्तर प्रदेश की सात विधानसभा सीटों पर उपचुनावों के नतीजे का असर योगी आदित्यनाथ सरकार पर नहीं पड़ेगा जो पहले से ही बहुमत के निशान से आगे है।
403 सदस्यीय सदन में भाजपा के 309 सदस्य हैं और नतीजों से राज्य सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
भाजपा कार्यकाल के अंत तक विपक्ष पर हावी रहना जारी रखेगी।
हालांकि, सात सीटों पर हुए उपचुनावों के परिणाम निश्चित रूप से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व पर जनमत संग्रह के रूप में देखे जाएंगे।
नतीजे यह भी बताएंगे कि 2022 में होने वाले अगले विधानसभा चुनाव में किस तरफ बयार बहेगी।
समाजवादी पार्टी (सपा) और उसके प्रमुख अखिलेश यादव के लिए, भाजपा के लिए सबसे मजबूत प्रतिद्वंद्वी के रूप में उनकी और पार्टी की छवि को फिर से स्थापित करना एक चुनौती है।
सपा के लिए, उपचुनाव एक बड़ा मनोबल बढ़ाने वाला साबित हो सकता है।
अखिलेश यादव अपनी पार्टी के संगठनात्मक आधार को मजबूत करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं और अगले विधानसभा चुनाव में फिर से सत्ता हासिल करने के लिए आश्वस्त हैं।
इस बीच, कांग्रेस अपने सबसे निचले स्तर पर है। पार्टी के नेता तेजी से इसका साथ छोड़ दूसरे दलों का दामन थाम रहे हैं। पार्टी नेतृत्व खुद को सत्तारूढ़ भाजपा के लिए चुनौती पेश करने में विफल रहा है।
पहली बार उपचुनाव लड़ रही बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के लिए, परिणाम यह साबित करेंगे कि क्या मायावती की अभी भी अपने प्रमुख दलित वोट बैंक पर पकड़ बनी हुई है।
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